शिक्षाकर्मियों के हक़ और हालात की कहानी(दो)–पढ़िए वर्ग दो के शिक्षकों को क्या मिला..?क़ाबिलियत के बाद भी अब तक क्यों अधूरी है व्याख्याता बनने की आस..?

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(मनीष जायसवाल)संविलियन के पहले और  संविलियन के बाद वर्ग दो के मिडिल स्कूल के शिक्षक को क्या लाभ..?  क्या हानि हुई..?  यह सवाल पहले भी  सोशल मीडिया में चर्चा आ चुके है। यह वर्ग  अक्सर वर्ग विशेष के नेताओ के निशाने पर रहा है। वर्ग तीन से वर्ग दो में आये शिक्षको की वजह से इन दोनों वर्गों के बीच एक अदृश्य आपसी मन मुटाव की हल्की सी खाई क्यो बनी हुई है ..?  क्या शासन की नीतियों को दोष वर्ग दो भी सहता रहा है ..?  पूर्व और वर्तमान सरकार के समक्ष क्या समस्या आई जो इस वर्ग दो को उनकी प्रमुख मांग व्यख्याता बनने से दूर रखे हुए है..?  पद रहते हुए भी योग्यता पूर्ण कर चुके वर्ग दो के शिक्षको को मिडिल स्कूल का प्रभारी हेडमास्टर ही क्यो बनाया गया है ..?   क्या वर्ग दो का शिक्षक 2013 और 2018 के संविलियन आंदोलन में शामिल नही था ..? और शामिल था तो सिर्फ मुट्ठी भर था ..? शिक्षक आंदोलनों का  इतिहास कैसा था ..? आईए वर्ग दो पर हक और दावों के बीच सच्चाई को तलाशते की एक छोटी सी शुरुवात करते हुए । पेश है इस सीरीज़ की दूसरी कड़ी…CGWALL NEWS व्हाट्सएप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

             
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सन 1996 -97 में भोपाल में शिक्षा कर्मियों  को नियमित पद में भर्ती की मांग को लेकर आयोजित रैली के बाद सरकार ने  एक जनवरी 1998 को शिक्षा कर्मी भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1997 प्रकाशित किया जिसके तहत शिक्षा कर्मी की नियुक्ति पंचायत/नगरीय निकाय के  नियमित कर्मचारी के रूप में की गई । नियुक्ति के नियम शासकीय शिक्षको के अनुरूप शिक्षा कर्मी 3 के लिए 12 वी उत्तीर्ण एवम  डी एड , शिक्षा कर्मी 2 के लिए स्नातक एवं बी एड एवं शिक्षा  कर्मी 1 के लिए स्नाकोत्तर एवं बी एड रखा गया था। जिसमे आरक्षण के नियमो का पालन भी करना था।

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इस क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि मध्यप्रदेश काल से  शिक्षा कर्मियो की वरिष्ठता के सम्बंध में स्पष्ट निर्देश बताये जाते है कि पद भार ग्रहण किये जाने  के दिनांक का विचार किये बिना उस योग्यता  के क्रम के आधार पर अवधारित की जाएगी।  जिस पद में नियुक्ति के लिए  उनकी सिफारिश की गई है । अर्थात पूर्ववर्ती चयन के परिणाम स्वरूप नियुक्त व्यक्ति पश्चातवर्ती चयन के परिणाम स्वरूप नियुक्त व्यक्ति से वरिष्ठ होंगे । वरिष्ठता मुख्यतः पदोन्नति के लिए मिलता है ।

राज्य के अतीत की ओर पलट कर देखते है तो यह तस्वीर दिखाई देती है कि छत्तीसगढ़ सरकार बनने के बाद नई नई नियुक्तियों का सिलसिला बढ़ता गया। प्रदेश के जिला पंचायतों ने गाँव की गालियों के सीजी रोड जैसे नई नियुक्तियों के आदेश निकाले।  पदोन्नति के क्रम पर नीति सम्म्मत ध्यान नही दिया जिसकी हानि पूर्व नियमिय शिक्षको को भी हुई। इस व्यवस्था में वर्ग दो भी प्रभावित हुआ ।  इस वर्ग में  बहुत से  विषय विशेषज्ञ शिक्षक वर्ग तीन से पदोन्नत होकर भी आये थे। और बहुत से शिक्षक व्याख्याता भी बने है। अधिकांश  कला वर्ग के शिक्षक पदोन्नति की आस में है। वर्ग तीन से वर्ग दो गए शिक्षको के वेतन अंतर  बहुत अधिक है। जबकि वर्ग एक और वर्ग दो के बीच वेतन अंतर अधिक नही है।

