स्कूल खोलने पर बंटे राज्य,जानें किन राज्यों में खुलेंगे स्कूल,इधर 54 लाख केस पार

Chief Editor
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दिल्ली/बिलासपुर।School Reopen: केन्द्र सरकार ने अनलॉक 4.0 की गाइडलाइंस के तहत राज्य सरकारों को 21 सितंबर से कंटेनमेंट जोन्स के बाहर कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए स्कूल-कॉलेज खोलने की अनुमति दे दी थी। इसके लिए सरकार ने बच्चों के माता-पिता की तरफ से सहमति होने की अनिवार्य शर्त रखी थी। हालांकि अभी कई राज्य सोमवार से स्कूल कॉलेज खोलने को लेकर असमंजस में दिखाई दे रहे हैं।मीडिया रिपोर्ट्स अनुसार केन्द्र शासित चंडीगढ़ में सोमवार से कई सरकारी स्कूल खुल रहे हैं। इस दौरान स्कूल आने वाले बच्चों से सहमति पत्र लिया गया है। स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए नियम बनाए गए हैं। हालांकि कई स्कूल टीचर्स का मानना है कि माहमारी को देखते हुए और जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में अभी स्कूल खोलने का निर्णय सही नहीं है। टीचर्स का मानना है कि बच्चों से सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क आदि के नियमों का पालन कराना कठिन होगा।CGWALL NEWS के व्हाट्सएप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार से स्कूल कॉलेज नहीं खोलने का फैसला किया है। प्रदेश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, ऐसे में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने पहले ही 21 सितंबर से राज्य में स्कूल खोले जाने की संभावना को खारिज कर दिया था।असम में सरकार सोमवार से स्कूल कॉलेज खोलने जा रही हैं। हालांकि परिजनों की सहमति मिलने के बाद ही छात्र-छात्राएं स्कूल आ सकेंगे। सरकार ने इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तैयार की है, जिसकी मदद से छात्रों में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने जैसी बातों का पालन कराया जाएगा।

बिहार में भी कंटेनमेंट जोन्स के बाहर 9-12वीं तक के छात्रों के लिए स्कूल कॉलेज खोलने का फैसला किया है। वहीं दिल्ली में अभी स्कूल कॉलेज बंद रहेंगे और छात्रों की सुरक्षा के लिहाज से सरकार कोई खतरा नहीं लेना चाहती।कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में 21 सितंबर से कुछ स्कूल खोले जाएंगे। हालांकि यहां नियमित कक्षाएं नहीं चलेंगी और छात्र गाइडेंस के लिए टीचर्स से मदद ले सकेंगे। हिमाचल में 50फीसदी छात्रों को स्कूल बुलाया गया है। वहीं मेघालय में भी कुछ स्कूल कॉलेज 21 सितंबर से खुल जाएंगे। मेघालय में भी अभी छात्रों की 50 प्रतिशत उपस्थिति रहेगी और नियमित कक्षाएं नहीं होंगी।

बताते चले कि छत्तीसगढ़ में अंदर अंदर ही विचार मंथन चल रहा है। केंद्र की गाइडलाइन की माने तो स्कूलो की स्वच्छता और सेनेटाइजेशन पर विशेष तवज्जों दी जानी है। संस्थानों को अपने परिसरों को एक प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट समाधान वाले पदार्थों से साफ करना होगा. फिर से खुलने वाले संस्थानों को व्यक्तिगत सुरक्षा का बैकअप स्टॉक रखने को कहा गया है जिसमें फेस कवर, मास्क, हैंड सैनिटाइजर आदि शामिल हैं।

पालकों का कहना है कि यदि स्कूल खुले तोक्या है सरकारी व निजी स्कूली अमला आक्सी मीटर, थर्मल गन लेकर क्या स्कूल के दरवाजे में खड़ा रहेगा , सोशल डिस्टेंसिंग का शत प्रतिशत क्या 50 % पालन लागू करा पायेगा। नियमो में अधिकांश सरकारी व निजी स्कूल में बच्चो को रोज स्वास्थ परीक्षण का कोई प्रावधान नही है। सरकारी व निजी स्कूल में मास्क बच्चो को रोज मास्क नही दिया जा सकता न ही हर वक़्त बच्चे इसका पालन करा सकते है। सरकारी व निजी स्कूल में बच्चो को रोज सेनेडाइजर की व्यवस्था हो सके यह सरकारी तंत्र या निजी प्रबंधन के लिए केवल दिखावे की बात होगी।

