शिक्षकों के ई-अटेंडेंस का MP में व्यापक विरोध… संगठनों ने दी आँदोलन की चेतावनी

Chief Editor
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भोपाल । मध्यप्रदेश में शिक्षकों की हाजिरी के लिए शुरू की जा रही ई-अटेंडेंस सिस्टम का विरोध शुरू हो गया है। अध्यापक संघ ने इसका जमकर विरोध किया है । इस सिलसिलें में तमाम जिलों में ज्ञापन सौंपकर इस सिस्टम के खिलाफ आँदोलन की चेतावनी दी गई है।राज्य अध्यापक संघ के प्राताध्यक्ष जगदीश यादव ने कहा कि  E-attendens के व्यवहारिक खिलाफ में शुरू से रहा हूँ। मध्यप्रदेश के मेरे कई जिलाध्यक्ष , ब्लॉक अध्यक्ष एवम प्रदेश पदाधिकारियों के अभिमत के आधार पर आज मैंने मध्यप्रदेश शासन को एक पत्र लिखकर आगाह किया कि इस तुगलकी फरमान को अविलम्ब वापस लें वरना मध्यप्रदेश के लाखों अध्यापक इसके खिलाफ सड़को पर होंगे, जिसकी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी। यदि इस पर सरकार ने निर्णय नही लिया तो कल 30 मार्च को राज्य अध्यापक संघ की होने वाली प्रांतीय बैठक में आगामी आंदोलन की घोषणा कर दी जायेगी। किसी भी कीमत पर यह व्यवस्था केवल शिक्षा विभाग में ही लागू नही होने देगें।पूर्णतया ई-अटेंडनेश का राज्य अध्यापक संघ बहिष्कार करता है। सभी अध्यापक भाइयो और बहनो से निवेदन है कि आप धैर्य और संयम बनाये रखे राज्य अध्यापक संघ सरकार के हर उस कदम के खिलाफ रहेगा जिससे अध्यापको का अहित होता हो।मुरैना में  ई अटेंडेंस को लेकर पूरे प्रदेश में ज्ञापनों का दौर जारी है। इसी कड़ी में आज चंबल संभाग के जिला मुख्यालय मुरैना पर अध्यापक अधिकारी शिक्षक कर्मचारी संयुक्त मोर्चा ने सीएम के नाम ज्ञापन डिप्टी कलेक्टर सुरेश जाधव को सौंपा ।ज्ञापन में मांग की गई है कि ई अटेंडेंस में काफी खामियां है  । उन्हें दूर किया जाय महिला शिक्षकों को सुरक्षा मुहैया कराई जाय गांवों  में नेट वर्क नहीं आते हैं।दिब्यांग शिक्षक अध्यापक भाई केसे ई अटेंडेंस लगाएंगे इसीलिए ऐसे आदेश को बापिस ले सरकार ।इससे पूर्व नगरनिगम मुरैना पर बैठक की गई जिसमें सभी अध्यापक अधिकारी शिक्षक कर्मचारियों ने अपने अपने विचार ब्यक्त किए।
आज की रैली में