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इस वर्ग को सबसे सहनशील वर्ग कहा जाता है। कुछ शिक्षको ने जो वर्गवाद का नारा उठाया है। उससे इस वर्ग को सबसे अधिक पीड़ा हुई है। शिक्षक संवर्ग सर्वहारा वर्ग माना जाता है। सभी ने बराबर कंधे से कंधा मिलाकर अपने हक की आवाज बुलंद की है।मध्यप्रदेश शासन काल  से अब तक जो भी शिक्षा कर्मियो को मिला वह तीनो शिक्षक संवर्ग को  बराबर मिला है। संविलियन हो या पुनरीक्षित वेतन मान हो प्रदेश में  शिक्षा की सबसे मजबूत बागडोर मिडिल स्कूल के हवाले होती है। कहा जाए कि सही मांयनो में असल पढ़ाई यही से शुरू होती है।

अतीत बताता है कि 2004  के बाद वर्ग दो को भी शैक्षणिक आहर्ता व कार्य अनुभव का लाभ मिला है। शासन की योजना अंतर्गत नए स्कूलो का उन्नयन हुआ कई शिक्षक पदोन्नत हुए व्यख्याता बने। जिसमे वर्ग तीन के भी शिक्षक शामिल थे।वर्ग दो का शिक्षक अधिकांश स्कूलो में शुरू से अब तक शिक्षक होते हुए शासन की नीतियों की वजह से  चपरासी ,क्लर्क ,स्टेनो सब का कार्य कर रहा है। पर सुविधा का लाभ विशेष नही पाया है। यहाँ तक मोबाईल भत्ता भी नही मिला है।पूर्ण की जगह प्रभारी  हेडमास्टर की भूमिका में वर्ग दो का शिक्षक हर जगह अधिक है। कुछ तो 1998 से एक  पद में है।

वर्ग तीन के शिक्षक नेताओ का बयान रहा है कि वर्ग तीन ही आंदोलनों में अगुवाई किया है। वही सब कुछ किया है जिसका लाभ उसे नही मिला है। पर अधिकांश शिक्षक संघ इस विचारधारा से इतेफाक नही रखते है।  और न ही आम सहायक शिक्षक उनका मानना है कि अब तक जो भी कुछ मिला है तीनो वर्ग को बराबर मिला है। तीनो ने अपना हक पाने के लिए जी जान लगा दिया है। जय संविलियन के नारे में जय घोष में किसी वर्ग विशेष शिक्षक की पहचान हो नही सकती .. सब एक ही शिक्षक परिवार का अंग है। सहायक शिक्षक का कहना है विसंगतियाँ है। पर उच्च वर्ग से मतभेद नही है।

वर्ग दो से जुड़े हक और दावे तलाशते हुए यह बात भी सामने आती है कि हर मोर्चे पर वर्ग दो का शिक्षक हाथ से हाथ जोड़ कर  खड़ा हुआ है।अब तक हुए ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर के आंदोलनो में  वर्ग दो के शिक्षक की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण रही जितनी वर्ग तीन और वर्ग एक कि थी। वर्ग दो के शिक्षक की संख्या लगभग 38,000 के आसपास होगी  और इस वर्ग ने शिक्षक मांगों के लिए आयोजित  शिक्षकों की हक की लड़ाई में  कई महत्वपूर्ण भूमिका अदा की  है। 2013 और 2018 के आंदोलन में ये प्रमुख रूप से शामिल थे। 2013 हुए आंदोलन जिसमे रायपुर से सबसे पहले शिक्षक नेता वीरेंद्र दुबे बर्खास्त हुए थे। और आंदोलन को दबाने के लिए बर्खास्तगी और निलंबन का सिलसिला बढ़ते हुए लगभग 68000 जा पहुँचा था। इसमे कई निलंबित बर्खास्त  वर्ग दो के भी शिक्षक भी शामिल थे।

