” मैं…बलराम….”जिंदादिल शख्सियत की एक बुलंद आवाज.. अब सिर्फ यादों में…

Chief Editor
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( गिरिजेय )  न्यायधानी बिलासपुर की मुख्य सड़क  जिस चाँटापारा – तिलकनगर से होकर गुजरती है….वहां काँचवाले खुले दरवाजे के उस पार अपनी बड़ी सी टेबल के सामने बैठे शख्स का अंदाज ही कुछ ऐसा होता था कि वहां से गुजरने वाले हर एक जान पहचान के व्यक्ति के हाथ अभिवादन में सहज ही  उठ जाते थे ……। और बहुत से लोग रुककर मिलने से अपने को रोक नहीं पाते थे। जो उनके पास पहुंचता उसे पूरा सम्मान मिलता और चाय – पानी के बाद ही उसे छुट्टी मिल पाती…..। हाल – चाल पूछना…. और अगर कोई काम हो… तो तुरत उसके निराकरण के लिए पहल करना उनकी खासियत थी…..। किसी दफ्तर या विभाग में काम हो… तो तुरत उसी समय फोन लगवाते और इधर से आवाज आती …. ” मैं बलराम…..।”सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करे

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फिर अपने अँदाज में काम की बात करते और इस उम्मीद के साथ फोन रखते कि समय सीमा के भीतर समस्या का निवारण हो जाएगा…..। ऐसे थे ठाकुर बलराम सिंह…… जिनके निधन के बाद एक जिंदादिल शख्सियत की बुलंद आवाज अब सिर्फ यादों में ही सिमटकर रह गई है…। उनके चाहने वालों को  उस सड़क से गुजरते समय यह बात सालों तक खटकती रहेगी और  एक दमदार शख्सियत की कमी का अहसास हमेशा बना रहेगा…।

अपनी स्टूडेंट लाइफ  से ही राजनीति में सक्रिय रहे ठाकुर बलराम सिंह कई मायनों में बेमिसाल थे। इसका अँदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे दो बार बिलासपुर नगर निगम के महापौर रहे और दो बार तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। जिससे समझा जा सकता है कि बिलासपुर शहर और गांव – देहात हर जगह नुमाइंदगी करते हुए उन्होने अपनी एक अलग पहचान बनाई।

वे किसी सीमा में बंधकर नहीं रहे। हर किसी से सहजता के साथ मिलना … हर किसी को पूरा सम्मान देना और मदद के लिए हमेशा तैयार रहना उनकी पहचान थी। ऐसे कई मौके आए जब लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास आते थे और समाधान के साथ वापस लौटते थे। उनकी बातचीत और मिलने का अँदाज कुछ ऐसा था कि राजनीतिक विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। शहरी लोगों के साथ वैसा ही सलूक और गांव – देहात के लोगों के साथ ठेठ देहाती अँदाज में उनका मिलना हर किसी को सहज लगता था।

सार्वजनिक जीवन में उन्होने एकला चलो का सिद्धांत कभी नहीं अपनाया….। वे उस पीढ़ी के नायक थे , जो हमेशा अपने लोगों को साथ लेकर चलते थे। उनके तिलकनगर ऑफिस में हमेशा उनकी मित्र मंडली का जमावड़ा लगा रहता था और गप – गोष्ठी का दौर चलता रहता था। सियासी चर्चाओँ में देश – दुनिया की बातें हमेशा गूँजती रहती थी।

पुराने दौर में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कृष्ण मूर्ति टाह , लक्ष्मण मुकीम और पियूष कांति मुखर्जी उनके साथी रहे। हाल के दिनों तक उनके अस्वस्थ होने से पहले तक  फत्तेनारायण चंदेल, के.के. नायडू, फिरोज कुरैशी, विनोद शर्मा,  उमेश मिश्रा, अजय परिहार जैसे कई साथी उनकी बैठक में शामिल होते रहे।

