शिक्षा कर्मियों की हाजिरीः छत्तीसगढ़ और मप्र दोनों जगह ऑनलाइन सिस्टम में खामियां …. बढ़ी परेशानी

Chief Editor
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रायपुर / भोपाल ।   मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही जगह शिक्षकों की हाजिरी  के लिए शिक्षा विभाग में योजनाएं बनाई है । मध्यप्रदेश में एमित्र मोबाइल ऐप के माध्यम से शिक्षक अटेडेंस  व अन्य जानकारियां ऑनलाइन भर सकते हैं । वहीं छत्तीसगढ़ के हर एक स्कूल में सरकार की ओर से दिए गए   शाला कोष टैबलेट  के माध्यम से शिक्षक उपस्थिति व अन्य जानकारियां दे  सकते हैं ।   इस योजना का मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में ही भारी विरोध हुआ । मध्यप्रदेश में यह योजना 1 अप्रैल से लागू होने वाली है । छत्तीसगढ़ में लागू हो चुकी है। प्रदेश में कई जगह सॉफ्टवेयर बैटरी शाला कोष के बिगड़ने की बात अब आम हो गई है।
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संचालन सदस्य अध्यापक संघर्ष समिति मप्र /संयोजक राष्ट्रीय पैरा शिक्षक संघर्ष समित मप्र भारत /कोर टीम मेंबरNMOPS & भोपाल प्रभारी एच एन नरवरिया  ने CGWALL को बताया की  बीते कुछ सालों से सरकार ताबड़तोड़ शैक्षणिक सुधार कर रही है। हर दिन किसी न किसी तरह का प्रशिक्षण होता है। ई-अटेंडेंस भी शैक्षणिक सुधार के नाम पर लाया गया है ।  जिसका हस्र भी ठीक वैसा ही होने जा रहा है, जैसा अब तक हो चुके हजारों प्रशिक्षणों का हो चुका है। सरकार ने शिक्षकों को प्रशिक्षणों में उलझा कर, बच्चों को  निजी स्कूलों में पहुंचा दिया है ।  अब ई-अटेंडेंस में फंसाकर क्या करने वाली, यह बताने या लिखने की जरूरत नहीं है।
एच एन नरवरिया बताया कि कभी आपने सोचा कि प्रदेश में स्कूली शिक्षा में जो शैक्षणिक सुधार हो रहे हैं, उनमें से कितने शिक्षकों के हित में हुए हैं। शायद एक भी नहीं। हर प्रशिक्षण के बाद शिक्षक को एक अतिरिक्त गैरशैक्षणिक कार्य सौंप दिया जाता है। किसी भी स्कूल में पहुंचिए, कोई न कोई शिक्षक रजिस्टर पकड़े मिलेगा। जिस शिक्षक को किताबें पकड़ानी चाहिए थी, उसे रजिस्टर पकड़ाकर बैठा दिया है। शिक्षकों की इस स्थिति पर कभी गौर ही नहीं किया गया। ई-अटेंडेंस के विरोध में ऐसे तमाम सवाल चर्चा में आएंगे और जिनके समाधान के लिए सरकार को सोचना पड़ेगा । इसीलिए ई-अटेंडेंस का विरोध करते हुए अपने जरूरी सवालों को भी उठाते रहिए । जिससे स्कूली शिक्षा को बचाया जा सके।  मप्र सहित देश के अधिकांश राज्यों में आज शिक्षक सरकारों से लड़ रहा है जिंदा रहने लायक वेतन एवं न्यूनतम मानवीय सुविधाओं के लिए। शिक्षक को ई-अटेंडेंस नहीं बल्कि विकास में  हिस्सा चाहिए।शिक्षकों के हित में हों शैक्षणिक सुधार, गुणवत्ता अपने आप सुधर जाएगी।
अध्यापक संघर्ष समिति के प्रांतीय सदस्य   रमेश पाटिल ने CGWALL को बताया कि मध्यप्रदेश सरकार कटनी और इंदौर के पायलट प्रोजेक्ट से कोई सीख नही ली है। इन जिलों के  कई शिक्षक आज भी M शिक्षा मित्र एप के ई अटेंडेन्स से हुई तकनीकि दिक्कत की वजह से अपनी तन्खा के लिए भटक रहे है। और BEO  ऑफिसों के चक्कर लगाते घूम रहे है।  रमेश पाटिल ने बताया कि ई अटेंडेन्स का हम विरोध करते है। सरकार को समझना चहिये की हम शिक्षक है। ई-अटेंडेंस तकनीकी विषय है।इसका उपयोग सभी के लिए आसान नही है।ना ही प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था कि गई।कहा जा रहा है कि एन्ड्राॅईड मोबाईल न होने की स्थिति मे साथी के मोबाईल से उपस्थिति दर्ज करे। किस आधार पर साथी को उपस्थिति दर्ज करने के लिए बाध्य किया जा सकता है? उन्होने  निवेदन किया  है कि एम• शिक्षामित्र से ई-अटेंडेंस व्यवस्था स्थगित की जाए एवं पूर्व की भांति शाला उपस्थिति पंजी पर उपस्थिति दर्ज करने की व्यवस्था को ही मान्य किया जाए।