2013 के शिक्षक आंदोलन जिसमें संजय शर्मा, केदार जैन, वीरेंद्र दुबे  के संघ प्रमुख हुआ करते थे इसके अलावा, कृष्ण कुमार नवरंग, चन्द्र देव राय,  विकास राजपूत, आनन्द मोहन झा मिल कर आठ संघ मोर्चा बना कर लड़े थे।  रमन सरकार के समक्ष अपनी मांगो पर आंदोलन किये थे।2018 के शिक्षक आंदोलन जैसे यह आंदोलन भी शून्य पर समाप्त हुआ।  हड़ताल और उसके बाद मांग के रूप में शिक्षक मोर्चा का बर्खास्त शिक्षको को बहाल करने की माँग तत्कालीन रमन सरकार के गले नही पच रही थी। विरोध के 38 दिन और शिक्षकों की बर्खास्तगी के 73 दिन तक अच्छा खासा विरोध चुनाव के ठीक पहले तैयार हो चुका था। इस बीच सरकार की ओर से 9 वर्ष पूर्ण करने वाले शिक्षकों के संविलियन मसौदा भी बनाया गया था। जिसे शिक्षक मोर्चा ने ना कर दिया था। अंततः एक अंतराल के बाद शिक्षको की बहाली और  पुनरीक्षित वेतनमान की घोषणा की गई । 

वर्ग तीन की यही से  वेतन विसंगति शुरू होती है। वर्ग तीन के वेतन विसंगति के लिए बाद में वरिष्ठ अधिकारियों  व सत्ता पक्ष की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि वर्ग तीन के नियमिय शिक्षको का पे स्केल शिक्षा कर्मियों के बराबर है। यदि इस स्केल में सुधार होता तो पूर्व नियमित शिक्षको का पे स्केल भी बढ़ता जिस पर राज्य शासन को आर्थिक भार बढ़ जाता। नियमित शिक्षक एरियर्स के पात्र होते उनका वेतन बहुत अधिक हो जाता  सरकार पर आर्थिक भार बढ़ जाता। वर्ग दो के शिक्षक अब एल्बी शिक्षक अधिकांश स्कूलों में प्रभारी प्रधान पाठक है। इस वर्ग के प्रभारियों को पूर्ण कालीन मिडिल स्कूल का प्रधान पाठक नही बनाया गया है। बीते सालों में कई वर्ग दो के शिक्षक व्यख्याता बन चुके है। कई आस में है औरसंविलियन के बाद पदोन्नति और क्रमोन्नत वेतनमान के लिए संघर्ष कर रहे है। 

प्रदेश के राजनीतिक मामले के वरिष्ठ पत्रकार सीजीवाल के सम्पादक भास्कर मिश्रा का मानना है कोई भी सरकार कर्मचारियों के बनाये दबाव  को तत्काल लागू करने में उनकी जीत मानती है। सत्ता पक्ष की मशीनरी दबाव के विपरीत कार्य करती है। क्योकि विपक्ष हमेशा सत्ता धारी दल के विरुद्ध उठे हर कदम को अपना संरक्षण देने का प्रयास करता है। इसी वजह से  कर्मचारियों का दवाब कम होते के बाद सरकार निर्णय लेती है। 

मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के पत्र के अनुसार 1999 के अनुसार जिलेवार नगरीय निकाय/जनपद/जिला पंचायत को सहायक शिक्षक ,शिक्षक एवं व्यख्याता के रिक्त पद के विरुद्ध क्रमशः शिक्षा क्रर्मी 3 शिक्षा क्रर्मी 2 एवम शिक्षा 1 के पद की स्वीकृति आयुक्त लोकशिक्षण द्बारा ही किया जाता था तब स्थानीय निकाय उस पद पर नियुक्ति करता था ।छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इस नियम को कितने रूप से अपनाया गया इस पर सवाल जरूर उठ सकते है। नई भर्ती प्रक्रिया और पदोन्नति में नियमानुसार क्या कार्य हुए है।यह जनपद जिला पंचायत व नगरीय निकाय ही बता सकते है। शिक्षक संघ के मुताबिक प्रदेश में शिक्षकों की कमी है।  वर्ग दो के शिक्षको की संख्या लगभग  41315 है जबकि व्याख्याता के पदों में 9622 पद रिक्त है। जबकि मिडिल स्कूल के प्रधान प्रधानपाठकों6715 पद रिक्त है।  इस पदों में 50% सीधी भर्ती किए जाने का नियम है जबकि बचे हुए 50% में 30% और 20% के रेशियों के हिसाब से पूर्व नियमिय शिक्षक व एल्बी शिक्षको के पद पदोन्नति से लिये जा सकते है। 

