बिलासपुर।3 टीयर लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) तकनीक के कोचेस से हो रहा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण सहनीय डेसिबल क्षमता से ज्यादा शोर होता है। यह कोई तकनीक विशेषज्ञ नही बल्कि रोजाना यात्रा करने वाले यात्रियों का अनुभव है।समय और रफ्तार दो ऐसे पहलू है जिसे आज हर कोई अपने काबू में करना चाहता है। बदलती तकनीक और समय के साथ आवागमन के साधनों में बहुत तेजी से परिवर्तन आया है। हाई स्पीड दौड़ती ट्रेनो से घंटों का सफर आसान हो गया है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिये यह क्लिक करे
तेज रफ्तार के बीच यात्री सुरक्षा एवं स्वास्थ्य यात्री सुविधा का महत्वपूर्ण आधार होता है । जोन से गुजरने वाली अधिकांश ट्रेनों में इन दिनों स्लीपर 3 श्रेणी में भी लाल रंग के हाफमेन लिंक बुश (एलएचबी) कोचेस लगाए जा रहे हैं जो कन्वेंशनल कोचों की तुलना में अधिक तेज गति से चल सकते हैं।
जिनका इंटीरियर एलमुनियम का होता है तथा लंबाई और चौड़ाई सामान्य डिब्बो की तुलना में अधिक होती है, स्टेनलेस स्टील से बने हुए के कारण यहां सामान्य की तुलना में हल्के होते हैं, डिस्क ब्रेक और बायो टॉयलेट जैसी सुविधाएं भी इन डिब्बो में होती है।
लेकिन यात्री सुविधा में यात्री स्वास्थ्य की दृष्टि से इन डिब्बो में यह बड़ी खामी सामने आई है कि स्लीपर 3टियर श्रेणी के एलएचबी कोचेस में सफर के दौरान सामान्य यात्री डिब्बो से भी अधिक ध्वनि होती है,तेज आवाजो से यात्रियों को ध्वनि प्रदूषण लम्बी दूरी के सफर में सामना करना पड़ता है।
दैनिक यात्री अपना अनुभव साझा करते हुए बताते है कि ध्वनि के बाद इस एलएचबी कोच में गाड़ी खड़ी होने पर और गाड़ी चलने पर झटके ज्यादा लगते है।
कन्वेंशनल कोचों में ऐसे झटके बहुत ही कम होते है।विशेषज्ञ बताते है कि अधिक ध्वनि के बीच रहने वालों को थकान ,सिरदर्द,बैचनी,चिड़चिड़ापन की समस्या का सामना करना पड़ सकता हैं। और ध्वनी प्रदूषण के बीच रेल यात्रा या कोई अन्य साधन सेकोई नियमित यात्रा करे तो उनमें ऊंचा सुनने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
रेल प्रशासन को चाहिए कि परीक्षण के दौरान सहनीय ध्वनि तीव्रता के अनुसार कोचेस को इस प्रकार से इंटीरियर किया जाए ताकि यात्रियों की सहनीय डेसिबल क्षमता के अंतर्गत उत्पन्न ध्वनि में यात्रा संपन्न हो सके और अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण की स्तिथि न हो ।
ज्ञातव्य है कि इन एलएचबी कोचेस को नॉइस लेवल पर 60 डेसीबल तक की ध्वनि तीव्रता का बताया जाता है जो कि परंपरागत कोचों से कम शोर उत्पन्न करते है लेकिन यह देखने में आया है परंपरागत रेल कोच की बजाए एलएचबी कोच वाली गाड़ियों में यात्रियों को अधिक शोर संबंधी समस्याओं का सामना करना बताया जा रहा है।
90 डेसीबल तीव्रता की ध्वनि मनुष्य की श्रवण क्षमता में होती है,इससे ऊपर ध्वनि प्रदूषण होता है। अमूमन यात्रा के दौरान लोग परेशान होते हैं , रफ्तार के साथ बढ़ता शोर से लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है पर इस विषय में सामान्यत: कोई शिकायत दर्ज नहीं कराते हैं लेकिन रेल प्रशासन को यह चाहिए कि वह नियमित परीक्षण कर इस समस्या को संज्ञान में लेकर व्यापक इंतजाम करें जिससे यात्री सुविधाजनक ढंग से अपनी यात्रा संपन्न कर सके।
लंबी दूरी तक दिल्ली,यूपी राजस्थान और साउथ जाने वाली जोन से अनेक गाड़ियों में लाल रंग की एलएचबी कोच लगाए गए हैं जो सामान्य डिब्बों की जगह अधिक आवाज करते हैं जिससे यात्रा के दौरान यात्रियों को ध्वनि प्रदूषण से संबंधित अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, रेल यात्रा को सुखमय एवं आरामदायक बनाने के लिए रेल प्रशासन को चाहिए उक्त समस्या का परीक्षण कराकर आवश्यक उपाय शीघ्रता से करें।