बिलासपुर— हाईकोर्ट ने पूर्व पुलिस अधीक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुे वेतन को पदोन्नति दिनांक से फिक्स करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता अशोक कुमार शर्मा ने हाईकोर्ट के आदेश पर खुशी जाहिर की है।
हाईकोर्ट में अशोक कुमार शर्मा पूर्व पुलिस अधिक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुए पदोन्नति दिनांक से फिक्स करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता के वकील संदीप दुबे ने बताया कि अशोक कुमार शर्मा सब इंसपेक्टर से इंसपेक्टर पद पर 1 जून 2001 से पदोन्नति की पात्रता रखते थे। लेकिन पुलिस विभाग के उच्च अधिकारियों ने लघुशास्ती आरोपित कर पदोन्नति से वंचित कर दिया। जबकि लघुशास्ती आरोपित किये जाने पर पदोन्नति की पात्रता बनी रहती है। लेकिन पूर्व उच्च अधिकारियों ने दीर्घशास्ती मानकर प्रमोशन से वंचित कर दिया।
मामले में उच्च न्यायालय के आदेश पर अशोक कुमार को सब इंसपेक्टर से इस्पेक्टर पद पर पदोन्नति 1 जून 2001 से दिया गया। लेकिन काम नहीं वेतन नहीं के आधार पर वेतन बढ़ोत्तरी नहीं की गयी। जबकि यह गलती उच्च अधिकारीयों की थी।
अशोक कुमार शर्मा ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर विभिन्न उच्चतम न्यायालय के न्याय दृष्टांतों को सामने रखा। कोर्ट को बताया गया कि पुलिस विभाग ने जानबुझ कर दीर्घशास्ती किया है। राज्य सरकार के वकील ने अपने जवाब में बताया कि पुलिस विभाग सेजारी जी.ओ.पी के अनुसार जिस अधिकारी के खिलाफ अपराधिक प्रकरण या विभागीय जांच से बरी कर दिया गया है। उसको काम नही वेतन नहीं के सिद्धांत पर नोशनल पदोन्नति दी जाती है।
इसलिये अशोक कुमार शर्मा को पदोन्नति तो दिया गया लेकिन वित्तिय लाभ से दूर रखा गया। न्यायधीश संजय के.अग्रवाल के कोर्ट ने अंतिम सुनवाई के बाद आदेश दिया कि उच्चतम न्यायालय के तमाम निर्णयों को ध्यान में रखते हुए पुलिस विभाग के जी ओ पी के अनुसार याचिकाकर्ता का प्रकरण ऐसा नहीं था कि उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण या विभागीय जांच हो। सिर्फ लघुशास्ती के कारण पदोन्नति पर बाधा किसी भी सूरत में ठीक नही है। पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के तरफ से पेश किए गए संपूर्ण दस्तावेज करने के बाद वित्तिय लाभ दिया जाए।