रायपुर—-विधानसभा में चर्चा के दौरान विधायक अमित जोगी ने कहा कि राज्य सरकार ने सरगुजा जिले के घाटबर्रा गांव के आदिवासियों और वनवासियों के वन अधिकार पत्रों को निरस्त कर वन अधिकार अधिनियम 2006 का उल्लंघन किया है। देश की पहली ऐसी राज्य सरकार है जिसने वन अधिकार अधिनियम रक्रिया का घोर उल्लंघन किया है। अविलंब लोक महत्व के विषय पर चर्चा के दौरान अमित जोगी ने कहा है कि गरीब आदिवासियों का अधिकार छीन लिया गया है। ऐसा करने से पहले ना लिखित सूचना दी गई है और ना ही स्पष्ट कारण बताया गया है।
अमित जोगी ने चर्चा के दौरान कहा कि घाटबर्रा की वन भूमि में कोयले के खनन की क्लीरन्स देने की जल्दबाज़ी में सरकार ने एक नहीं तीन क़ानूनी प्रावधानों की धज्जियाँ उड़ायी है। मई 2014 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने नई गाइड् लाईन जारी कर नई परियोजना लागू करने में ग्राम सभा की अनुमति की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। 23 जून 2015 को केंद्रीय आदिम जाति मंत्रालय ने राज्य सरकारों को 2 महीने के भीतर सभी वनवासियों को वनाधिकार पट्टे देने के निर्देश जारी किया। 27 जुलाई 2015 को राज्य के आदिम जाती मंत्रालय के अपर मुख्य सचिव ने सभी कलेक्टरों को 15 अगस्त 2015 के पहले सभी ग्राम सभाओं को प्रमाणित करने के निर्देश दे दिए कि कोई भी वनाधिकार दावा लम्बित नहीं है।
अमित जोगी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के जंगल में मंगल नहीं दंगल चल रहा है। चहेते उद्योगपति को फायदा पहुंचाया जा रहा है। 8 जनवरी 2016 को जारी अपने आदेश में घाटबर्रा गांव में आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए सामुदायिक भूमि अधिकारों को रद्द कर दिया। इसका परिणाम आज ये है कि जहाँ एक तरफ़ कोयले से लदे ट्रक आम आदमियों को रोज़ कीड़े.मकौड़े की तरह रौंदे रहे हैं।
एक भी ग़ैर आदिवासी वनवासी को व्यक्तिगत वनाधिकार पट्टा जारी नहीं किया गया है. पट्टा जारी करना तो दूर उनके आवेदन तक स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं। निरस्तीकरण के विरुद्ध अपील के निर्धारण की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। प्रक्रिया को इतना जटिल बनाया है कि कोई भी सामान्य व्यक्ति अपील दायर करने की सोच भी नहीं सकता।
वन अधिकार अधिनियम के परिपालन के लिए वर्ष 2009 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के दिशा निर्देश का पालन नहीं किया गया। छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर हो रहे वन अधिकार उल्लंघन पर अमित जोगी ने सदन का ध्यानाकर्षित करते हुए कहा कि आदिवासियों को उनका अधिकार न देना उनके हितों के साथ कुठाराघात करना है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार का ये कदम को आदिवासियों को वन अधिकार के तहत मिले हक को छीनने की कोशिश है।