रायपुर । छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल की नई नवेली सरकार के अनुपूरक बजट ने शिक्षाकर्मी को नाराज कर दिया है। सबको उमीद थी कि भूपेश सरकार शिक्षा कर्मियों के वर्ष बंधन को समाप्त कर क्रमोन्नत वेतनमान की घोषणा करने वाली है। जिसका सबसे बड़ा फायदा वर्ग तीन के शिक्षकों को होता। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही कांग्रेस सरकार ने पूर्व भाजपा सरकार के शिक्षा कर्मियों के आठ साल की सेवा पूर्ण कर चुके शिक्षा कर्मियो के संविलियन को बरकरार रखने के लिए बजट का प्रावधान आगे बढ़ाया है।मौर्चा के महाआंदोलन से निकले संविलियन को आर्थिक हरी झंड़ी मिल गई है। वही वर्ग तीन की विसंगतियों पर कोई ठोस योजना पेश नही हुई।
सरकार बदलने के बाद के घटनाक्रम को लेकर शिक्षा कर्मियों में कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। उधर भूपेश सरकार के हाल के इस निर्णय से सहायक शिक्षक फेडरेशन के संयोजक अब जवाब देने से कतरा रहे हैं। फेडरेशन को पूरी उम्मीद थी कि चुनाव के बाद सबसे पहले वर्ग तीन के वेतन विसंगति पर सरकार निर्णय लेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वैसे तो अब तक फेडरेशन ने जितने भी आंदोलन किये है उसका सरकार पर बड़ा असर नजर नहीं आ रहा है। ।फेडरेशन ने अपनी ताकत दिखाने के लिए वर्ग तीन के असंतुष्ट शिक्षको का भीड़ के रूप में भरपूर उपयोग किया । किन्तु सटीक रणनीति के अभाव में सरकार तक जो मैसेज पहुंचना था वह नहीं पंहुच सका । क्योकि फेडरेशन के योजनाकार बार बार आंदोलन पर अपनी रणनीति बदलते रहे और मेल मिलाप में ज्यादा ध्यान लागये रहे । सोशल मीडया में सहायक शिक्षक फेडरेशन छाया रहा । आलोचनाओ में यह भी आरोप लगे कि
फेडरेशन ने सिर्फ भीड़ दिखाई है। फेडरेशन के नेताओ पर तो ये भी आरोप लगते रहे है कि जब शिक्षा कर्मी संविलियन की मशाल उठा स्कुलो में तालाबंदी कर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर गए थे तब ये फेडरेशन से जुड़े बहुत से नेता लोग स्कूल जा रहे थे। और हड़ताल तोड़ने का प्रयास कर रहे थे।
समझा जा रहा है कि इस लिए अब अलग अलग संघो से आकर सहायक शिक्षक फेडरेशन का गठन कर चुके शिक्षा नेता अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जोरदार झटका देने वाले है। और अब निर्णायक लड़ाई लड़ने की योजना बना रहे है। शिक्षक मोर्चा के संजय शर्मा , केदार जैन, वीरेन्द्र दुबे, विकास राजपूत औऱ चंद्र देव राय के नेतृत्व में जो आंदोलन हुए उससे सरकार बैक फुट में आई औऱ भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने रमन सरकार ने आठ वर्ष पूर्ण कर चुके शिक्षको का संविलियन की घोषणा की थी। इसमें कई मांगे छूट गई थी । जिसके लिए मोर्चा से जुड़े संगठन रणनीति बानने में लगे है। लोकसभा चुनाव के पूर्व अगर संविलियन से जुडी विसंगतियां दूर नही हुई तो बड़ा आंदोलन कर सकते है ।