सीधा निशाना

Shri Mi
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SUNDAY_FILE_SDबीजेपी का बारनवापारा चिंतन शिविर अबकी इस मायने में अलग रहा कि इसमें कहीं पे निगाहें, कहीं पे…..वाला मामला नहीं रहा। शिविर में सीधे तीर छोड़े गए। पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने सबको आईना दिखा दिया। उनकी जब बोलने की बारी आई तो सबसे पहले उन्होंनें राज्य की राजनीति से केंद्र मेें गए नेताओं को टारगेट किया। रामलाल बोले, आप राष्ट्रीय राजनीति में हैं, आप लोगों को राज्य की राजनीति में टांग अड़ाने का कोई हक नहीं है। उन्होंने चेता भी दिया, आपलोग केंद्र की राजनीति करें, वही अच्छा है। रामलाल की इस खरी-खरी से कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया। जिस ग्लेरमस शख्सियत को रामलाल ने टारगेट किया था, उसका हाल तो पूछिए मत! चलिये, संगठन महामंत्री ने बीजेपी नेताओं को मैसेज दे दिया कि छत्तीसगढ़ में जिस लाइन पर राजनीति चल रही है, उसे काटने या छोटी करने की कोशिश ना ही करें।

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जोगी सबसे बड़ा खतरा

बारनवापारा चिंतन शिविर मेें कांग्रेस से ज्यादा जोगी कांग्रेस पर चिंतन किया गया। अधिकांश लोगों का मत यही था कि कांग्रेस से अधिक अजीत जोगी बीजेपी के लिए खतरा बन सकते हैं। एक मंत्री ने तो चेताया, कांग्रेस नेताओं के पास टारगेट पर वार करने की क्षमता नहीं हैं। वे आए, बाएं निशाना लगाते हैं…..लेकिन, आप लोग जान लीजिए, अजीत जोगी सीधे नाभी पर वार करेगा। फिर बोले, सवाल यह नहीं कि जोगी को कितनी सीटें मिलेंगी, खतरा इसका है कि जोगी कांग्रेस कितनी सीटों पर हरवा देगा। बात एक मंत्री की नहीं है। लगभग सभी ने आगाह किया कि जोगी से सावधान रहने की जरूरत है। सो, इस पर यकीन किया जा सकता है, सरकार और जोगी कांग्रेस में कटुता बढ़ेगी।

ऐसा भी होता है

छत्तीसगढ़ में कुछ भी संभव है। वरना, ऐसा थोड़े ही होता कि 2002 बैच का आईएएस डिवीजनल कमिश्नर बन जाए और उससे दो साल सीनियर उसी के अंदर में एडिशनल कमिश्नर। हम बात कर रहे हैं, रायपुर डिवीजन का। 2002 बैच के आईएएस बृजेश मिश्रा कमिश्नर हैं। और, 2000 बैच के एलएस केन उनके नीचे एडिशनल कमिश्नर। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां सीनियर आईएएस जूनियर के नीचे काम कर रहा है। याने सीनियर, जूनियर में कोई भेद नहीं। सब एक समान। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग निश्चित तौर पर बधाई का पात्र है।

जय हो!

सामान्य प्रशासन विभाग की सिकरेट्री निधि छिब्बर को दिल्ली डेपुटेशन पर जाने का रास्ता साफ हो गया है। कैट ने उनके पक्ष में फैसला दिया है। निधि को भारत सरकार में डिफेंस में पोस्टिंग मिली थी। लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने दिल्ली जाने की इजाजत नहीं दी। भारत सरकार के नियम अंतगर्त पोस्टिंग आर्डर निकलने के बाद ज्वाईन नहीं करने पर पांच साल के लिए डिबार कर दिया जाता है। निधि को भी भारत सरकार ने पिछले साल डिबार कर दिया था। इसके खिलाफ उन्होंने कैट की शरण ली। उन्होंने राज्य और भारत सरकार, दोनों को पार्टी बनाया था। दिलचस्प यह है कि राज्य में आईएएस की सेवाएं देखने वाले विभाग जीएडी की वे और उनके पति विकास शील सिकरेट्री है। कह सकते हंै, निधि फरियादी थी और प्रतिवादी भी। ऐसे में, फैसला उनके पक्ष में भला कैसे नहीं आएगा।

टूरिज्म का जवाब नहीं

अपने टूरिज्म डिपार्टमेंट का जवाब नहीं। एक समय था, जब करोड़ांे रुपए मोटल-होटल पर बहा दिया गया। और, अब? विभाग सीएम का भी मान नहीं ंरख रहा है। टूरिज्म ने नया रायपुर में सीएम से जिस होटल मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट का 2013 में लोकार्पण कराया, उसे आज तक कंप्लीट नहीं किया। और, ना ही इसका किसी को होश रहा। लोकार्पण कराने वाले सिकरेट्री टूरिज्म आरसी सिनहा रिटायर होकर घर लौट गए। तीन साल से बिल्डिंग अधूरी है। हमर छत्तीसगढ़ का प्रोग्राम करने के लिए जब इस भवन को चुना गया तो पता चला कि भवन अभी अनकंप्लीट है। किसी तरह ढांक-ढुंककर कार्यक्रम निबटाया गया। ऐसे में, सवाल तो उठते ही हैं, सीएम के मान के साथ मजाक क्यों?

