बिलासपुर….पर उपदेश सकल बहुतेरे- तुलसी की चौपाई को बहुतेरे लोगों ने पढ़ा और सुना होगा। तुलसी की यह चौपाई जिला कलेक्टर कार्यालय पर सटीक बैठती है। शहर को सफाई का उपदेश देने वाला जिला प्रशासन खुद गंदगी की ढेर पर बैठा है। मजेदार बात है कि उसे यह दिखाई भी नहीं देता है। लेकिन घूम घूम कर सफाई का उपदेश बांट रहा है। सच्चाई तो यह है कि स्वच्छता अभियान का यदि कहीं टांग तोड़ा गया है तो जिला कलेक्टर कार्यालय और उसके आस पास ही।
जिला को स्वच्छता अभियान को सिर पर उठाकर चलने का ढिंढारा पीटने वाला जिला प्रशासन खुद गंदगी के ढेर पर बैठा है। मल मूत्र कूड़ा करकट, दुर्गन्ध मारते शौचालय,इधर उधर जमा पोलीथिन के पहाड़ सफाई अभियान का मुंह चिढ़ाते हैं। एनआईटी कार्यालय के बगल में कूडे के ढेर से गंध इतना आती है कि वहां एक मिनट रूकने का अर्थ सीधे अस्पताल पहुंचना है।
कलेक्ट्रेट बिल्डिंग के पास कोने का शौचालय स्वच्छता अभियान का मुंह चिढ़ाता है। सामने खाद्य और खनिज विभाग है। बीच में छोटा सा गार्डन भी है। लेकिन गार्डन में लोग बैठना पसंद नहीं करते हैं। क्योंकि फूलों के साथ कुछ ऐसी बदबू आती है जिसे बर्दास्त करना किसी के बस में नहीं है। दरअसल शौचालय प्रयोग करने के बाद कोई भी व्यक्ति पानी डालना जरूरी नहीं समझता है। बिना नलकी का कमोड व्यवस्था की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। विभाग के कुछ अधिकारियों ने बताया कि हम कर भी क्या सकते हैं। बदबू इतनी आती है कि हजारों रूपए का बना गार्डन हमारे किसी काम का नहीं है।शौचालय उपयोग करने के बाद लोग पानी नहीं डालते हैं। कभी कभी तो पानी ही नहीं होता है। शौचाय की सफाई भी नहीं होती है।
कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित एनआईटी और वीडियों कांफ्रेसिंग भवन के बीच कूड़ेे का पहाड़ दूर से ही दिखाई देता है। कभी कभी पालतू पशु और आवारा मवेशी कचरों को साफ करते दिखाई दे जाते हैं। कूडे के ढेर और शौचालय से उठने वाली गंध को दूर तक महसूस किया जा सकता है। खाद्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गंध ने जीना हराम कर दिया है। एनआईटी कर्मचारियों ने भी बताया कि शौचालय में बहुत गंदगी है। साफ सफाई नहीं होने से संक्रमण का भयंकर खतरा है।शायद इसकी जानकारी कलेक्टर को हो यदि नहीं है तो हम क्या कर सकते हैं। क्योंकि कलेक्टर इसका प्रयोग नहीं करते हैं।
पुराने कम्पोजिट बिल्डिंग के आस पास भी सफाई अभियान की टांग टूटते देखा जा सकता है। आबाकरी विभाग और पंजीयन कार्यलय के बीच इंसान और कचरों के बीच अच्छी जुगलबंदी है। बड़े बड़े कचरे के ढेर को साफ देखा जा सकता है। रास्ते में सेप्टिक टैंक का बहता गंदा पानी बीमारी को निमंत्रण देता है। सेप्टिक टैंक के बगल में वाटर हार्वेस्टिंग के लिए सिंटेक्स टैंक को जाता प्लास्टिक पाइप भी है। पाइप कहीं कहीं टूटी भी है। इसके साथ सेप्टिंक टैंक का गंदा पानी टैंक तक पहुंंचता है। टैंक में जमा पानी का उपयोग दिनभर होता है। मालूम हो कि एक साल पहले छत्तीसगढ शासन ने कम्पोजिट बिल्डिंग के प्रभारी आदिवासी विभाग सहायक आयुक्त को सफाई का तमगा भी दिया था। देने वाले आकर देखें कि तमगा मिलने के बाद पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग की सफाई व्यवस्था कितना बेहतर है।
कम्पोजिट बिल्डिंग में बना बिना दरवाजे का शौचालय व्यवस्था की मुंह चिढ़ाता है। शौचालय की स्थिति बद से बदतर है। अन्दर घुसने के बाद लोग तुरन्त बाहर निकल आते हैं। स्वस्छ भारत अभियान का जब कलेक्टर परिसर में यह हालत है तो जिले में कैसा होगा..इसका अंदाज लोग अब लगा ही सकते हैं।