तीन तलाक:कुरीतियों के गाल पर सुप्रीम कोर्ट का करारा तमाचा…सदियों तक रहेगी गूंज

BHASKAR MISHRA
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supreme courtबिलासपुर-(सीजी वाल पाठक की राय)–मंगलवार की दोपहर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। मुस्लिम समाज में प्रचलित 3 तलाक पर रोक लगा दी है। प्रारम्भिक तौर पर यह रोक प्रारंभ 6 महीने के लिए है। निःसन्देह इस फैसले के दूरगामी परिणाम सामने आएंगे।

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                             फैसला सिर्फ़ उत्तराखण्ड के काशीपुर की शायरा बानो के प्रकरण पर ही आधारित नहीं है। बल्कि इसरत जहां, ज़ाकिया सोमन जैसी हज़ारो-हज़ार पीड़ित परिवारों की चिर कालिक विरह वेदनाओ पर को ध्यान में रखकर लिया गया है। वर्तमान आधुनिक प्रगतिशील और वैज्ञानिक समाज में व्याप्त कई पुरातन परंपराएं जो वर्तमान में किसी भी सूरत में ग्राह्य नहीं है। आदिम परम्पराओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से गहरी चोट पहुंची है। बात बात पर फ़तवा ज़ारी करने और प्रतिबंध लगाने वाले धार्मिक संगठनों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुंह पर करारा तमाचा भी है।

                                                तलाक़-ए-बिद्दत अर्थात लगातार 3 बार तलाक़ शब्द बोलने से होने वाली अनुगूँज की भयावहता का अंदाज लगाना मुश्किल है।  प्रसिद्ध गीत की पंक्तियां याद आती हैं “जो तन लागे वो तन जाने”— यह गाना तलाक़-ए-बिद्दत के पीड़ितों पर पूरी तरह से सटीक बैठता है।

                                                                   यद्यपि सर्वोच्च अदालत का फैसला प्रारम्भिक तौर पर 6 माह के लिए है। उम्मीद है कि इन 6 महीनों में केंद्र सरकार कोई न कोई ठोस परिणाम तक पहुंच जाएगी। यह प्रथा 6 माह बाद अतीत के गर्त में दफ़न हो जाएंगी। आज के इस क्रांतिकारी फैसले ने बहुतायत परिवारों को राहत और अनेकानेक सजल नयनों के अश्रु पोंछने का काम किया है। हमारी सक्षम और सशक्त न्यायपालिका साधुवाद की पात्र है।*

                सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाले समय में नज़ीर बनेगी। आने वाले प्रगतिशील भारत की नवसंकल्पना पुष्पित और पल्लवित होंगी। दकियानूसी और अव्यवहारिक कुरीतियों का कोई स्थान नहीं होगा। किसी भी सम्प्रदाय विशेष के लिए कोई स्थान नहीं होगा। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत समाज का निर्माण होगा।

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