वन्यपशुओं, माफ करना

जंगलों में गेस्ट हाउसेज तो होते हैं, मगर अनुष्ठान हाउस आपने नहीं सुना होगा! बारनवापारा के जंगल में एक सीनियर आईएफएस ने अनुष्ठान के लिए लग्जरी हाउस बनाया है। जिस जगह पर यह बना है, उसके 50 मीटर दूरी पर चार कमरों वाला सर्वसुविधायुक्त गेस्ट हाउस है। मगर साब को वहां पूजा-पाठ में व्यवधान पहंुचता था। इसलिए आईएफएस ने 18 लाख रुपए का सिंगल कमरे का टावरनुमा दो मंजिला गेस्ट हाउस बनवा लिया। नीचे मेें किचेन एवं डायनिंग और उपर में अनुष्ठान कमरा और बेडरुम। जिस पैसे से अनुष्ठान हाउस बना है, वह वाइल्डलाइफ के लिए आया था। याने बारनवापारा के वन्यपशुओं के लिए। उनकी हिफाजत के लिए। गरमी में उनके लिए पानी का इंतजामात करने खातिर। मगर अफसर का सनक देखिए। वन्यपशुओं माफ करना, ऐसे आईएफएस को।

राजनीतिक साजिश तो नहीं?

बिलासपुर रेंज के आईजी पवनदेव पर महिला कांस्टेबल के आरोप सुर्खियो में है। आईजी ने भी इसका जवाब दिया है। दोनों पक्षों के आरोप गंभीर हैं। निश्चित तौर पर इसकी जांच होनी चाहिए। और, दोषी पर कार्रवाई। मगर इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि बिलासपुर में पिछले महीने डकैती का पर्दाफाश किया गया था। इसमें सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों तक न केवल पुलिस पहुंच गई थी। बल्कि, ब्रिटेन मेड पिस्तौल भी बरामद हुए थे। दो नेताओं के डकैत रिश्तेदारों के खिलाफ पुलिस ने अब तक एफआईआर क्यों नहीं किया, ये अलग सवाल है। प्रश्न है, इन नेताओं के इलाके मेें शुक्रवार को मिठाइयां क्यों बांटी गई? फिर, दो साल के टेन्योर में आईजी ने गंगाजल-2 टाईप के चार थानेदारों को नौकरी से बर्खास्त किया। कई पुलिस वालों की नौकरी गई। ऐसे में, निष्पक्ष जांच के लिए साजिश के एंगल को भी लेना चाहिए।

मंत्रीजी हाजिर हो!

वैसे तो सूबे के कई मंत्री और नेता फायनेंस करके कार्यक्रमों के अतिथि बनने के लिए जाने जाते हैं। मगर वन और कानून मंत्री महेश गागड़ा का हिसाब उल्टा है। वे बड़े सरकारी कार्यक्रमों से गोल मार दे रहे हैं। पिछले दिनों केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत, केंद्रीय राज्य मंत्री, भारत सरकार के सचिव आए हुए थे। कार्यक्रम में सीएम समेत कई लोकल मंत्री भी थे। मगर जब गागड़ा को बुके देने के लिए डायरेक्टर समाज कल्याण संजय अलंग को मंच पर बुलाया गया तो पता चला मंत्रीजी आए ही नहीं हैं। अलंग शर्मिंदा होकर मंच से उतर गए। और, 2 जुलाई को नए रायपुर में देश के पहले कामर्सियल कोर्ट के ओपनिंग में भी ऐसा ही हुआ। कार्यक्रम में सुप्रीम कोट्र्र के जस्टिस, राजस्थान और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मौजूद थे। सीएम भी थे। कई मंत्री भी। कानून मंत्री गागड़ा को बुके देने के लिए चीफ सिकरट्री विवेक ढांड का नाम पुकारा गया। ढांड हाथ में पुष्पगुच्छ लिए मंत्रीजी को ढूंढने लगे। पीछे से उन्हें किसी ने इशारा किया, मंत्रीजी गोल हैं। अलंग की तरह ढांढ साब भी क्या करें, अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। जबकि, उन्हीं के विभाग का यह कार्यक्रम था। आप समझ सकते हैं, मंत्रीजी पढ़ाई के दौरान क्लास से कितना गोल मारते होंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. न्याय तंत्र पर सवाल के मामले में आईएएस एलेक्स पाल मेनन के खिलाफ नोटिस तैयार करने के बाद भी उसे इश्यू क्यों नहीं किया गया?
2. बीजेपी के चिंतन शिविर में नेताओं को अपनी मस्तानियों से दूर रहने की हिदायत दी गई क्या?

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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