शिक्षाकर्मियों के बीच तबादले को लेकर हलचल शुरू…बरसों बाद पहली बार मिला मौका…पारदर्शिता की उठ रही मांग

Chief Editor
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रायपुर । प्रदेश के शिक्षाकर्मियों का ट्रांसफर शिक्षा कर्मियों के जीवन में संविलियन के बाद दूसरी बड़ी सौगात लेकर आया है। वर्तमान माहौल एक उत्सव जैसा ही नज़र आ रहा है। ट्रांसफर को लेकर  शिक्षकों के परिजन भी उत्साहित है।हालांकि इसका लाभ संविलियन हुए शिक्षक ही ले पाएंगे और इस वर्ष यह लाभ केवल (सरकार के आदेश के अनुसार) 10 प्रतिशत कर्मचारियों को ही मिल पायेगा।शिक्षकों के बीच की चर्चाओं की माने तो भूपेश सरकार ने जो शिक्षकों के ट्रांसफर का फैसला लिया हैं वह काबिले तारीफ है। पूर्व सरकार अफसरों के दम पर चलती थी और अफसर नही चाहते थे कि शिक्षा कर्मियों के ट्रांसफर को लेकर बेवजह सिर दर्द हो। पूर्व सरकार के कार्यकाल में शिक्षा कर्मियों के ट्रांसफर हुए है  । पर आम शिक्षकों को फायदा नही हुआ ।  इस प्रक्रिया में आम शिक्षक दूर हो गए थे।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
जरूत्तमंद तो ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद ट्रांसफर का लाभ नही ले  पाए। शिक्षकों के बीच यह चर्चा भी आम है कि  एक जिले से दूसरे जिले में जाने के लिए मन मुताबिक जगह के लिए एक से दो लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है।  जिनका बजट हो वह तैयारी करें  । वही जिला स्तर में  कम से कम 50 हजार लग सकता है।
वही दूसरी बात यह भी सुनाई दे रही है कि मुख्यमंत्री की नजर ट्रांसफर पर लगी हुई है।  ट्रांसफर में गड़बड़ी करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को  इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
इस बारे में शिक्षक नेताओँ से बातचीत की गई तो उन्होने भी अपनी – अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं।  संविलियन किये हुए शिक्षकों के लिए स्थानांतरण नीति लागू होने पर शिक्षक नेता विकास सिंह राजपूत ने बताया कि मोर्चा अपने शिक्षा कर्मी साथियों के लिए खुले स्थानांतरण का शुरू से पक्षधर रहा है। और मोर्चा का यह एजेंडा भी था।हम लोगो ने हर वक़्त इस मूददे को सामने रखा है। सरकार के इस कदम का स्वगात है। उम्मीद है कि शिक्षको के स्थानांतरण में पारदर्शिता रहेगी।
केदार जैन ने बताया कि संविलियन की खुशी अधूरी है ।  संविलियन से अभी लगभग 45 हजार शिक्षाकर्मी साथी दूर है। मोर्चे के आंदोलन में हमने संविलियन सहित आठ सूत्रीय मांगों को लेकर महा आंदोलन किया था। खुली स्थानांतरण नीति भी प्रमुख माँग थी जो वर्तमान सरकार ने सही समय पर जारी कर दी है।केदार जैन ने बताया कि संविलियन हुए शिक्षको के लिए स्थानांतरण नीति अपने गृह ग्राम वापसी के लिए एक अवसर है। उम्मीद है सरकार का यह कदम यह आम शिक्षकों के लिए लाभकारी होगा।
मोर्चे की अगुवाई में संविलियन के आंदोलन के दौरान रायपुर में गिरफ्तार हुए और जेल गए जेल यात्री संदीप त्रिपाठी ने बताया कि संविलियन की लड़ाई में सबका योगदान था। अभी संविलियन अधूरा है लेकिन पूरा है…! खुली स्थानांतरण नीति संविलियन आंदोलन से निकली है।संविलियन का विरोध करने से नही।
साधे लाल पटेल ने बताया कि शिक्षाकर्मी संविलियन से  पूर्व पंचायत कर्मी होते थे ।  इनका स्थानांतरण एक जटिल प्रक्रिया थी  । शिक्षाकर्मियों न जाने कितने का कितने दस्तावेज फेसबुक व्हाट्सएप दफ्तरों में म्यूचल के लिए चस्पा होंगे  । जिसमे लाभ केवल कुछ एक से दो प्रतिशत ही ले पाए है।  अब जाकर लगता है कि हम अब राज्य सरकार के कर्मचारी है।
शिक्षक नेता प्रदीप पांडेय ने कहा कि संविलियन के पश्चात हम राज्य शासन के कर्मचारी हो चुके हैं  । इसलिए ट्रांसफर का लाभ मिलना स्वभाविक है । किन्तु आज भी हमारे लगभग 45 हजार साथी संविलियन से वंचित हैं ।  जो शिक्षाकर्मी के रूप में कार्य कर रहे हैं।उन्हें भी ट्रांसफर की जरूरत है वे भी अपने घर परिवार से दूर नौकरी कर रहे हैं  ।।   किन्तु इस ट्रांसफर प्रक्रिया से उन्हें कोई लाभ नहीं हो रहा है। सरकार को इस विषय में भी ध्यान देना चाहिए था। संविलियन से वंचित साथियों के लिए भी स्थानांतरण नीति बनाना चाहिए था। ट्रांसफर पर लगी बैन को शिक्षाकर्मियों के लिए खोला जाना चाहिए था।
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