बिलासपुर (मनीष जायसवाल) । पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही मुद्दे भी चर्चा में आ रहे हैं। हाल के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों – खासकर शिक्षा कर्मियों के संविलयन, वेतन विसंगति, क्रमोन्नति, पदोन्नति जैसी मुद्दों पर भी हलचल मची हुई है। जिसमें यह सवाल भी अहम् है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की नई सरकारें आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर क्या फैसला करने वाली हैं, जिससे शिक्षा कर्मियों के असंतोष को दूर किया जा सके।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को विधानसभा चुनाव में शिक्षा कर्मियों के संविलियन से कितना लाभ हुआ यह सवाल नई सरकार बनने से चर्चा का विषय हो गया है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनो राज्यो में 2018 के विधानसभा चुनाव के कुछ महीने से पहले शिक्षा कर्मियों का संविलियन आंदोलन अपने चरम पर था। यह दोनों प्रदेश के मीडिया में सुर्खियों में रहा है।
दोनों राज्यो में उस समय BJP की सरकार थी और चुनाव के बाद दोनों राज्यो में सत्ता परिवर्तन हुआ। इस लिहाज से देखा जाय तो शिवराज सिंह और रमन सिंह ने शिक्षा कर्मियों की अब तक कि सबसे बड़ी माँग को दवाव में आनन फानन पूरा भी किये है।इधर कुछ शिक्षा कर्मियो का मानना है कि दोनों प्रदेश में हुए संविलियन में विसंगतियाँ है।
दोनों राज्यो की सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाया । प्रदेश के पंचायत विभाग के कर्मचारियों को बहुत बड़े सँख्या बल के हिसाब से उनका शासकीय करण किया जाना उन लाखों परिवारो के लिए दीवाली से कम नही था।….. जिनका संविलियन हुआ।
संविलियन के बाद दोनों राज्यों के संविदा शिक्षक राज्य के नियमित शिक्षक बन गए। दोनों राज्यों में एक अलग कैडर का जन्म हुआ। मध्यप्रदेश के अध्यापक और छत्तीसगढ़ के पंचायत विभाग के शिक्षक संविलियन होने पर शिक्षा विभाग के नियंत्रण में आये।
संविलियन की प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ ने बाजी मारी और युद्ध स्तर में एक लाख अस्सी हजार शिक्षा कर्मियो के अनुमानित आंकड़ो में से एक लाख तीन हजार शिक्षा कर्मियो का जिन्होंने आठ वर्ष पूर्ण कर लिया था, उनका संविलियन कर दिया गया और तनख्वाह देना भी शुरू कर दिया गया। जबकि मध्यप्रदेश में संविलियन की प्रक्रिया विधानसभा चुनाव की वजह से आधे अधूरे रह गई थी । नई सरकार आने के बाद भी कई जिलों में प्रक्रियाधीन है।
विधानसभा चुनाव के पूर्व दोनों प्रदेशों में हुए संविलियन में कई विसंगति शिक्षक संघो को लग रही थी। जब संविलियन मॉडल सामने आया तो संविलियन विसंगति का मुद्दा बनने लगा । शिक्षक संघ की मुख्यमंत्री से मुलाकात और ज्ञापन पर आश्वासन मिला की कमियों को दूर किया जायेगा। पर।शिक्षक संघ चाहते थे कि इसे तत्काल दूर किया जाय। जिसपर शायद सहमति नही बन पाई जिससे कई असन्तुष्ट शिक्षक संघो ने इस मूददे को हवा दी। और चुनाव नजदीक था इस मुद्दे की आग फैली और यह मुद्दा फिर उठा और इस कदर उठा कि दोनों ही प्रदेशों के जिन शिक्षक संघो ने अगुवाई करके संविलियन दिलवाया उनकी जड़े तक हिल गई.. ! एक बार तो लगा कि दोनों राज्यो की सरकारें । संविलियन करके घिर गई है। रायपुर और भोपाल के अखाड़े में शिक्षा कर्मियों का जमावड़ा हुआ पर बड़ा अखाड़ा नही बन पाया। जिसकी वजह कमजोर नेतृत्व एवं रणनीति और तत्कालीन परिस्थितियाँ हो सकती है।
