बिलासपुर ( प्राण चड्डा ) । एशियाई हाथियों की कम होती संख्या और मानव से उनका बढ़ता संघर्ष चिंता का विषय है । छतीसगढ़ में इस समस्या ने गम्भीर रुख अख्तियार कर लिया है। झारखंड और उड़ीसा की सीमा से लगे जिले में कई गाँव हाथी प्रभावित हैं। प्रोजेक्ट एलिफेंट और कारीडोर का पता नहीं।
सन 1993 सरगुजा जिले में एक दर्जन उत्पाती हाथियों को आपरेशन जम्बो चला कर पकड़ा गया था, छतीसगढ़ राज्य बनने के बाद हाथी विशेषज्ञ पर्वती बरुआ और फिर माइक पाण्डे की सेवा ली गयी पर बात अभी बनी नहीं ,,!
जशपुर ,सरगुजा, रायगढ़, कोरबा के इलाके में मानव और हाथी से संघर्ष खन्दक का है ,, हाथी यहाँ के गांवों में पहुँच कर फसलों को चट करते हैं और कच्चे घर तोड़ चावल खा जाते हैं रास्ते में जो मिला उसे रौंद दिया,,!
छतीसगढ़ में ये समस्या हाथी, से बड़ी हो चुकी है कोई हाथी विशेषज्ञ नहीं जो इसका निदान कर सकत।, इन दिनों एक नर हाथी अचानकमार टाइगर रिजर्व के इलाके में घर तोड़ रहा है। पहले भी एक नर हाथी इधर आया था जो बाद पकड़ा गया। एक पखवाड़े से यहाँ पहुंचे इस हाथी को भी पकड़ने की योजना पर अंतिम मोहर लगने वाली है। गजेटियर में उल्लेख है कभी बिलासपुर जिले के मातिन में तीन सौ हाथी थे। जो बारिश के दिनों यहाँ तक आ जाते थे । ये सौ साल पहले की बात है । आज अचानकमार में पालतू हथिनी हैं क्या उसके नर’ हरम को छीनने ये नर जंगली हाथी अपने मदकाल में आक्रामक हो कर आ रहे है,?