सागर में शैलेन्द्र सिंह गम्भीरिया ने कहा कि एम शिक्षा मित्र एप की अनेक खामियों,विसंगतियों के चलते उसमें सुधार हेतु अनेक संघों द्वारा  27 मार्च को ज्ञापन सौंपा गया है।ताकि एप की विसंगतियों के कारण ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले शिक्षकों/अध्यापकों को अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े। रही बात ई अटेंडेंस की तो हम किसी भी प्रकार से उपस्थिति देने को तैयार हैं,बशर्ते कि विसंगतियों का निराकरण कर दिया जाये।*
*साथ ही हमारी सभी से करबद्ध अपील है कि अपनी-अपनी शालाओं में आवश्यक संसाधनों के अभाव के बाद भी हम पहले से दोगुनी मेहनत कर छात्रों को पढ़ायें ताकि छात्रों/अभिभावकों का निजी शालाओं से मोह भंग हो सके एवं हम शासकीय शालाओं की और बेहतर छवि समाज के समक्ष प्रस्तुत कर सकें।
*क्योंकि शासन की 25% छात्रों के निजी शालाओं में  एडमिशन की नीति के कारण शासकीय शालाओं में लगातार दर्ज कम हो रही है जिसके चलते सागर जिले की लगभग 450 प्राथमिक एवं माध्यमिक शासकीय शालायें बन्द होने के लिये तैयार हैं,और यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब सभी शासकीय शालायें बंद होने की कगार पर आ जाएंगी।फिर शिक्षा विभाग में संविलियन एवं अन्य सभी सुविधाएं भी मिल गयीं तो कोई काम की नहीँ।
अधिकार एवं कर्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं और जो अपने कर्तव्यों का भली भांति पालन करते हैं, केवल उन्हें ही अधिकार है कि वो अपने अधिकारों के लिये धरना/रैली आदि  के माध्यम से ज्ञापन सौंपकर प्रदर्शन करें और पहले भी प्रदर्शन करते आये हैं और सागर में भी 27 मार्च  को ऐसे ही शिक्षकों/अध्यापको ने प्रदर्शन किया।   कामचोर,स्वार्थी,कर्तव्यविहीन प्रकार के अध्यापकों/शिक्षकों को कोई अधिकार नहीं कि वो ऐसे कोई प्रदर्शन करें और न वो कभी करते हैं ।
आगर जिले में एम शिक्षा मित्र का विरोध करने  शिक्षा विभाग के समस्त संघ पहुचे ।27 मार्च  को  शिक्षा विभाग के सभी संघो ने एकजुट होकर एम शिक्षा मित्र योजना सिर्फ शिक्षा विभाग के अध्यापक और शिक्षको पर लागू करने का विरोध एक जुट होकर किया !नारे बाजी करते हुए पहले सभी ने कलेक्टर को ज्ञापन दिया और सरकार से एम शिक्षा मित्र लागू करने के पूर्व एंड्राइड मोबाइल और इंटरनेट भत्ता प्रेत्यक माह देने की मांग की ।तत्पशचात एक ज्ञापन जिला शिक्षा अधिकारी आगर को दिया और  मॉडल स्कूल में एम शिक्षा मित्र की ट्रेनिंग    ले रहे शिक्षको के साथ विरोध प्रदर्शन किया इस अवसर आजाद अध्यापक संघ के प्रांतीय संगठन मंत्री डैनी सूर्यवंशी, रविन्द्र मेड़ा जिला अध्यक्ष रविन्द्र मेड़ा, ब्लाक अध्यक्ष धर्मेंद्र भूरे, जिला सचिव धीरज भार्गव, करन मालवीय, मनोज सागर,  मेहरवान सिंह पंवार तृतीय  वर्ग कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष और जिला सचिव सुरेंद्र पुरोहित, जिला अध्यक्ष कालू सिंह यादव जिला सचिव पवन बैरागी, शिक्षा प्रोकोष्ठ के अक्षय दोहरे, संघर्ष समिति के अध्यक्ष ब्रज मोहन चौहान, राज्य अध्यापक संघ के जिला अध्यक्ष धर्मेंद्र भूरे, शिक्षक काँग्रेस अध्यक्ष रमेश बेगाना,शिक्षक संघ के महावीर जैन राज्य कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष सत्य प्रकाश श्रोत्रिय, देवी अध्यापक सिंह रैकवार, प्रेम नारायण जाटव, शिक्षक संघ के ब्लाक अध्यक्ष सुरेश चंद्र व्यास एवम सेकड़ो शिक्षक अध्यापक उपस्थित थे !

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छिंदवाड़ा में ई-अटेंडेंस के विरुद्ध शिक्षक अध्यापक संयुक्त मोर्चे द्वारा जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया गया।  लोगों ने कहा कि ई-अटेन्डेन्स के लिए आधारभूत संरचना खड़ी किए बगैर शासन द्वारा नवीन शिक्षण सत्र में ई-अटेंडेंस अनिवार्य कर दी गई है। ई-अटेंडेंस का चौतरफा विरोध हो रहा है। ई-अटेंडेंस के विरोध के मजबूत तर्क भी है जिसे किसी भी स्थिति मे नकारा नही जा सकता। ई-अटेंडेंस के विरोध का सिलसिला ज्ञापन और रैली से प्रारंभ हुआ था । अब 10वीं 12वीं मूल्यांकन के बहिष्कार तक जा पहुंचा है। इस अपमानजनक आदेश से खफा शिक्षक अध्यापक साइमन कमीशन के काले कानून की तर्ज पर गो बैक गो बैक ई-अटेंडेंस गो बैक के नारे लगाने के लिए बाध्य हो गया हैं। शिक्षक अध्यापक ई-अटेंडेंस को अपने सम्मान पर चोट महसूस कर रहा है। इसलिए शासन से बेहद नाराज हैं। शासन ने ई-अटेंडेंस व्यवस्था केवल शिक्षा विभाग में लागू की है जबकि सबसे अधिक प्रतिकूल परिस्थितियां इसी विभाग में है। अन्य विभागों के कर्मचारियों अधिकारियों पर ई-अटेंडेंस व्यवस्था लागू न करना सरकार के एक तरफा और मनमानी व्यवहार को दर्शा रहा है। ई-अटेंडेंस के सम्बन्ध मे शिक्षक अध्यापकों की चिंताओं को दूर किए बिना यदि ई-अटेंडेंस व्यवस्था बनी रही तो विरोध में बड़े आंदोलन से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ई अटेंडेंस में व्यवहारिक पक्ष को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। शिक्षकों अध्यापकों का ब्रेनवाश कर उसे मशीन जैसा संवेदन शून्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।  अध्यापको को मूल मुद्दे से भटकाया जा रहा है। यदि शिक्षक अध्यापक ई-अटेंडेंस के मकड़जाल में उलझकर संवेदन शून्य हो गया तो निश्चित ही इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव नौनिहालों पर पड़ेगा।

