“मुन्ने कैय नोरीयना अचोटे गाटो तीन्ना यानि” कोरोना से बचाव के लिए अबूझमाड़िया भी सजग,मितानिनों की भी अहम भूमिका

Shri Mi
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नारायणपुर।विश्व के साथ पूरा भारत देश भी नोवल कोराना (कोविड-19) वायरस संक्रमण से लड़ रहा है। उसके रोकथाम एवं नियंत्रण व बचाव के लिए केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा सभी बेहतर उपाय किए जा रहे है। प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के नाम पहले संबोधन में जनता कफ्यू का फिर लॉकडाउन का एलान किया गया है। लॉकडाउन की मियाद नहीं बढ़ाई गई तो यह 14 अप्रैल तक निर्धारित है। नारायणपुर जिले के धूर नक्सल प्रभावित ओरछा विकासखंड के अतिसंवेदनशील एवं नक्सल हिंसा ग्रस्त इलाकांे के अबूझमाड़ियां (माड़िया) जनजाति के लोग कोराना से बचाव के प्रति बेहद जागरूक, सजग और सर्तक हो गए है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप (NEWS) ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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माड़ियां लोगों से जब कोराना से बचाव के संबंध सावधानियां बरतने की बात पूछी जाती है तो वह तपाक से अपनी भाषा में कहते है कि ‘‘मुन्ने कैय नोरीयना अचोटे गाटो तीन्ना’’ यानि कि (‘‘पहले धोते हाथ फिर खाते भात’’) कोराना से बचाव के प्रति इनकी यह जागरूकता अब धीरे-धीरे भीतर के इलाकों के गांव में भी पहुंचने लगी है। अबूझमाड़ का कोई भी इलाका चाहें वह थुलथुली सेक्टर का रेगावाड़ा हो हतलानार, हांदावाड़ा, या पांगुड़ या किसी भी ऐसे अन्दरूनी गांव है, जो चारांे और से पहाड़ों और घने जंगलों से घिरे है। जहां सूरज की किरण भी जमीन से मिलने पेड़ों से इजाजत मांगती दिखायी देती है। आदमी भी जाने से पहले 10 बार सोचता है। लेकिन यहां के अबूझमाड़िया कोरोना या अन्य गंभीर बीमारी के प्रति काफी जागरूक हो गये है। वे स्वच्छता पर भी ध्यान दे रहे है। इन्हें जागरूक करने का पूरा श्रेय स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले मितानिनों, आरएचओ का तो है ही, उनके साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, के साथ ही शाला आश्रमों के शिक्षक शिक्षकाओं का भी इसमें योगदान है।

अबूझमाड़ियां लोग थुलथुली इलाके के मितानिन प्रशिक्षक श्री मैथूराम मंडावी और मितानिन, स्वास्थ्यकर्ता और स्थानीय पढ़े लिखें लोगों के योगदान का भी जिक्र करना नहीं भूलते है। राशन पहुंचाने वालों का भी अपनी भाषा में शुक्रिया अदा करने से नहीं थकते है। वर्षाे पहले यहां के कई स्थानीय लोग बड़ी बीमारी होने पर देवी-देवताओं का प्रकोप मानते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। प्रशासन द्वारा चलायी गई कई जनहितकारी योजनाओं का अब भरपूर लाभ मिलता है। कुछ वन क्षेत्रों के इलाकों को छोड़ दें, तो जरूरी बुनियादी सुविधाएं पहुंच रही है।

मितानिन ग्रामीणों का स्वास्थ्य परीक्षण के साथ-साथ दीवार लेखन का कार्य कर रही है। लिखने के बाद अनपढ़ लोगों को उनकी स्थानीय भाषा में कोराना एवं अन्य बीमारियों के बचाब के बारे में बताती है। खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोने और स्वच्छ रहने संबंधी बातें बताती है। गांव के किसी यक्ति को कोई बीमारी होने पर तुरन्त नजदीक आगंनबाड़ी केन्द्र या मितानिनों को बताने की भी समझाईश दे रही है। झिरिया का पानी नहीं पीने और पानी को उबाल कर छान कर पीने की सलाह दे रही है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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