शिक्षा कर्मियों के समस्याओँ की जड़ कहां…? डॉ. केशकर बोले- भर्ती नियम में ही परिभाषा गलत…शोषण की शुरूआत यहीं से

Chief Editor
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रायपुर । शिक्षा कर्मियों की मांगों और समस्याओँ  पर विचार करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी की ओर से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की मीटिंग 16 मार्च को बुलाई गई है। जैसे-जैसे यह तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे उसे लेकर शिक्षा कर्मियों में उत्सुकता भी बढ़ रही और तरह – तरह के सवाल भी तैर रहे हैं। इस सिलसिले में एक संगठन की ओर से यह बयान आया है कि 16 मार्च की बैठक महज औपचारिकता बनकर न रह जाए, समय भले ही लगे लेकिन समस्या की जड़ पर जाकर उसका निराकरण किया जाना चाहिए।डॉ. केशकर ने इस सिलसिले में कुछ दस्तावेज भी जारी किए हैं।
शिक्षक पंचायत/नगरीय निकाय संघ छत्तीसगढ़ के प्रांताध्यक्ष डॉ गिरीश केशकर ने एक बयानन में कहा है कि    शिक्षाकर्मियों के शोषण का ये कोई पहला साल नहीं है। 22 वर्षों से बदस्तूर शिक्षाकर्मियो का शोषण जारी है। जिसकी शुरुआत ही भर्ती अधिनियम से हो गई थी। शिक्षाकर्मी भर्ती अधिनियम जो  राज्यपाल  के आदेशानुसार उनके नाम से राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है ,जिसमें शिक्षाकर्मी की परिभाषा दी गई है कि – *शिक्षाकर्मी शब्द से अभिप्रेत यथा स्थिति जनपद एवं जिला पंचायत के नियंत्रणाधीन स्कूलों में पढ़ाने के लिए नियुक्त व्यक्ति।* अब शासन के जिम्मेदार अधिकारी ही ये बताएं कि पंचायतों के नियंत्रणाधीन कौन से और कितने स्कूल हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश में ? हमारी जानकारी के अनुसार तो आज भी सभी स्कूल शिक्षा विभाग के ही प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रणाधीन हैं। आखिर जो सत्य है उसे क्यों नहीं लिख और बता पा रहे कि शिक्षा विभाग के नियंत्रणाधीन स्कूल में पढ़ाने के लिए नियुक्त व्यक्ति. कौन हैं…। अनेक बैठकें होती है अनेक कमिटी बनाई जाती हैं । पर नतीजा सिफर ही रहा। क्योकि कभी भी जड़ को नहीं सुधारा गया। जड़ को सुधारा जाए तो सब समस्या एक साथ ठीक हो जाएगी।
  डॉ गिरीश केशकर ने कहा कि शासन के जिम्मेदार अधिकारियों को अब सत्यता पूरे पारदर्शी रूप से सामने लाकर उसे ठीक करना चाहिए । ताकि लंबे समय से चली आ रही शिक्षाकर्मियो कि समस्या का समग्र अंत हो सके। उन्होने सवाल किया है कि शासन के जिम्मेदार अधिकारी को ये बताना चाहिये कि –
(1)- क्या मध्यप्रदेश से पृथक होकर छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तो छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा प्रथम अधिसूचना जारी कर मध्यप्रदेश के नियमों और कानूनों को अंगीकृत नहीं किया गया तब तक के लिए जब तक कि छत्तीसगढ़ के विधानसभा में विधि सम्मत नया कानून न बना लिया जाये ??
(2)- क्या छत्तीसगढ़ प्रदेश में भारत के पवित्र संविधान में हुए 73वें, 74वें संशोधन का पालन किया गया है कि नहीं ??
(3)- क्या संविधान में हुए 73वें, 74वें संसोधन के तहत स्कूलें पंचायतों/नगरीय निकायों को सौंपी जा चुकी है कि नहीं ??
(4)- शासकीय सहायक शिक्षक, शिक्षक और व्याख्याता के पद यदी डाइंग कैडर हैं तो उन डाइंग कैडर पदों पर बड़ी संख्या में शासकीय शिक्षकों की लगातार पदोन्नति कैसे ?? आखिर डाइंग कैडर होने के बाद भी इतने सारे पद आये कहाँ से?? क्या छत्तीसगढ़ में उन पदों को फिर से पुनर्जीवित किया गया है??
(5)- 27 अप्रैल 2001 को तत्कालीन शिक्षा सचिव श्री डी. एस. मिश्र के द्वारा एक आदेश जारी कर शिक्षा विभाग की पूर्ववत व्यवस्था स्थापित किये जाने के संबंध में आदेश जारी किया गया। क्या संविधान में हुए संवैधानिक संसोधन को सिर्फ एक आदेश से बदलने का अधिकार किसी अधिकारी को है ? क्या ये आदेश विधि अनुसार सही है ? और यदि सही है तो फिर शिक्षाकर्मियो की भर्ती शासकीय स्कूलों में शिक्षा विभाग या जिला शिक्षा अधिकारी क्यो नहीं कर रहे ? पंचायत/नगरीय निकाय जो कि एक स्वायत्त निकाय है के द्वारा क्यो की जा रही है ?
(6)- भारत के पवित्र संविधान में हुए 73वे संसोधन के तहत शासकीय सहायक शिक्षक, शिक्षक और व्याख्याता को शाला भवन, स्टाफ, चल अचल संपत्ति सहित पंचायतों को सौपे जाने संबंधित आदेश जारी किया गया है या नहीं ?? और यदि जारी किया गया है तो फिर पंचायतों को सौंपे जा चुके शासकीय शिक्षकों को 1 जनवरी 2006 से छठवां वेतनमान एवं 1 जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान दिया गया तो फिर पंचायतों द्वारा नियुक्त शिक्षक पंचायत नगरीय निकाय संवर्ग को उक्त तिथि से छठवां एवं सातवां वेतनमान और उनके समान सभी सुविधाएं क्यों नहीं दिया जा रहा है ? जबकि एक ही छत के नीचे एक ही समान कार्य लिया जा रहा है। और माननीय उच्चतम न्यायालय का भी निर्णय है कि समान काम के बदले समान वेतन भत्ते और सभी सुविधाएं दिया जाना चाहिए।
(7)- क्या भारत के संविधान में उल्लेखित समानता का अधिकार और शोषण के विरुद्ध अधिकार छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियो के लिये लागू होते हैं कि नहीं ?
             डॉ गिरीश केशकर ने कहा कि ऐसे अनेकों तथ्य और विसंगतियां है जिसके कारण शिक्षाकर्मी लगातार शोषित होते आ रहे हैं। सभी जिम्मेदार अधिकारियों से उपरोक्त सभी ज्वलंत तथ्यों को स्पष्ठता के साथ अवगत कराए जाने की अपेक्षा है ताकि शिक्षाकर्मियो की समग्र समस्या का अंत हो सके। 16 मार्च की बैठक महज औपचारिकता तक न रह जाये। भले जितना समय लग जाये बैठक में पर सभी पहलुओं पर खुल कर चर्चा होनी चाहिए। सारे तथ्य सामने आने चाहिए तभी पता चलेगा कि शिक्षाकर्मी कहाँ गलत है और शासन कहाँ गलत है। तभी एक नया रास्ता निकल पायेगा।
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