गणेश कछवाहा(रायगढ़)।देश में सरकार है या नहीं।पुरेदेश में ये अफरा तफरी मची हुई है?न तो केंद्र सरकार न ही राज्य सरकारें कोई भी सही जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं।ये मजदूर भी इंसान हैं ,इनमें भी प्राण है, इन्हें इंसान समझो ।सियासत को शर्म नहीं आती।सरकार का बहुत क्रूर और घिनौना चेहरा दुनिया देख रही है।16 मजदूरों की रेल दुर्घटना में मौत हो गई ।महाराष्ट्र से अपने घर मध्यप्रदेश जाने के लिए पैदल निकल पड़े थे ,सारे सपने टूट गए,जीवन ही समाप्त हो गया, कुछ रोटियां थीं पोटली में, वो रोटियां पटरियों पर बिखर गई ,जो पटरियों पर ही सुख गईं । दो मजदूर अपने दो छोटे छोटे बच्चों को सायकल में लखनउ उत्तर प्रदेश से छत्तीसगढ़ के लिए निकले थे सड़क दुर्घटना में मौत हो गई बच्चे अनाथ हो गए।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये
खून और पसीना सड़कों पर बिखर गया। उम्मीदें चकनाचूर हो गई। सरकारें मौन हैं।अब कमेटियां बनेंगी जांच होगी और फिर सत्ता द्वारा अपनी बेशर्मी को छुपाने के लिए किसी निर्दोष को बलि का बकरा बनाया जाएगा। स्व लालबहादुर शास्त्री जी की तरह आदर्श और नैतिकता का पालन करते हुए सरकार का कोई जिम्मेदार मंत्री न इस्तीफा देगा और न ही कोई जिम्मेदारी लेगा।बल्कि यह सवाल पूछा जाएगा कि उन मजदूरों को रेल पटरी से जाने की जरूरत क्या थी ? सियासत से जुड़े लोग राष्ट्रवाद के नाम पर तर्क कुतर्क कर सियासत का बचाव करेंगे।उन्हें यह पता होता है या नहीं कि वे अपराधी की रक्षा कर रहे हैं या देश की ? इंसानियत को बचा रहें हैं या हैवानियत को?
माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोरोना वैश्विक महामारी पर देश को संबोधित करते हुए उद्योगपतियों,व्यवसायियों,शासकीय एवं निजी कंपनियों के मालिकों ,कारोबारियों तथा आम जनता से अपील की थी कि – “कोई भी किसी भी मजदूर या कर्मचारी को काम से नहीं निकालेगा, उनका वेतन व मजदूरी नहीं काटेगा ,कोईअपने मकान या घर से नहीं निकालेगा ,किराया व फीस कोई लेगा नहीं। कोई कहीं भूखा न रहे इसका ध्यान रखा जाए । फिर ये लाखो करोड़ मजदूर सड़कों पर कैसे और क्यों आ गए?भूखे प्यासे छोटे छोटे बच्चों ,बुजुर्ग यहां तक कि गर्भवती महिलाएं तक को लेकर कोई सायकल से तो कोई पैदल निकल पड़ा हैl क्यों? क्या देश के प्रधानमंत्री ने यह जानने ,समझने और समझाने की कोई कोशिश की?क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी है या नहीं? क्या सरकार ने अपनी जिम्मेदारी व दायित्वों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से किया?आज ढेर सारे सवाल आम जनता के बीच खड़े हो रहे हैं।
दुनिया यह भी देख रही है कि कैसे एक तरफ गरीब मजदूरों को उनके अपने हाल पर बे सहारा छोड़ दिया गया है ,दूसरी तरफ अमीरों को विदेश से लाने के लिए स्पेशल फ्लाइट भेजी जा रही है। क्या इस दोहरे चरित्र पर देश गर्व कर सकता है? यह असमानता क्यों?देश के प्रधान मंत्री की अपील पर थाली,ताली,घंटी बजाने , बत्ती,दिया जलाने ,मास्क लगाने की अपील का गरीब,भिखारी तक ने पालन किया। एक झोपड़ी से भिखारी अपनी टूटी फूटी थाली बजा रहा था, एक पोस्ट तो ऐसा भी देखने को मिला की मां और बेटे ने पत्ते का मास्क लगाया ।एक बच्चे ने गुदड़ी को सिलकर मास्क लगाया। इससे बड़ी राष्ट्र भक्ति क्या होगी ? लेकिन यह सवाल ज्यादा अहम है कि क्या उद्योगपतियों , उद्यमियों एवं धन्ना सेठों ने आपके(प्रधानमंत्री) के अपील का अनुपालन किया? यदि नहीं तो क्या यह देश द्रोह नहीं है? क्या सरकार ने उन पर कोई कार्यवाही की ? बल्कि इन बड़े उद्यमियों के कहने पर कर्नाटक सरकार ने मजदूरों को ले जाने वाली ट्रेनों को ही रदद कर दिया।क्या यह असंवैधानिक एवं अमानवीय व्यवहार नहीं है।क्या प्रधान मंत्री या केंद्र सरकार ने कोई हस्तक्षेप या कार्यवाही की ? नहीं। आखिर क्यों ?
सवाल यह उठता है कि – क्या यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत नागरिक की स्वतंत्रता का हनन नहीं है?.क्या यह मजदूरों को बंधक बनाने जैसा क्रूर व अमानुषिक कदम नहीं है?कोई भी व्यक्ति कहां काम करेगा, नहीं करेगा,उसकी संवैधानिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है? किसी नागरिक या मजदूर कोअपने घर जाने ,अपने परिवार से मिलने नहीं देना क्या यह मानव अधिकार का उल्लंघन नहीं है? क्या सरकार का यह कृत्य स्वतंत्रता के संवैधानिक मौलिक अधिकारों की हत्या नहीं है? यदि सरकार ही मजदूरों को बंधक बनाएगी तो फिर समाज का क्या होगा?उनकी रक्षा कौन करेगा? केंद्र सरकार ने भी अभी तक कोई हस्तक्षेप नहीं किया है जो काफी गम्भीर और ख़तरनाक है। क्या वर्तमान समय में न्यायपालिका से कोई उम्मीद की जा सकती है?आखिर हम कैसी मानव सभ्यता,समाज व राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं?
“सरकार बहुत संवेदनशील है,सबका साथ सबका विकास,किसी गरीब,मजदूर,किसान को भूखा नहीं मरने देंगे, 70 वर्षों में पहली बार गरीबों,मजदूरों और किसानों के हितों को ध्यान में रखने वाली सरकार बनी है।हम गरीबों के लिए काम कर रहे हैं तो , धन्नासेठों तथा उनके हितैषियों को बहुत बेचैनी हो रही है। मेरा क्या है मैं तो फकीर हूं झोला उठाऊंगा और चल पडूंगा।”
आखिर किस पर विश्वास करें।आज इतिहास मानव सभ्यता के सबसे ख़तरनाक दौर से साक्षात्कार कर रहा है। विश्वनीयता का गहरा संकट उत्पन्न हो गया है।
शर्म आती है कि शर्म क्यों नहीं आती।