लॉक डाउन से कुम्हारों का काम ठप्प,मिट्टी के बर्तन की नहीं हो रही बिक्री

Shri Mi
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मुंगेली(अतुल श्रीवास्तव)लॉकडाउन की वजह के मुंगेली के कुम्हार काफी चिंतित नजर आ रहे है. सुबह से वे इस इंतजार में बैठे रहते है कि कोई तो उनके पास मटके खरीदने आएगा. जिससे उनकी आमदनी बढ़े, नवरात्री और अक्षय तृतीया कमाई का अच्छा समय होता है लेकिन ऐसा कतई नहीं हो रहा है. कुम्हार बताते है कि एकमात्र यही हमारे आमदनी का जरिया है. बता दें कि गर्मियों के मौसम में मिट्टी के बर्तनों की बेतहासा बिक्री होती है. भारी संख्या में लोग मटका, सुराही के साथ ही अन्य मिट्टी से बनी हुई सामाग्री खरीदने आते है.कुम्हारो ने बताया कि हम सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते है और उसे बेचते है, लेकिन कोरोना की वजह से खरीद्दार नहीं आ रहे है. हम सुबह से ही खाली बैठे रहते है. 4 बजे के बाद प्रसाशन की तरफ से ये कहा जाता है कि दुकाने बंद कर दीजिए.सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप News ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये,और रहे देश प्रदेश की विश्वसनीय खबरों से अपडेट

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सुबह से ही ये सोचकर दुकान लगाते है कि कोई तो हमारे पास से मिट्टी के बर्तनों की खरीद्दारी कर ले, लेकिन कुछ पर फीसदी लोग ही आते है. पहले के मुकाबले आमदनी काफी कम हो गई है. सरकार चावल तो दे रही है, लेकिन उससे क्या हो जाएगा. खर्च करने के लिए कुछ पैसे भी तो होने चाहिए.इस लाकडाउन में दूसरा कोई काम हमें नहीं मिलेगा. हम कैसे अपना गुजारा करेंगे ये हमें सोचना पड़ रहा है.

बड़ा सवाल यही है कि आम लोग जब घरों से बाहर निकलेंगे ही नहीं, तो कुम्हारों के मटके खरीदेगा कौन ? जब कोई खरीदेगा ही नहीं तो पैसे कहा से आएंगे ? लॉकडाउन की मार सिर्फ कुम्हार ही नहीं झेल रहे है, बल्कि वो तमाम गरीब तबके के लोगों को लॉकडाउन का दंश झेलना पड़ रहा है. घर से बाहर निकले, तो पुलिस की मार और घर में रहे, तो पेट की मार झेल रहे हैं. रोजमार्रा की जिंदगी जीने वालों के लिए अभी बड़ी दुख की घड़ी है.हालांकि कोरोना माहामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन का पालन करना जरूरी है. यदि जिंदगी रही तो कल इससे कहीं ज्यादा कमा सकते हैं. इसलिए बेवजह घरों से बाहर न निकलें लोग .

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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