ठाकुर बलराम सिंह ने शुरू से अँत तक कांग्रेस में रहकर राजनीति की ।  बिलासपुर इलाके में उन्होने उस दौर में राजनीति की जब डॉ.श्रीधर मिश्र, चित्रकांत जायसवाल, बी.आर.यादव, अशोक राव , राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, बंशी लाल धृतलहरे जैसे कांग्रेसी दिग्गज अविभाजित मध्यप्रदेश में अपनी अलग पहचान रखते थे। ठाकुर बलराम सिंह ने अर्जुन सिंह, विद्याचरण शुक्ल और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेताओँ के साथ जुड़कर राजनीति की  । वे जिस नेता के भी साथ रहे , पूरी निष्ठा – ईमानदारी के साथ कांग्रेस का साथ निभाया।

वे लम्बे समय तक बिलासपुर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और बिलासपुर में कांग्रेस भवन उनके ही कार्यकाल में बनकर तैयार हुआ। जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का उन्होने हमेशा पूरी ईमानदारी से निर्वहन किया और बिलासपुर के हितों की लड़ाई में वे हमेशा आगे रहे। बिलासपुर में रेल्वे जोन बनाने के मुद्दे पर लम्बी लड़ाई में उन्होने बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया। इस मांग को लेकर उन्होने पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी बाजपेयी से मुलाकात की।

उस दौरान  बिलासपुर के दौरे पर आए तब के रेल मंत्री रामविलास पासवान के सामने उन्होने रेल्वे जोन की मांग अपने अँदाज में  पुरजोर तरीके से रखी थी। जिसकी चर्चा भी काफी समय तक रही । इसी तरह तखतपुर विधायक रहते हुए पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने से लेकर विकास के कई कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया। जिसके लिए उन्हे हमेशा याद किया जाएगा।

ठाकुर बलराम सिंह की राजनीति का अंदाज कुछ ऐसा था कि वे दाँव – पेंच और पद की होड़ से अलग हटकर हमेशा लोगों के साथ खड़े दिखाई देते थे। इत्तफाक से वे ऐसी जगह रहते थे , जहां से गुजरते हुए लोगों की उनके साथ सहज ही मुलाकात हो जाती थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में जब बिलासपुर जिला काफी फैला हुआ था।

अविभाजित जिले में चंद्रपुर ,चाँपा  जांजगीर – अकलतरा, कोरबा , कटघोरा जैसे इलाके शामिल थे। जहां से अपना कोई भी काम लेकर कलेक्टोरेट या किसी सरकारी दफ्तर आने वाले लोगों को तब तिलकनगर के रास्ते से ही होकर गुजरना पड़ता था। इस दौरान अगर ठाकुर बलराम सिंह अपने ऑफिस में बैठे हों तो लोगों की नजर उन पर जरूर पड़ती थी और उनसे मिलने के बाद काम में मदद भी मिल जाती थी। वे हर किसी को अपना ही समझते थे और हर छोटे – बड़े से पूरी आत्मीयता के साथ मिलते थे।

रतनपुर महामाया मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में  उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होने सभी को इससे जोड़ने का काम किया और खुद भी ताउम्र इसमें लगे रहे। मँच राजनीतिक हो या  सामाजिक ….. ठाकुर बलराम सिंह हर जगह सहज ढंग से अपने दिल की बात करते थे और बिना किसी लाग – लपेट के साफगोई से बात रखना उनकी खासियत थी । वे वक्त के बड़े पाबंद रहे ।

उनके काफी करीबी रहे फिरोज कुरैशी याद करते हैं कि बलराम भैया जब विधायक थे, वे ठीक समय पर विधानसभा पहुंच जाते थे। सबसे पहले पहुंचने वालों में उनकी गिनती होती थी। और सभी के साथ दिल खोलकर मिलते थे।

ऐसी शख्सियत के मालिक ठाकुर बलराम सिंह का निधन बिलासपुर के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके साथ ही एक ऐसा दौर भी चला गया , जिसमें राजनीति और सामाजिकता के मायने कुछ अलग थे। ऐसी शख्सियत को भुला पाना कठिन है। जिनकी बुलंद आवाज अब सिर्फ यादों में ही सिमटकर रह गई है।

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