मीडिया में महिलाओं के साथ न हो भेदभाव

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DSC_3496 (800x533)रायपुर। 16 डेज ऑफ एक्टिविज्म के अंतिम पड़ाव में ऑक्सफैम इंडिया ने मीडिया के साथ एक कांफ्रेंस का आयोजन किया “वीमेन एंड मीडिया” जिसमे आज की मीडिया में महिलाओं का चित्रण, सहभागिता तथा उनके भविष्य को ले कर गहन चिंतन किया गया. इस कांफ्रेंस में छत्तीसगढ़ प्रदेश तथा देश की राजधानी दिल्ली से महिला संगठन तथा पत्रकारिता जगत के प्रबुध्ह जन शामिल हुए.
रायपुर के सर्किट हाउस में आयोजित इस आर्यक्रम में उपस्थित अतिथिगण, पत्रकार, बुद्धीजीवियों तथा पत्रकारिता विश्वविद्यालय से आये हुए छात्रों का स्वागत करते हुए, ऑक्सफैम रायपुर रीजनल मैनजर आनंद शुक्ल ने कहा की समाज में पत्रकारिता एक आईने का काम करता है, अतः बुद्धिजीवियों के लिए ये अत्यंत सोचने का विषय है की महिलाओं के मुद्दों को कैसे प्राथमिकता दी जाए. उन्होंने सभी अतीथियों का स्वागत किया.

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                   “महिलाओं के मुद्दे, उनका विकास, उनकी भागीदारी, उनपे हुए अत्याचार तथा इन कहानियों को कहने सुनने का अधिकार, क्या इन सभी विषयों में औरतों का अधिकार अपने पुरुष साथियों के समान है? इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर ढूँढने पर पता चला की बमुश्किल २०% ही खबरें अख़बारों में औसतन महिलाओं के बारे में होती हैं.” इस वक्तव्य से अखिला शिवदासा ने अपनी गहन अध्ययन के निष्कर्ष को श्रोताओं के साथ बांटा. सेंटर फॉर वीमेन ऐद्वोकैसी एंड रीसर्च की अखीला शिवदासा एक महिला एक्टिविस्ट हैं जिन्होंने कई साल छत्तीसगढ़ में औरतों के मुद्दों पर काम किया. उन्होंने कुछ उदाहरणों के द्वारा मीडिया की ज़िम्मेदारी तथा उससे होने वाली हानि के बारे में भी प्रभावी रूप से अपनी बातें रखीं. उन्होंने कहा की कहानी का चित्रण किसी की पर्सनालिटी पर नहीं वरन मुद्दे पर ही टिकी रहनी चाहिए.

                       तत्पश्चात, वरिष्ठ पत्रकार रमेश नय्यर जी ने अपनी विशिष्ठ शैली में छत्तीसगढ़ में हो रही लगातार वैश्वीकरण से उत्पन्न लैंगिक दुष्कर्मों तथा महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर नज़र डाली. उन्होंने कहा की मीडिया में महिलाओं के साथ वृहद् रूप से हर चरम पर भेदभाव होता है. और ये तभी ख़त्म होगा जब औरतें खुद संगठित होंगी तथा अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगी. उन्होंने खेद व्यक्त किया की पिछले १५ सालों में रायपुर प्रेस क्लब में एक भी महिला प्रेसिडेंट नहीं देखा गया.
विकल्प शुक्ल, आल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर ने कहा की रेडियो एक बहुत ही सशक्त संचार का माध्यम है तथा रायपुर आकाशवाणी स्टेशन इस बात का पूरा खयाल रखते हुए महिलाओं पर कई प्रोग्राम बनाएं हैं, जिनसे उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलती है.

                       महिला आयोग की सदस्य हर्षिता पाण्डेय ने कहा की महिलाएं पुरुषों से किसी मायने में कम नहीं हैं, तथा मौका मिटे ही वे अपनी काबलियत विश्व स्तर पर प्रूव कर चुकी हैं. उन्होंने मुद्दों की संवेदनशीलता को समझने में मीडिया की चूक का उल्लेख किया. महिला आयोग हर एक कहानी को संज्ञान में लेता है तथा सुओ मोटो कोग्निज़ंस ले कर ही पीड़ितों को यह आयोग न्याय दिलाती है. सेंट्रल क्रॉनिकल के एडिटर के एन किशोर ने भी पिछले कई दशकों में हुए महिला हिंसा पर रौशनी डाली तथा मीडिया में इन्हें ज्यादा से ज्यादा कवरेज देने की बात रखी. उन्होंने उभरते हुए पत्रकारों को महिला मुद्दों को ले कर पढने के लिए प्रेरित किया.

                   इंडिया न्यूज़ के ब्यूरो चीफ संजय शेखर ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुछ अत्यंत ज्वलंत विषयों पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा की जब प्रकृति ने महिला पुरुष को सामान बनाया है तो समाज को ये हक नहीं है की वो महिलाओं को कम समझें. उन्होंने प्रेस कौंसिल of इंडिया द्वारा सुझाये गए महिला हिंसा को कैसे रिपोर्ट करें, इस बारे में भी चर्चा की तःथा पत्रकारिता के स्टूडेंट्स को इस बारे में पढाई करने के लिए उत्साहित किया.

                   तुहिन देब, स्टेट रिसोर्स सेंटर के डायरेक्टर ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में सोनी सोरी तथा मीना खलखो दो उदाहरण हैं जहां पत्रकारों, खासकर ग्रामीण पत्रकारों ने न्याय दिलवाने में मदद की है. उन्होंने आगे कहा की आज के युग में पूंजीवादी वैश्वीकरण के चलते पत्रकारिता भी एक कोमोडिटी है. और अगर हमें महिला सशक्तिकरण पर काम करना हुआ तो हमें ये बदलना पड़ेगा.
कार्यक्रम का संचालन अनुराधा दुबे ने किया. 16 डेज of एक्टिविज्म का ये अंतिम कार्यक्रम था तथा पिछले 16 दिनों में प्रदेश के १२ जिलों के लगभग 5 हज़ार महिला पुरुष युवाओं तक ऑक्सफैम रायपुर का यह कैंपेन पहुंचा.

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