अक्सर सवाल उठते रहे है कि दम तोड़ती सरकारी शिक्षा में हाजरी केवल मध्यान्ह भोजन के लिए होती है जिसकी गुणवत्ता पहले से ही मानकों पर खरी नही उतर सकी तो कोरोना काल में हाइजीनिक खाना देना टेढ़ी खीर है।सूखा राशन वितरण का कार्य में धांधलेबाजी कुछ जगहों पर प्रकाश में आई यह गोलमाल किसी से छुपा नही है। लक्षितो तक सामग्री पहुचे बिना ही राशि निकालकर महामारी के नाम पर बंदरबाट की जा रही है।मध्यान्ह भोजन में सालाना प्रशिक्षण बंद पड़े स्कूलों में हो चुके है। इस कार्य मे व्यय हुए लाखो रुपये कागज टेबल के खेल का संकेत देते है..! जैसे किचन सामग्री बंद पड़े स्कूलों में कागजो में दिखाई देती है। ऐसे तंत्र में भला आप क्या उम्मीद करेंगे कि बच्चे स्कुलो में सुरक्षित है और शिक्षा ग्रहण कर रहे है,जहा स्थानीय विभाग से जुड़ा अधिकारी व उसका खास कर्मचारी मिलकर थोड़े से रुपयों में साल भरकर गायब रहने वालों की तन्खाह निकाल देते हो।

ऐसे में भला कौन मास्टर अपनी जान जोखिम में डालकर सरकारी शाला में पढ़ाने जाएगा…? गुरुजी नही आये तो पढ़ाई कैसी…? निजी शालाओ में ऑन लाइन वसूली जारी है।पालक और प्रबंधन सड़को से लेकर न्यायालयों में मुकदमेबाजी कर रहे है फिर शिक्षा कौन देगा?ई क्लासेस महज नुमाइश तो नही …..? वर्चुअल स्कूल, ई क्लासेस इनदिनों नया फैशन बन गया है।छत्तीसगढ़ में देखने मे आया है सरकारी पाठशालाओ में महीनों माथा फोड़ी के बाद भी न तो गुरुजी नियमित क्लास ले रहे है और न ही बच्चे जुड़ रहे है। आंकड़ेबाजी का दावा तो ऐसा है जैसे पूरी दुनिया मे कोरोना काल मे केवल छत्तीसगढ़ में पढ़ाई हो रही हो। सभी छात्रो के पास मोबाइल है और नेटवर्क हर जगह मौजूद है ..?

एक दो जिलों को छोड़कर पढ़ई तुंहर द्वारा अभियान में से शिक्षक ही त्रस्त हो गए है। हवा हवाई प्रशिक्षण औऱ तकनीकी दक्षता के बिना पहले उन्हें ऑनलाइन क्लासेस के लिए कोल्हू के बैल की तरह पेरा गया तो कभी गली गली,पारा मोहल्ले में जाकर स्वेच्छा से स्कूल चलाने के लिए मजबूर किया जाता रहा,नतीजन अनेक गावो वालो ने विरोध किया और सख्त मनाही कर दी।कई जगहों में बच्चे और शिक्षक भी संक्रमित हो रहे है।केंद्र सरकार की गाइडलाइन का यह कैसा पालन है ? इसका जवाब न तो स्कूल शिक्षा सचिव के पास है न तो विभाग के पास है।

शिक्षा संघो का मानना है कि अब तक के प्रयोग जमीनी स्तर से कोसो दूर है।अब तक केवल निज प्रयोगों की नई नई पाठशालाओ में शिक्षको और विद्यार्थियों को जानबूझ अपने प्रयोगों के लिए कोरोना की ओर धकेलने की कोशिश नाकाम तंत्र के नामवीरो के द्वारा गाथा गायन के जरिये की जा रही है।आम शिक्षको की मजबूरी इसका हिस्सा बनना जरुरी है। आम शिक्षको का मानना है कि कोरोना काल का दौर गुज़र जायेगा पर इन्ही नाम वीरों को मिल रहा प्रोत्साहन करीब दो लाख से अधिक शिक्षको के बीच सवाल बन कर हमेशा बना रहेगा।

पालकों का कहना है कि सरकारों को इस दिशा में प्रयास कर सर्वसुलभ तरीको से बच्चो को घर पर ही पढ़ने के लिए व्यापक व्यवस्था शीघ्र करनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों को भी लाभ हो, पालक भी निश्चिंत रहें और शिक्षक भी सुरक्षित हो सके। आन लाइन , टीवी, केबल, रेडियो DTH , दूरदर्शन जैसे सुलभ साधनो का एक साथ एक नीति के तहत उपयोग किया जाना चाहिए।निजी और सरकारी स्कूल के पालको का मानना है बिना दवाई और वैक्सीन आने तक बिना किसी व्यापक सुरक्षा इंतजाम के जिगर के टुकड़ों को स्कूल भेजना खतरनाक होगा।

सवाल फिर वही आ जाता है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एस ओ पी का पालन कैसे होगा ..? शिक्षको को कर्म योगी बना कर आदेशों का तीर दिखा कर स्कूलों में ढकेल भी दिया तो संक्रमण की स्थिति नैतिक जवाबदेही कौन उठायेगा ..?

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