शिक्षाकर्मियों के हक के लिए जिन्हें लड़ना था… वो आपस में लड़ रहे, आलोक पांडेय बोले -आहत है शिक्षक समाज

Shri Mi
5 Min Read

बिलासपुर।जिनको लड़ना था शिक्षकों हक के लिये वो आपस में ही पद के लिए लड़ रहे हैं।यह आरोप लगाते हुए शिक्षाकर्मी नेता आलोक पांडेय ने बताया कि खुद को वर्ग 03 का हितैसी बताने वाले सहायक शिक्षक फेडरेशन के नेता अब वर्ग 03 की लड़ाई छोड़ आपस में कुर्सी के लिए लड़ रहे है।ये  वही लोग हैं जो संविलियन की लड़ाई से न सिर्फ कोसो दूर रहे थे बल्कि उन्होंने सरकार को लिखकर ज्ञापन दिया था कि ये लोग आंदोलन में शामिल नहीं हैं। किन्तु जब संविलियन की घोषणा हुई तो यही लोग सबसे पहले संविलियन भी लिए और बाद में संविलियन के विरोध में आंदोलन भी करना शुरू कर दिए।CGWALL.COM के WhatsApp GROUP से जुडने के लिए यहाँ क्लिक करे

Join Our WhatsApp Group Join Now

इस आंदोलन के दौरान एक नए संघ का उदय हुआ सहायक शिक्षक फैडरेशन।इन्होंने संघ तो बना लिया है पर पर सबको जानना जरूरी है कि  शिक्षकों की हक की लड़ाई में अपना क्या योगदान दे रहे है,और आगे की इनकी रणनीति क्या है ..?

आलोक बताते हैं कि सोशल मीडिया  फेडरेशन के संयोजको के ऊपर लगाए जा रहे तरह तरह के आरोपों से भरा हुआ है। और आरोप भी खुद फेडरेशन के  फाउंडर मेंबर ही लगा रहे हैं, जिससे शिक्षक समाज आहत है।इनके इस तरह के करतूत से शिक्षकीय एवं शिक्षकीय संघ दोनों की गरिमा धूमिल हुई है।

इस तरह के शिक्षको के हित की राजनीति ने सोचने पर मजबूर कर दिया है क्या शिक्षको के हक की आवाज इस तरह उठाई जाती है…?क्या फेडरेशन का गठन सत्ता के करीब जाने के लिए हुए था ..?

क्योंकि लड़ाई जब सरकार के नीतियों के विरोध में होनी चाहिए थी तब फेडरेशन के नेता कुछ संघ एवं मोर्चा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे।

आलोक ने बताया कि इनमें से ज्यादातर फेडरेशन के वे संयोजक है। जो कूट कूट कर मोर्चे को गालीयां देते थे।ये वही फेडरेशन के लोग है जो खुद तो संविलियन ले लिए और बाकि बचे शिक्षाकर्मियों के संविलियन की लडाई लड़ने के लिए शुरू में आंसू बहाते रहे बाद में उन्हें भी भुला दिए।

अब आलम यह है कि कुर्सी की दौड़ में खुद को कैसे प्रतिस्थापित करें और शासन प्रशासन के करीब जाकर चहेते कैसे बने के चक्कर में गुलदस्ता लेकर कही भी पहुँच जा रहे हैं।

आलोक पाण्डेय बताते हैं कि संविलियन से पहले शिक्षकों में वर्गवाद की बात होती थी। पर इसका स्तर शिक्षकिय था। कभी भी शिक्षको में वर्गवाद को लेकर इस तरह के भेद नही होते थे।संविलियन के बाद ये वर्गवाद सहायक शिक्षक फेडरेशन के बैनर तले फला और फुला है।

आज वर्ग वाद की जहर को राजनीतिक रूप से लोगों तक फैलाया जा रहा है।और यह काम किया है सहायक शिक्षकों के हाथ आये फेडरेशन के नव शिक्षक नेताओं ने, जिनके मार्गदर्शन में अभी तक कोई उपलब्धि वर्ग तीन को नही मिली है।

आलोक ने बताया जब एक आम शिक्षक सरकार के विरूद्ध संविलियन की लड़ाई में स्कूल को छोड़ हड़ताल में शामिल था और सरकार के द्वारा जारी आदेश पर आदेश के दबाव में मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहा था, तब ये वर्ग तीन के कथित नेता स्कूलों में पढ़ाने जाते थे।सरकार से भेंट कर आंदोलन को असफल करने का दिन रात प्रयास करते थे और आज  संघ बनाते ही शिक्षकों की आवाज उठाने की जगह राजनीति कर रहे है। जिन्हें सरकार  से हक की आवाज के लिए लड़ना चाहिए वो पद के लिए लड़ रहे है।मीडिया और सोशल मीडिया में अनाप शनाप बयान बाजी कर रहे है।

आलोक ने बताया कि वर्तमान में यह शिक्षकीय मर्यादा के विपरीत आचरण हो रहा है एक दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालना ठीक नही है। हमारी लड़ाई आपस मे नही होनी चाहिए हमारी लड़ाई सरकार से शिक्षकों के हित के लिए होनी चाहिए।  संजय शर्मा के नेतृत्व में हम सरकार से शिक्षकों की हक की लड़ाई पहले भी लड़े हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे।

इसी क्रम में 08 मार्च से हम चरणबद्ध तरीक़े से सरकार पर दबाव बनाने जा रहे है। पिछले 23 सालों का इतिहास गवाह है कि एक संविदा कर्मी कैसे नियमित शिक्षक बना है और जल्द प्राचार्य और हेडमास्टर भी बनेगा।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close