इधर छत्तीसगढ़ में शालाकोश 
छत्तीसगढ़ के शिक्षा कर्मीयो के  शिक्षक मोर्चा के संचालक वीरेंद्र दुबे ने CGWALL से कहा छत्तीसगढ़ में बिना प्लानिंग के शाला कोष टैबलेट थोप दिया गया है। शहरी क्षेत्र में टैबलेट समझ में आता है।लेकिन नेटवर्क विहीन क्षेत्रों में टैबलेट कितना व्यवहारिक है। यह सरकार के अफसरों को पता ही नहीं है। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का पायलट प्रोजेक्ट कितना सफल रहा यह कहने की जरूरत नहीं है। वीरेंद्र दुबे ने बताया की शाला कोष टैबलेट एकदम खराब क्वालिटी का है .  सबसे खराब इसका बैटरी बैकअप है सच्चाई है इस को झुठलाया नहीं जा सकता। वीरेंद्र दुबे ने बताया तकनीकी दिक्कत के साथ-साथ शाला कोष में व्यवहारिक दिक्कतें भी आ रही है ।  जिस स्कूल में 10 से  12 शिक्षक हैं वहां दोनों समय अटेंडेंस के लिए लाइन लगाना पड़ता है । शाला कोष में छात्रों की उपस्थिति भी लेना है । ऐसे में अगर किसी स्कूल में 8 – 9 कक्षाएं हैं वहां का शिक्षक हाजिरी अटेंडेंस उपस्थिति में उलझा रहेगा । शाला कोष से निश्चित ही कहीं ना कहीं शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहा है।
शिक्षक प्रदीप पाण्डेय ने  बताया कि  शिक्षाकर्मियों को गुरु भी कहा जाता है।शिक्षकों का कार्य केवल मशीन की तरह पढ़ाना ही नहीं वरन् बालकों, पालकों एवम् समुदाय से आत्मीय संबंध स्थापित कर शिक्षा में सामुदायिक सहभागिता लाना भी होता है ।  इसके आलावा कई गैर शैक्षणिक कार्य भी शिक्षकों को करने होते हैं । अक्सर स्कूल आते- जाते वक्त  शिक्षक  की मुलाकात पालकों से होती है। शिष्टाचार के नाते कुछ समय देकर उनसे बात करना व उनके बच्चों के शैक्षिक प्रगति के विषय में चर्चा करना पड़ता है। शाला नहीं आने वाले, शाला छोड़ने वाले छात्रों या उनके पालकों को शिक्षक अक्सर स्कूल आते – जाते समय समझाते पाए जाते हैं। यह सरकार नहीं कहती शिक्षक स्वयं  ऐसा करते है।शाला समय पर पहुंचने और और अंगूठा लगाने की हड़बड़ी में गुरु, शिष्य और पलकों  के बीच बने उस आत्मीय संबंधों को कहीं ना कहीं नुकसान पहुंचाने का काम कर रही है।
शिक्षा कर्मीयो के नेता सचिन त्रिपाठी ने CG WALL को बताया कि -मैं सुरजपुर ज़िले से आता हूँ।नेटवर्क की स्थिति किसी से छुपी नही है।
शाला कोष लागू करने से पहले सरकार को शिक्षकों का सबसे बड़ा हित संविलियन करना चाहिए था । शिक्षाकर्मियों के रुके हुए वेतन और कई सालों से लटके हुए शिक्षाकर्मियों की मेहतन की कमाई जो एरियस के रूप में सरकार के पास अटकी हुई है।उसे तत्काल देना चाहिये। नेटर्वक विहीन क्षेत्र और एकल शिक्षक के स्कूल में शाला कोष योजना को अलग रखना चाहिए। शिक्षक सन्तुष्ट नही होगा तो राष्ट्र कैसे सन्तुष्ट होगा। फिलहाल शाला कोष से तन्खा बनने दीजिये क्या नतीजे आते उसके बाद आगे की रणनीति तय करेंगे।
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