शिक्षाकर्मियों की नजर अब भूपेश सरकार के बजट पर..केंद्र ने शिक्षा पर की 13 फ़ीसदी की बढ़ोतरी..क्या प्रदेश सरकार से भी होगी उम्मीदें पूरी….?

Shri Mi
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बिलासपुर।केंद्र सरकार के बजट 2021 में शिक्षा पर पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।इससे राज्यो के हिस्से में क्या आयेगा और शिक्षको क्या लाभ मिलेगा इस पर चर्चा जारी है।  पर अब शिक्षको की नज़र राज्य के बजट पर लग गई है।छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया है। सरकार के हाथों में कमान पूरी तरह आ चुकि है। कई मोर्चे पर सरकार की परफॉर्मेंस बेहतर भी हैं। इधर अब राज्य का बजट भी आने वाला है। यह बजट शिक्षा पर राज्य का विजन भी पेश कर सकता है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

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साल भर बाद राज्य के बजट से पूर्व प्रदेश के शिक्षको के बीच हलचल तेज हो गई है। शिक्षाकर्मी अपनी मांगों को लेकर नई सरकार बनने के बाद… तुंरत दान माह कल्याण होगा… सोचते रहे पर ऐसा हुआ नही। शिक्षको के बीच इस बात को लेकर संशय बरकार है कि उनके  आर्थिक लाभ के मुद्दे शामिल होंगे या नही होंगे।  क्योकि सरकार बनने से पूर्व की गई घोषणा और सरकार बनने के बाद लगभग हर जिले में  मुख्यमंत्री व मंत्रियों सहित विधायको को शिक्षा कर्मीयो के द्वारा अपनी मांगों को लेकर दिये जाने वाले ज्ञापन से आश्वासन के अलावा कुछ नही मिला है।  

छत्तीसगढ़ के चौथे विधानसभा चुनाव से पूर्व  शिक्षा कर्मीयो का जय संविलियन का नारा  प्रदेश के इतिहास ने अपनी एक अलग अलग छाप छोड़ गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की पूर्व रमन सरकार को अंततः शिक्षा कर्मीयो का स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन करना ही पड़ा।

  शिक्षा कर्मी मानते है कि पूर्व रमन सरकार  ने  शिक्षा कर्मीयो को किया हुआ वादा निभाया … . लेकिन वह भी सिर्फ आधा था …..! परन्तु कांग्रेस के घोषणा पत्र के हिसाब से वतर्मान भूपेश सरकार ने अपना वादा लटका दिया है…! ऊपर से न समयमान मिला न क्रमोन्नत वेतनमान और वर्ग तीन की वेतन विसंगति पर भी कुछ नही हुआ और तो और  शिक्षकों के अर्जित लाभ के एरियर्स को भी लटका दिया गया है। 

शिक्षाकर्मी कहते है कि शिक्षकों के जब भी आर्थिक लाभ के विषय आते है, इसे फाइलों में दबा दिया जाता है। और जब भी कोई शिक्षण के अलावा कोई काम पड़ता है तो इसे शिक्षको को थमा दिया जाता है।

नागरिक निकाय चुनाव और इसी बीच पंचायत चुनाव की वजह से  प्रदेश में आदर्श आचार सहिंता का एक लंबा दौर जारी है जिसके चलते शिक्षक नेता खुल कर सामने नही आ रहे है । अचार सहिंता खत्म होते ही शिक्षको के हितों से जुड़े सब मुद्दे बजट में शामिल किए जाने को लेकर  शिक्षक संघ यह मांग उठा सकते है। और आंदोलन कर शक्ति प्रदर्शन भी कर सकते है।

शिक्षक नेता बताते है कि पूर्व रमन सरकार के आठ वर्ष पूर्ण होने पर  शिक्षा कर्मीयो का संविलियन का  फार्मूला … वतर्मान सरकार जारी रखे हुए है। अब लगभग 15 हजार से कुछ अधिक शिक्षको का संविलियन होना शेष है। चार सालों बाद जब आगमी विधानसभा चुनाव होंगे तो एक हजार शिक्षको को छोड़ कर सभी का संविलियन हो चुका होगा।  ऐसे में वर्तमान सरकार ने शिक्षा कर्मीयो के लिए क्या किया यह प्रश्न  शिक्षको के बीच चर्चा का प्रमुख विषय बना रहेगा  ..!

 शिक्षक नेताओ से हुई चर्चा में यह बात सामने आई की शिक्षा कर्मीयो के अर्जित लाभ के एरियर्स व  अन्य आर्थिक लाभ के बचे हुए अतिरिक्त एरियर्स  …. जिसके लाभ के भागीदार सभी  शिक्षक है उंसे पाने के लिए सभी को  लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी ….! 

संविलियन के बाद शिक्षको के आर्थिक पक्ष में वेतन विसंगति एक बड़ा मुद्दा है। अभी शिक्षको के मूल वेतन में 15 से 20 हजार की विसंगति है।जब तक शिक्षको के वेतन का बेसिक नही बदलेगा तब तक ना DA का फायदा ना HR का फायदा ना NPS का फायदा ना ded /bed की दो वेतन वृद्धि के आर्थिक लाभ मिलेंगे। और ये सब  मामले सरकार के पास फाइलों में अटके हुए है। जिनका निदान बिना बजट में शामिल कििये होना  मुश्किल दिखाई देता है। 

आम शिक्षक  इस बात को स्वीकार करते है कि संविलियन के पश्चात भी प्रदेश में शिक्षाकर्मियों का धड़ा अनेक संघों में बटा हुआ है। और इनके बीच आपस वर्तमान में कोई सामंजस्य नही है। पूर्व के अनुभव यह बताते हैं कि शिक्षाकर्मियों का आंदोलन तभी सफल हुआ है जब सभी संघों ने मिलकर आंदोलन किया है। चाहे वह 2013 का आंदोलन हो या 2017 का आंदोलन जब – जब  साथ मिलकर लड़े हैं बड़ी सफलता हाथ लगी है।अब देखना यह होगा कि क्या अनेक गुटों में बटे शिक्षाकर्मी फिर से एक होकर कोई बड़ा आंदोलन कर पाएंगे। जिसकी सम्भावना नही के बराबर दिखाई देती है। क्योकि विपक्ष भी दमदारी से कर्मचारी संघों के साथ नही दिखाई दिया है।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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