संविलियन होने के बाद  शिक्षक संवर्ग पंचायत से अलग हो चुका है। राज्य स्तर पर शिक्षक संवर्ग की वरिष्ठ सूची अधिकारियों के सामने है। नई शिक्षक भर्ती से पहले  पदोन्नति आसानी से दी जा सकती है। वर्ग दो के शिक्षक व्यख्याता आसानी से बन कर वर्ग तीन के लिए वर्ग दो में पद सृजन कर सकते है। शिक्षक को मिडिल स्कूल के प्रधान प्रधान पाठकों में नियमानुसार पद पदोन्नत भी किया जा सकता है। जो राज्य सरकार की इच्छा शक्ति पर निर्भर है। कांग्रेस के घोषणा पत्र के अनुरूप संविलियन के लिए आठ साल का बंधन तो खत्म हो चुका है। पर बाकि बड़ी मांगें उमीदों पर ही जिंदा है। 

अब तक के शिक्षक आंदोलनों का इतिहास ऐसा ही रहा है। फिर वह छत्तीसगढ़ का शिक्षक आंदोलन हो या मध्यप्रदेश का हो …! 2013 का ऐतिहासिक आंदोलन तत्कालीन रमन सरकार के खिलाफ था आंदोलन की  विभीषिका को याद करते हुए। शिक्षक संघो की क्रोनोलॉजी पर संक्षिप्त में प्रकाश डालते हुएबिलासपुर के टीचर एसोसिएशन से जुड़े शिक्षक नेता आलोक पांडे बताते हैं। राज्य के कर्मचारियों की किसी भी आंदोलन को करने की एक सीमा होती है। 

शिक्षक एक साधारण  अदना सा कर्मचारी है। जिसे अपने दोनों परिवार स्कूल के बच्चे औऱ खुद का परिवार को बार बार मुड़ कर देखना होता है। आंदोलन के नेतृत्व कर्ता पहले अपने कर्मचारी साथियों की हर रूप से सुरक्षा निश्चित करना होता है उसके बाद खुद की .. किसी भी सरकार के खिलाफ बगावती कदम की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है।  2013 के आंदोलन में एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय शर्मा ने बहुत कुछ सहा है। अनेको आलोचनाएं सही है। आंदोलनों के समय औऱ बाद में हुई शिकायते मानसिक रूप किसी आम शिक्षको का मनोबल तोड़ने के लिए काफी होती है। स्कूल का रिकार्ड संपत्ति दस्तावेज अगर सही नही होते तो 2018 का संविलियन आंदोलन कभी सफलता पूर्वक नेतृत्व संजय शर्मा निर्वाह नही कर पाते। शीर्ष नेतृत्व में अगर  दाग रहता तो संगठन आज पूरे प्रदेश में  फला फूला नही होता। किसी भी आंदोलन की शीर्ष नेतृत्व की कई इनसाइड स्टोरियां होती है जो शायद ही आम शिक्षक समझ पाए नेतृत्व को बहुत कुछ सहना पड़ता है। 2018 में कुछ शिक्षको व शिक्षक संघो का  आलोचनाओ का स्तर भी शिक्षकिय मर्यादाओं के विपरीत था। सर्वहारा वर्ग के कल्याणकारी सिद्धान्त की जगह वर्गवाद ने शिक्षक एकता को खंडित करने का प्रयास किया। 

माना  जाता है कि दबाव समुह सत्ता से अपनी बात मनवाने के लिए चुनाव से पूर्व ही ठोस प्रयास करते है। शिक्षको को अब तक जो भी मिला राज्य के चुनावों के कुछ महीने पहले ही मिला ….। फिर चाहे वो पुनरीक्षित वेतनमान हो या संविलियन .. तो क्या मान लिया जाए यही क्रम फिर से 2022 में आएगा। या सम्मेलन के बहाने मिल जायेगा …

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