बिलासपुर।समर क्लास के बाद अब शिक्षकों को निखार के बुखार का नया डोज देना शुरू कर दिया गया है।छत्तीसगढ़ के शासकीय स्कूलों में फिर एक नया प्रयोग शुरू हुआ है जिसका नाम निखार कार्यक्रम है। इसके तहत कक्षा आठवीं और नौवीं के बच्चों की उपलब्धियों में सुधार के लिए निखार कार्यक्रम शुरू किया गया है।शिक्षक संघो पलकों के विरोध वछात्रो की भीषण गर्मी में कम उपस्थित को देखते हुए शिक्षा विभाग ने समर क्लास को बन्द करने का आदेश दे दिया है। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करे
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वही 45 डिग्री पार होती गर्मियों कीछु ट्टी में अभी शिक्षकों को राहत नहीं है।निखार कार्यक्रम के तहत अभी ग्रीष्मकालीन अवकाश में शिक्षकों का प्रशिक्षण होना है।कहने को तो छत्तीसगढ़ अब 19 वर्ष का हो गया है किन्तु प्रदेश में शिक्षा विभाग की हरकतें आज भी किसी नाबालिक से कम नहीं है। राज्य गठन के बाद से ही शिक्षा विभाग में शैक्षिक गुणवत्ता के नाम पर अनेक योजनाओं का संचालन कर करोड़ों रुपयों की बंदर बाट किया गया है।
रूम टू रिड, एमजीएमएल, संपर्क कार्यक्रम, डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम शिक्षा गुणवत्ता अभियान जैसे अनेक कार्यक्रम चलाए गए किन्तु गुणवत्ता के मामले में राज्य आज भी देश के अन्य राज्यों की तुलना में निचले क्रम में आता है।जब भी राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वे हुआ है राज्य निचले क्रम में ही रहा है।
आलम यह है कि आज राज्य में शिक्षा विभाग उस मरीज की तरह हो गया है जो सही इलाज के लिए आए दिन अस्पताल और डाक्टर बदलता रहता है।
विभाग की हरकतें भी मासूम बच्चे की तरह है जो पौधा लगाता है और फिर रोज उसे उखाड़ के देखता है कि जड़ें जमीन में पकड़ रही है कि नहीं । ऐसे प्रयोग के छात्रो और शिक्षको पर क्या मनोवैज्ञानिक असर हुआ है इस विषय पर कोई कभी चर्चा नही हुई है। शिक्षा विभाग में
लगातार हर वर्ष कोई नया प्रयोग जिले और राज्य स्तर पर होते रहे है। इस वर्ष नया प्रयोग किया जा रहा है जिसका नाम है ‘ निखार कार्यक्रम ‘ ।
क्या है निखार कार्यक्रम
छत्तीसगढ़ में पहली बार शासकीय स्कूलों के कक्षा आठवीं और नौवीं के बच्चों की उपलब्धियों में सुधार के लिए निखार कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसमें बच्चों की उपलब्धियों में सुधार के लिए बेस लाइन आकलन किया जाएगा और बच्चों की बौद्धिक क्षमता के विकास के लिए प्रयास किए जाएंगे।
प्रथम चरण में राज्य के दस जिलों बीजापुर, कांकेर, महासमुन्द, गरियाबंद, रायपुर, दुर्ग, बलौदाबाजार, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और कोरबा में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान मास्टर्स ट्रेनर्स तैयार किए जा रहे हैं। आकलन के बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्य बच्चों की स्थिति में सुधार के ईमानदार प्रयास करना है।
चयनित जिलों के सभी उच्च प्राथमिक एवं हाई स्कूल के बच्चों का बेसलाइन आंकलन किया जाएगा, जिससे यह जानकारी मिलेगी कि इन कक्षाओं के कितने बच्चों कक्षा-तीन और पांच से कम स्तर के हैं और कितने बच्चे कक्षा-आठवीं के स्तर के हैं। इस आंकलन के बाद बच्चों के स्तर में सुधार के लिए लगातार प्रयास किए जाएंगे।
तीन चरणों में चलेगा अभियान
कार्यक्रम के अंतर्गत नियमित कक्षाओं में 69 दिनों के भीतर 200 घंटे की कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। इसमें 18 दिन का फाउंडेशन पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। फाउंडेशन पाठ्यक्रम के अंतर्गत प्रतिदिन एक-एक घंटे की हिन्दी, अंग्रेजी, गणित एवं विज्ञान की कक्षाओं का आयोजित किया जाएगा।
