मिट्टी से मेट तक का सफर..गांव से निकलकर कबड्डी में किया नाम..कामयाबी का श्रेय पिता को

Shri Mi
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पेंड्रा(जयंत पाण्डेय)।आपने दंगल मूवी तो देखी होगी जिसमें एक पिता की बेटे की कमी उसकी दोनो बेटियां गीता और बबिता पूरी करती है ।ठीक उसी तर्ज पर एक पिता ने अपनी बेटियों को मिट्टी से मैट का रास्ता दिखाया । आज भी जहाँ समाज मे ऐसे लोग है। जो बेटियों को बोझ समझते है ।उनके लिए एक मिशाल बनती हुई अंजली का मिट्टी से मैट तक का सफर।

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दरअसल ये कहानी कोई फ़िल्म की नही हकीकत को बयां करती हुई है। जहाँ मरवाही विधानसभा के वनांचल आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र पेण्ड्रा के पदगवा गांव की है जहाँ की बेटी ने क्षेत्र का ही नही देश का भी नाम रोशन किया है। भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा खेलो इंडिया खेलो का undar 17 कब्बडी खेल का आयोजन किया था। जहां पूरे देश भर की टीमो ने हिस्सा लिया जिसमे छत्तीसगढ़ की टीम सिल्वर पदक जीतकर आई है ।जिसका रेलवे स्टेशन गौरेला में भव्य स्वागत आतिशबाजी के साथ किया गया।

बता दे की अंजली राठौर ये मिट्टी से मैट तक का सफर बड़ी कठिनाई में पूरा किया मगर वो कहते है ।ना जहा चाह वहाँ राह वो करतब कर दिखाया है। वो अपनी जीत का श्रेय अपने पिताजी को देती है। जिसने विपरीत परिस्तिथियों में भी बेटी के हौसले को जिंदा रखा और हर समय उनके प्रेरणा बनकर खड़े रहे और जिससे आज अंजली ने देश का नाम रोशन कर दिखाया।

अंजली एक छोटे से है। जहाँ अंजली के पिता माल वाहक चलाने का कार्य करते है। कम आमदनी में भी उन्होंने अपनी बेटियों के हौसले को कम होने नही दिया। और हौसलों की उड़ान देखिए अंजली ने अपने छोटे से घर को मैडल से भर दिया
बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। क्षेत्र की बेटी ने और उसका पूरा साथ दिया उसके माता और पिता ने ।

पिता का काम मालवाहक और माँ गृहणी है। उसके बाद भी अपनी बेटियों के लिए इतना समय देना सुबह 5 बजे दोनों बेटियों को लेकर ग्राउंड जाना और वापस आकर काम करना। फिर स्कूल भेजना और वापस काम पर जाना और शाम को 4 बजते ही काम छोड़कर फिर बेटियों को ग्राउंड ले जाना ।

कभी अपनी ऑटो से तो कभी अपनी बाइक से तो कभी कभी सायकल से भी।मूलचंद ने ऐसा उदाहरण पेश किया जहाँ लोग बेटो के लिए तरसते है। और मूलचंद ने बेटियों के साथ अपने सपनो को खोज लिया और निकल पड़े एवरेस्ट की तरफ चढ़ाई के लिए ।

पेंड्रा जैसे एक छोटे से कस्बे की छोटे से गांव पदगवा की ये छोटी सी खिलाड़ी पूरे देश मे नाम रोशन करेगी इसका अंदाजा किसी को न था ।सरकार से मिलने वाली हर सुविधा से दूर लेकिन उसके बाद भी सच्ची लगन और मेहनत निश्चित तौर पर कही न कही बेहतर स्थान देती है।

इंसान अगर एक बार सोच ले मुझे करना है और निकल पड़े उस कार्य को पूरा करने के लिए तो वो कार्य जरूर पूरा होता है
एक कहावत है मान लो हार है और ठान लो जीत है ।
इसके कुछ उदाहरण भी है

दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की जान गंवा देने के बाद ठान लिया था कि उस पहाड़ के वजह से किसी और कि जान नही जायेगी और लग गए पहाड़ को काटने कई साल की मेहनत के बाद काट दिया उस पहाड़ को अकेले ही बिना किसी सुविधा और सरकार के लाभ के बिना बना डाली शानदार सड़क और कर दिया लोगो का आनाजाना आसान।

छत्तीसगढ़ की ही बस्तर के एक पहाड़ी क्षेत्र पर रहने वाली मा बेटी की जोड़ी और वहाँ पर रहने वाले लोगो की उन लोगो को रोज पानी के लिए कई किलोमीटर नीचे आना पड़ता था रोज रोज अपनी बूढ़ी मा की तकलीफ बच्चो से देखी न गयी और लग गए तालाब खोदने कई साल की मेहनत के बाद आखिर खोद दिया तालाब पहाड़ो पर और बना दिया पानी की सुविधा को आसान।

कुछ फिल्में भी प्रेरणा देती है और बेहतर करने का दंगल में बेटो की आस में 4 बेटिया और उसके बाद ठान लेना कि बेटियां ही सपने पूरा करेंगी और लग गयी काम मे कर दिया देश का नाम रोशन बना दिया रेसलिंग में देश को चैंपियन फोगट सिस्टर ।

निश्चित तौर पर इन खिलाड़ियों को अगर थोड़ा तो सपोर्ट मिले तो ये निश्चित तौर पर और बेहतर नही बेहतरीन कर सकते है ।
सरकार को चाहिए की खेल और खेल प्रेमियों को आगे बढ़ाए और खेल के उत्साह कम न होने दे ताकि ऐसे ही देश की बेटियां देश का नाम रोशन कर सके।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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