छत्तीसगढ़ में मोर्चे से जुड़े तीन बड़े और पुराने संगठन जिनकी अगुवाई में संविलियन मुद्दा ज्ञापन गुलदस्ते से बाहर आया और सड़क पर कोहराम मचाया उन्होंने ने अपनी अलग रणनीति के तहत सरकार को धन्यवाद ज्ञापन दे संविलियन सम्मान चलाया । ताकि सरकार अपने संविलियन विसंगति में सुधार कर दे। और बाकि मांगो के लिए आश्वासन कर घोषणा कर दे। लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।सरकार के इस बर्ताव से एक तरफ 70-80% शिक्षाकर्मी सरकार से नाराज़ हो गए तो दूसरी तरफ संविलियन प्राप्त कर सरकार का धन्यवाद ज्ञापित करता जय- जयकारा लगाने वाले शिक्षाकर्मी भी आपने भविष्य को लेकर आशंकित हो गया ।कहीं सरकार वापस सत्ता में आने के बाद 2013 की तरह शिक्षाकर्मियों को दिए सौगात में कटौती ना कर दे।क्योंकि 2013 में भी छत्तीसगढ़ में रमन सरकार ने शिक्षाकर्मियों को 6 वें वेतन की सौगात दिया था किन्तु पुनः सत्ता में आने के बाद भत्तों में कटौती कर दी गई थी ।संविलियन के बाद राजपत्र का प्रकाशन ना करना उनके इस आशंका को और हवा दे रहा था।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विपक्ष ने शिक्षा कर्मियो को अपना पूर्ण समर्थन दिया हुआ था और संविलियन और वेतन विसंगति को दूर करने के लिए घोषणा पत्र में स्थान भी दिया ।
चुनाव से पूर्व दवाब समूह सरकारों पर अपनी मांगों को मनवाने के लिए जबरदस्त दवाब बनाते है।दोनों प्रदेशो में शिक्षा कर्मिंयो के संविलियन ने अन्य कर्मचारी संघो को एक दिशा प्रदान की थी । उनकी मांगे पूरी हुई हमारी भी होगी डटे रहो यह चर्चा आम हो गई थी । अकेले रायपुर के ईदगाह भाटा मैदान में 20 से 25 संविदा और दैनिक वेतनभोगी व अन्य कर्मचारी संघो ने अपना टेंट लगा विरोध शुरू किया था । छत्तीसगढ़ में पुलिसकर्मियों के परिजनों और लिपिकों के आंदोलन की धार को शिक्षा कर्मियो को मिले संविलियन ने आग में घी का काम किया था।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों की सरकारो ने जब शिक्षा कर्मियो का संविलियन किया , तो लाभ किसे मिला….? दोनों राज्यो में तख्तापलट हुआ है।कर्मचारियों के डाक मत देखा जाय तो वोट सरकार के पक्ष में नही दिखे। लोकसभा चुनाव नजदीक है।पर राज्यों के कर्मचारियों को अगले पांच साल इन्ही सरकार के साथ गुजरना है। ऐसे में शिक्षा कर्मियो की विसंगतियों को शिक्षक संघ क्या ईमानदारी और दमदारी से सरकार के समक्ष रख पायँगे। अकेले छत्तीसगढ़ में अभी आठ वर्ष से कम सेवा किये हुए शिक्षको की संख्या पचास हज़ार के पार है। इनमे से ज्यादातर शिक्षक संघ के नेता और उनके पदाधिकारियो का संविलियन हो चुका है। औऱ सबने सहर्ष संविलियन स्वीकारा है। यह शिक्षा कर्मियो का समूह अब आने वाले चुनाव में सरकार को क्या लाभ दिला पाता है। इस ओर दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है।