72 घंटों के अध्यापन में बेहतर स्तर के बच्चे अपने से कम स्तर के बच्चों के साथ मिलकर सभी बच्चों की मूलभूत दक्षताओं में सुधार करेंगे। इसके बाद 45 दिनों का सहयोगात्मक अधिगम होगा, जिसमें प्रतिदिन 45-45 मिनट की अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की कक्षाएं होंगी।
101 घण्टे 15 मिनट की पढ़ाई में सभी विषयों में महत्वपूर्ण लर्निंग आउटकम पर फोकस किया जाएगा। अंतिम चरण में अंग्रेजी, गणित एवं विज्ञान विषयों के लिए 6 दिनों का समापन कैम्प आयोजित किया जाएगा।
एंडलाइन टेस्ट से होगा स्तर पर सुधार पर आकलन
तीसरे चरण के बाद बच्चों के लिए बेसलाइन की तरह एंडलाइन टेस्ट आयोजित होंगे। दोनों टेस्टों के बीच बच्चों के स्तर में सुधार का आकलन किया जाएगा।
निखार कार्यक्रम पर जब सीजीवाल ने शिक्षक नेता प्रदीप पांडेय से इस विषय पर चर्चा की तो उन्होंने ने बताया कि अभी तक जो भी कार्यक्रम चलाए गए हैं वे सभी महत्वपूर्ण है एवं बच्चों के लिए उपयोगी है किन्तु उसके बाद भी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं होना इस बात के संकेत है की कार्यक्रम सही है किन्तु उसका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है ऐसे में कार्यक्रम बदलने से बेहतर है जो भी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनके तरीकों में बदलाव किया जाए।
प्रदीप ने बताया कि वैसे भी शिक्षा में परिवर्तन एक लंबे अंतराल के बाद दिखाई देता है। उच्च अधिकारियों को शिक्षकों की छुट्टियां हमेशा से खटकती है।जब भी कोई अवकाश होता है चाहे वह दीपावली की छुट्टी हो,शीतकालीन अवकाश हो या ग्रीष्मकालीन अवकाश हो शिक्षकों को किसी न किसी कार्य में लगाने का प्रयास किया जाता है।कभी समर क्लास तो कभी प्रशिक्षण आदि के नाम पर शिक्षकों के अवकाश का उपयोग करने की कोशिश की जाती है। अध्यनन अध्यापन एक मानसिक क्रिया है इसके लिए आवश्यक है कि मन तंदरुस्त हो अवकाश बच्चों के साथ साथ शिक्षकों के मन को भी तरोताजा कर देता है इसे समझने की जरूरत है।
महिला शिक्षक नेता गंगा पासी ने बताया कि महिला शिक्षक गर्मी की छुट्टियों का साल भर इंतजार करती है। ये हक की छुट्टियां है ये छुट्टियां अगर शिक्षण कैलेंडर से समाप्त कर दी जाती है तो
बाकी कर्मचारियों की तरह हमें भी कोई विशेष अवकाश न मिले इससे हमें कोई परहेज नहीं है किन्तु हमें भी अन्य कर्मचारियों की तरह महीने के दूसरे और तीसरे शनिवार को अवकाश दिया जाए साथ ही वर्ष में 30 दिवस का अर्जित अवकाश दिया जाए। ताकि महिला शिक्षक अपने शिक्षण दायित्व के साथ पारिवारिक जरूरतों के लिए छुटियो का सही उपयोग कर सके।
सहायक शिक्षक फेडरेशन के शिक्षक नेता शिव सारथी ने बताया कि ग्रीष्म कालीन अवकाश हो या शीत कालीन अवकाश पूरे देश मे शिक्षक और छात्रो को ऋतूवो के प्रभाव की वजह मिलता है। इस अवकाश काल में शिक्षको और छात्रो पर प्रयोग के मनोवैज्ञानिक और स्वास्थगत क्या प्रभाव पड़ेंगे
इस विषय को ध्यान में रखा जाना बेहद जरूरी है।प्रदेश में शिक्षण कैलन्डर के अनुसार ही शिक्षको से कार्य लिया जाना चाहिए प्रशिक्षण शिक्षण सत्र में भी दिया जा सकता है।
वही ट्रेवक्स और हॉलिडे एजेंटो का मानना है कि प्रदेश के कई शिक्षक और छात्रों के माता पिता अपने बजट के अनुसार गर्मियों की छुट्टियों में बाहर घूमने जाते है। स्कुलो की छुट्टीयो में सरकार या उनके अधिकारियों के प्रयोग से छुट्टियों में अगर ग्रहण लगता है तो टूरिज्म के व्यापार पर असर होता है।