(रुद्र अवस्थी)दुनिया भर में पर्यावरण की हिफाजत के संदेश के साथ मनाये जाने वाले इस दिन हम शहर की इन दो तस्वीरों को आमने – सामने रखककर आने वाले कल की तस्वीर खींचें तो कई सवाल उभरकर सामने आते हैं।
पहली तस्वीर शहर के लिंक रोड की है। जिसे कुदरत ने शहर का गौरव – पथ बनाया था। पिछले बरस वहां के सारे पेड़ काट डाले गए। दूसरी तस्वीर अरपा किनारे रिवर व्यू सड़क की है। जिसे हाल ही में वाई – फाई जोन के रूप में विकसित किया गया है।
लिंक शब्द के मायने के हिसाब से अपना लिंक रोड ऐसा था जिसकी हरियाली और खूबसूरती देखकर कोई भी कह सकता था कि यह शहर को हरियाली – पर्यावरण को लिंक यानी जोडने वाली सडक है। लेकिन यहां के पूरे पेड़ पिछले साल काट दिए गए।नजारा कुछ इस तरह से बदल गया कि कुछ साल बाद शहर आने वाले शख्स को समझना मुश्किल हो जाएगा कि यह सड़क कौन सी है।यकीनन व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों ने इतना बड़ा फैसला सोच – समझकर लिया होगा और ऐसी कोई योजना होगी जिससे लिंक रोड को और बेहतर बनाया जा रहा होगा। सुनते हैं कि साइंस ने ऐसी तकनीक इजाद कर ली है कि भारी से भारी पेड़ को भी उसी हालत में दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है। लिंक रोड के पेड़ हटाते समय हम तक यह तकनीक नहीं पहुंच सकी थी। खैर अब यह बहस बेमानी करार दी जा सकती है। लेकिन यह सवाल तो अपनी जगह कायम ही है कि हरियाली को तहस – नहस कर उसकी जगह हम जो करना चाहते हैं, उसमें भी तो आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कहां हो रहा है ? तब से केवल प्रयोग हो रहे हैं और उजाड़ से लगने वाले इस सड़क को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल ही है कि यहां नया क्या होने वाला है ? और तो और उन बूढ़े दरख्तों की जगह लेने के लिए नन्हे पौधे भी कहीं नजर नहीं आते । तरक्की का यह मॉडल शहर वालों को ठीक से समझ में आ जाए इसके लिए व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को अभी और मशक्कत करनी होगी। कम से कम यह तो समझाना ही पड़ेगा कि बरसों से अपनी ताकत पर खड़े विशाल दरख्तों की बिदाई के बाद क्या उनकी ठूंठों पर गमलों में पौधे रखकर शहर की आबोहवा की हिफाजत की कसम पर्यावरण दिवस पर लेंगे ।
अब बात दूसरी तस्वीर की….। जो अरपा किनारे रिवर व्यू की है। नगर निगम ने इसे हाल ही में विकसित किया है। रात की रंगीन रौशनी में खिंची गई इसकी तस्वीर इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।निगम ने इसे वाई – फाई जोन के रूप में तैयार किया है। यकीनन यह शहर की एक उपलब्धि है। खासकर नई पीढ़ी के लिए तो एक अच्छा उपहार है।नेट के नेटवर्क के साथ अपनी शाम गुजारने के लिए लोगों को एक खूबसूरत जगह मिल गई है।निगम ने इसके लिए काफी मेहनत की है और रुपया खर्चा किया है। लेकिन यह शहर भूला नहीं है कि नदी किनारे की यह सड़क सिम्स में समा गई थी और विकास की इस प्रक्रिया में गुम हुई इस सड़क की लोगों को अरसे से तलाश थी। कोई यह भी तो पूछ सकता है कि जहां एक तरफ राजधानी में जिस जगह सड़क नहीं थी वहां पर नई – नई सड़कें निकल आईं है और यहां न्यायधानी में गुम हुई सड़क के बदले मिले रिवर व्यू को क्या एक तोहफे के रूप में कबूल करें ?? और वाई – फाई की तरंगों के बीच पर्यावरण दिवस की शाम गुजारते हुए नई पीढ़ी को अपने बिलासपुर की किस पहचान से रू-ब-रू कराएं……? उस हरे – भरे लिंक रोड से या वाई – फाई से भरे रिवर व्यू से ….?