अध्यापक संघर्ष समिति मध्य प्रदेश के संचालन सदस्य हीरानंद नरवरिया ने कहा कि ई-अटेंडेंस का विरोध यानि स्कूली शिक्षा बचाने का संघर्ष है। स्कूली शिक्षा के साथ सरकार ने कुछ इस तरह का बर्ताव किया है, जैसे मप्र के सरकारी स्कूलों में पाकिस्तान के बच्चे पढ़ लिख रहे हों। सरकार की नीतियों ने स्कूली शिक्षा को इस स्थिति में पहुंचा दिया गया है कि खुद सरकार भी उसकी वास्तविक तस्वीर बताने में शर्माने लगी है, इसीलिए कक्षा 1 से 12वीं तक स्कूलों में नामांकित छात्रों की संख्या बताने में निजी स्कूलों का सहारा लेना पड़ा है। वित्तमंत्री ने स्कूली शिक्षा का बजट 21,724 करोड़ बताते समय तो अपना स्वर तेज कर लिया था और जब छात्र और शिक्षकों की स्थिति में बोलने की बारी आई तो पानी का गिलास उठाकर पानी पीने लगे और सीधे शिक्षा की गुणवत्ता पर बोले। शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने को सरकार की प्राथमिकता बताया यानि ई-अटेंडेंस की पैरवी की जबकि बजट भाषण में इसकी कोई जरूरत नहीं थी। 

ई-अटेंडेंस का विरोध क्यों हो रहा है, यह बात अब कम से कम सरकार को समझना चाहिए। स्कूलों में अटेंडेंस पहली बार नहीं लोग रही है, यह काम तो शिक्षक पहले दिन से करता आ रहा है और वेतन भी उसे अटेंडेंस के आधार पर ही मिलता है, इसीलिए अटेंडेंस कोई मुद्दा नहीं है बल्कि अटेंडेंस की आड़ में सरकार की मंशा का विरोध हो रहा है। 

ई-अटेंडेंस के पीछे सरकार की मंशा क्या है, यह अब समझने की जरूरत है। सरकार यदि ई-अटेंडेंस शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए लाई होती, तब उसे  ई-अटेंडेंस से पहले शिक्षकों को गैरशैक्षणिक कार्यों से मुक्त करने का आदेश करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस तरह आसानी से समझा जा सकता है कि सरकार की मंशा शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना नहीं बल्कि स्कूल के नाम पर खाली पड़ी ईमारतों में बैठे शिक्षकों को परेशान करके उन ईमारतों से दूर कर देना है।

ई-अटेंडेंस से पहले सरकार को चिता करनी चाहिए थी कि छात्र विहीन होते जा रहे  स्कूलों में बच्चों को कैसे रोका जाए, लेकिन ऐसी कोई चिंता न सरकार की है और न ही बजट भाषण में वित्तमंत्री ने कुछ बोला। स्कूल शिक्षा मंत्री तो अध्यापक नेताओं से पैर छिलाने और फूल-मालाएं पहनने के काम के बचे हैं, इसीलिए उनसे कुछ उम्मीद करना बेकार है।

ई-अटेंडेंस का विरोध कर रही अध्यापक संघर्ष समिति दो साल पहले ही सरकार को अपना मांगपत्र सौंपकर मांग कर चुकी है कि कम से कम 5000 की आबादी वाले गांव एवं कस्बों में निजी स्कूलों को मान्यता देना बंद किया जाए और पूर्व में दी गई मान्यता को समाप्त किया जाए। ई-अटेंडेंस का विरोध करने के साथ-साथ प्रदेश के शिक्षक अपनी इसी मांग को दोहरा रहे हैं, इसीलिए ई-अटेंडेंस का विरोध वास्तव में स्कूली शिक्षा को बचाने का संघर्ष है, जिसमें हर अध्यापक, शिक्षक एवं दीगर कर्मचारियों को संघ एवं संगठनों की सीमाओं से ऊपर उठकर साथ देना चाहिए।

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