संसदीय सचिव मामले में सरकार को राहत…हाईकोर्ट ने खारिज़ की चुनौती..लेकिन सुविधाओं पर लगाई रोक

BHASKAR MISHRA

बिलासपुर–बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को सही ठहराया है। फैसले में राज्य सरकार की गई नियुक्तियों को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट चीफ जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस शरद गुप्ता की खंडपीठ ने  फैसला देते हुए कहा कि संसदीय सचिव बतौर मंत्री कार्य नहीं कर सकेंगे।

             
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                    फैसले के बाद  याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर और राकेश चौबे को तगड़ा झटका लगा है। मालूम हो कि सरकार ने प्रदेश में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की थी। नियुक्तियों के खिलाफ कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर और आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश चौबे ने अलग अलग याचिका दायर की थीं।

                     मामले में अंतिम सुनवाई 16 मार्च को हुई थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता मोहम्मद अकबर से कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा था। इसके पहले 2 फरवरी को कोर्ट ने संबंधित पक्षों की बहस पूरी की थी.

                          मामले में सुनवाई पूरी कर कोर्ट ने अंतरिम आदेश में संसदीय सचिवों के काम करने पर रोक लगा दिया था। लेकिन मोहम्मद अकबर ने आरटीआई से सूचना के आधार पर रिट पिटीशन लगाकर बताया कि सभी संसदीय सचिव और सरकार कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। लिहाज़ा कोर्ट ऑफ कंटेंप्ट का मामला बनता है।

         हाईकोर्ट ने रिट पीटिशन को खारिज करते हुए शुक्रवार को ठीक 10 बजकर 45 मिनट पर फैसले को सार्वजनिक किया। डबल बेंच ने कहा कि संसदीय सचिव पद मंत्री के बराबर माना जा रहा है। लेकिन संसदीव सचिवों को राज्यपाल ने पद और गोपनीयता की शपथ नहीं दिलाया है।  ना ही किसी प्रकार का संवैधानिक निर्देश ही है | इसलिए संसदीय सचिवों को मंत्रियों का कोई अधिकार नहीं रहेगा। लेकिन कोर्ट ने नियुक्तियों को लेकर कुछ नहीं कहा।

              हाइकोर्ट के फैसले के बाद छग के संसदीय सचिवों ने राहत की सांस ली है। राजू सिंह क्षत्रीय,तोखन साहू,अंबेश जांगड़े,लखन लाल देवांगन,मोतीलाल चंद्रवंशी,लाभचंद बाफना,रूपकुमारी चौधरी,शिवशंकर पैकरा,सुनीति राठिया,चंपादेवी पावले,गोवर्धन सिंह मांझी को बर्खास्तगी के तलवार से झुटकारा मिल गया है।

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