रील पर भारी रीयल स्टोरी..जब भिखारिन ने दान की जमापूंजी.. छलछला गयी पार्षद की आंखें

BHASKAR MISHRA
7 Min Read
बिलासपुर— 72 साल की एक भिखारिन ने वह कर दिखाया जिसकी लोग कल्पना नहीं कर सकते है। क्योंकि ऐसी बातें या तो फिल्मों में  नजर आती है। अथवा किताबों में पढ़ने को मिलती है। भिखारिन महिला ने स्थानीय पार्षद विजय केशरवानी को जीवन भर की पूंजी कोरोना पीड़ितों के नाम दान कर दिया।
 
                 देश इन दिनों विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। लोग कोरोना के भय से घर में दुबके हैं। वहीं देश का एक एक नागरिक एक दूसरे की मदद के लिए दोनों हाथ से दान कर रहा है। जिसकी जैसी श्रद्धा बन रही है..सहयोग कर रहा है। जब खबर मिलती है कि एक भिखारिन ने अपने जीवन भर की पूंजी को कोरोना पीड़ितों के नाम कर दिया है। तो निश्चित रूप से कानों और आंखों को विश्वास नहीं होता है। लेकिन यह सुखद खबर बिलासपुर के लिंगियाडी से है। 
 
                     लिंगियाडही निवासी सुखमती भीख मांगकर अपना और अपनी दो  नातिनों को सालों से पाल पोष रही है। सुखमती की एक एक नातिन ग्यारहवें में तो दूसरी नातिन छठवीं पड़ती है। दोनों का खर्च सुखमती के ही कंधों पर है। और सुखमती घर के खर्च के साथ नातिनों की पढ़ाई लिखाई  की व्यवस्था भीख मांगकर पूरी करती है। क्योंकि उसके घर मेंं ऐसा कोई नहीं है जो घर का भरण पोषण कर सके।
 
भीख मांगकर परिवार का गुजारा
 
               72 साल की सुखमति बीते एक दशक से भीख मांगकर परिवार का गुजारा करती है। कोरोना की मार सुखमति पर भी पड़ा है। उसने बताया कि जब से कोरोना का प्रकोप सामने आया…तब से वह भीख मांगने घर से नहीं निकल रही है। लेकिन जब लोगों की परेशानियों को देखा नहीं गया। उसने भीख मांगकर एकत्रित किए गए चावल और कपड़ों को दान करने का फैसला कर लिया। क्योंकि उसे मालूम है कि भूख कितनी बड़ी होती है। इसलिए  उने सालों से इकठ्ठा किए गए चावल के एक एक दाने को स्थानीय पार्षद को बुलाकर आम जनता के बीच दान करने के लिए सौंप दिया है।    
 
 जिसे सहयोग की जरूरत..उसी ने किया सहयोग
 
                कोरोना प्रकोप के बाद दिग्गजों ने अपने बचत बैंक को आम जनता के हितों के लिए खोल दिया है। कोई भोजन तो कोई रूपया दान कर रह है। दानवीरों की कड़ी में एक नाम सुखमति का भी है। जो निश्चित रूप से आर्थिक रूप से बहुत कमजोर यू कहें कि अंतिम कड़ी है। उसने दान में जो दिया उसे शहर शहर का एक एक आदमी ताउम्र नहीं भूलेगा।
 
            भीख मांगकर जीवनयापन करने वाली 72 साल की सुखमति को जानकारी मिली कि लिंगियाडीह पार्षद और जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष विजय केशरवानी बीते एक पखवाड़े से वार्ड में गरीबों के बीच लगातार सेवा कर रहे हैं। लोगों के घर घूम घूम कर आनाज बांट रहे हैं। किसी से सहयोग मांग रहे हैं। तो किसी को सहयोग दे रहे हैं। पार्षद के सेवाभाव को देखने के बाद सुखमति ने विजय से मिलने की इच्छा जाहिर की ।
 
 मिलने की इच्छा जाहिर की
 
         सुखमति की इच्छा की जानकारी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के माध्यम से विजय केशरवानी तक पहुंची। विजय केशरवानी को लगा कि उसके वार्ड मतदाता को जरूर कोई तकलीफ है। इसलिए उसने याद किया है। उसके बाद विजय केशरवानी तत्काल लिंगियाडीह स्थित सुखमती के घर पहुंच गए। विजय को देखते ही सुखमति की आंखे चमक उठी। उसने तत्काल भीख मांग कर एकत्रित चावल के एक एक दाना को बोरे में भरकर विजय के सामने रख दिया। यह सब देखने के बाद विजय को समझ नहीं आया कि आखिर महिला चाहती क्या है।
 
पार्षद की छलछला गयी आंखें
 
              विजय की उलझन को देख सुखमति समझ गयी। और फिर बोली कि मैं भी समाज को कुछ देना चाहती हूं। इतना चावल वह पिछले दस साल में इकठ्ठा की है। चाहती हूं कि इस गरीबों में बांट दिया जाए। इतना सुनते ही विजय केशरवानी की आंखे छलछला गयी। उन्हें कुछ समझ में  ही नहीं आ रहा था कि आखिर इस भिखारिन माता की इतना बड़ा दिल कैसे हो सकता है। क्योंकि जिन्हें समाज को कुछ देना चाहिे उन्होने अपनी तिजोरी तो बन्द कर रखी है। जिसे उस तिजोरी की जरूरत है वही समाज को कुछ देना चाहती है।
 
 चावल के साथ कपड़े भी दान        
 
               सुखमति ने विजय केशरवानी को एक क्विंटल चावल के अलावा साड़ियां भी दान की है। सुखमति ने कहा कि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि भूख किसे कहते हैं। और भूख के आगे इंसान कितना बेवश हो जाता है। क्या कुछ नहीं कर जाता। चूंकि चावल और कपड़े उसे समामज ने ही दिया है। इसलिए मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह समाज को कुछ दे। यह जानते हुए भी कि उसके पास कुछ नहीं है। इसलिए जो समाज ने दिया है उसे लौटा रही हूं। रही बात आने वाले दिनों की तो …भीख मांगना उसका पेशा है। भीख मांगकर बच्चों का पालन पोषण कर लेगी।
 
पढाई का उठाया जिम्मा
 
              सुखमति के बड़े दिल को देखने के बाद विजय केशरवानी ने बताया कि मैने अपने राजनीतिक जीवन इससे बड़ा दान करते किसी को नहीं देखा। अक्सर ऐसा मामला या तो रियल लाइफ देखने को मिलता है। अथवा किसी उपन्यास मेे पढ़ने को मिलता है। मैं धन्य हूं कि मेरे वार्ड में एक से बढ़कर एक बढ़कर दानदाता रहते हैं।
   
                      विजय ने कहा कि मैने संकल्प लिया है कि सुखमति की दोनों नातिनों की पढ़ाई का खर्च उठाना है। सुखमति को अब भीख मांगना ना पड़े कुछ ऐसी व्यवस्था को अंजाम देना है।
close