विरोध के लिए विरोध नहीं…आउटसोर्सिंग जरूरी

BHASKAR MISHRA
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IMG-20151019-WA0001बिलासपुर—लालबहादुर शास्त्री स्कूल स्थित देवकीनंदन सभागार में आज कांग्रेस और एनएसयूआई ने आऊटसोर्सिंग मुद्दे पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला में विवेक जोगलेकर,रोहित शर्मा,विश्वेष ठाकरे और हर्ष पाण्डेय ने अपने विचार रखे।

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                 कार्यशाला को संबोधित करते हुए आईबीसी के वरिष्ठ पत्रकार विश्वेष ठाकरे ने कहा कि मै शिक्षा में ठेका पद्धति का विरोधी हूं। सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि हम इतने संकुचित कभी नहीं थे। जितने आज हो गये हैं। शिक्षा को लेकर हमारे देश में आउटसोर्सिंग का मुद्दा कभी नहीं रहा। यदि ऐसा होता तो कृष्ण संदीपनी से, राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न वशिष्ट और विश्वमित्र से कभी शिक्षा ही नहीं पाते। ठाकरे ने कहा कि ये विद्वान उत्तर प्रदेश से नहीं थे।

                                विश्वेष ठाकरे ने कहा कि वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक शिक्षा को सीमाओं में बांटकर नहीं देखा गया। तेयजी ने तमिलनाडु में.इब्नबतूता ने दिल्ली में,ह्वेनसांग और फाह्यान ने सम्पूर्ण भारत से शिक्षा संस्कृति को ना केवल घूम घूम कर अध्ययन किया बल्कि अपने ज्ञान को भी बांटा। उन्होने कहा कि नालंदा,तक्षशिला में सैकड़ों शिक्षक और विद्यार्थी बाहर के ही थे। लेकिन हम क्षेत्रीय पहचान से निकलने को क्यों तैयार नहीं है। सोचता हूं कि…क्या हमने ही वसुदैव कुटुम्बकम की भावना दी थी। जिसे आज ग्लोबलाइजेशन के रूप में जानता है।

                 ठाकरे ने कहा कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है। सदियों से हमें यही बताया गया है। हम केवल विरोध के लिए विरोध ना करें। दिमाग खुला रखे। जहां ज्ञान की चार बातें मिले उसे लपक लें। मेरी जानकारी में आज तक शिक्षा को लेकर इतना विवाद नहीं कभी नहीं हुआ.. जितना हो रहा है। यह अच्छे संकेत नहीं है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान हमें और हमारे प्रदेश को ही होगा।

                                ठाकरे ने आउटसोर्सिंग के साथ उस विचारधारा का भी विरोध किया जिसमें इंजीनियर को शिक्षक बनाने की बात कहीं जा रही है। उन्होने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो शिक्षा जगत को चौतरफा नुकसान होगा।

               हर्ष ट्यूटोरियल्स के चैयरमैन हर्ष पाण्डेय़ ने कहा कि आउटसोर्सिंग नाम छत्तीसगढ़ के लिए नया हो सकता है लेकिन प्रक्रिया पुरानी है। सदियों से यह होता आया है। आगे भी होता रहेगा। इसे संकीर्ण भावना से देखने की जरूरत नहीं है पाण्डेय ने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है उसे राष्ट्रीय स्तर पर सोचना है। यदि प्रदेश में गणित और अंग्रेजी के शिक्षक नहीं मिल रहे हैं या जो शिक्षक मौजूद हैं उनमें सुधार की जरूरत है तो आउटसोर्सिंग गलत नहीं है।

             हर्ष पाण्डेय़ ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन का दौर है। यदि इस प्रकार की सोच रखेंगे तो विश्व के कोने-कोने में अपनी सेवाएं दे रहे भारतीयों की क्या स्थिति होगी। उन्होने कहा कि मै शिक्षा जगत से जुड़ा हूं…शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हूं.। बेहतर भविष्य के लिए यदि बाहर से शिक्षक लाए जाते हैं तो किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। चंद शिक्षक प्रदेश के हजारों लाखों बच्चों के भविष्य को उज्जवल बना देंगे।

               हर्ष पाण्डेय ने वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक आउटसोर्सिंग के कई उदाहरण दिये। उन्होंने कहा कि नासा, जापान, फ्रांस, सिंगापुर कहां नहीं हैं भारतीय। यदि उनके खिलाफ स्थानीय सरकार कदम उठाए तो हमारा क्या हाल होगा। उन्होंने कहा कि हम भारत से ज्यादा प्रदेश के हित में सोचना शुरू कर दिये हैं। कल जब यहां के बच्चे बाहर के प्रदेशों में नौकरी करने जाएंगे तो वहां आउटसोर्सिंग जैसा मुद्दा उठाया जाएगा। तब हमारी स्थिति क्या होगी।

              पाण्डेय ने कहा कि मै तो सरकार से कहना चाहुंगा जो शिक्षक आउटसोर्सिंग से आ रहे हैं उन्हें स्थायी रूप से रखा जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह पढ़ायेगा कम भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित रहेगा।

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