हसदेव अरण्य क्षेत्र के सभी कोल प्रोजेक्ट रद्द करने सहित कई माँगें, सरगुजा से निकली दस दिन की पदयात्रा 14 अक्टूबर को पहुंचेगी रायपुर

Chief Editor
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बिलासपुर। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से हसदेव बचाओ पदयात्रा निकाली गई है। 4 अक्टूबर को सरगुजा के फतेहपुर से शुरू हुई यह पदयात्रा 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी। सरगुजा से रायपुर के लिए निकली दस दि्न की यह पदयात्रा हसदेव नदी, जंगल ,पर्यावरण ,आजीविका ,संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए आयोजित की गई है। जिसमें हसदेव अरण्य क्षेत्र की सभी कोयला खनन परियोजनाओं को निरस्त करने के साथ ही कई मांगें शामिल हैं।

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हसदेव अरंड बचाओ संघर्ष समिति की मांग है कि हसदेव अरणा्य क्षेत्र की सभी कोयला खनन परियोजनाएं निरस्त की जानी चाहिए। बिना ग्रामसभा सहमति के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए। पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से पहले ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू किया जाए। परसा कोल ब्लॉक के लिए फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई स्वीकृति को तत्काल निरस्त कर ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर एफ आई आर दर्ज की जाए। इसी तरह घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वनाधिकार को बहाल करते हुए सभी गांव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत अधिकारों को मान्यता दी जाए। संघर्ष समिति पेशा कानून 1996 का पालन करने की मांग भी कर रही है।

हसदेव बचाओ पदयात्रा 10 दिन तक चलेगी। इसकी शुरुआत 4 अक्टूबर को सरगुजा जिले के फतेहपुर से हुई। जहां से सूरजपुर जिले के तारा, टूटा होते हुए कोरबा जिले के मदनपुर मोरगा से होकर केंदई में पहला दिन समाप्त हुआ। 5 अक्टूबर को केंदई से निकलकर नवापारा, परला, चोटिया ,लमना ,बंजारी डांड, मडई, गुरसिया पहुंची। 6 अक्टूबर को कोनकोना, पोड़ी उपरोड़ा, ताना खार होते हुए कटघोरा पहुंचेगी । यह पदयात्रा कोरबा जिले के कटघोरा पाली से होते हुए 8 अक्टूबर को बिलासपुर जिले के रतनपुर पहुंचेगी। 9 अक्टूबर को रतनपुर से गतौरी होते हुए बिलासपुर पहुंचेगी। इस तरह 13 अक्टूबर को यह यात्रा रायपुर पहुंचेगी जहां 14 अक्टूबर को सम्मेलन होगा और मुख्यमंत्री – राज्यपाल से मुलाकात की जाएगी ।

हसदेव अरंड बचाओ संघर्ष समिति का कहना है कि कोयला खदानों के लिए जल- जंगल- जमीन -पर्यावरण का विनाश बंद होना चाहिए। यह इलाका संविधान की पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आता है। इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों की रक्षा करने की बजाय खनन कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को जंगलों और जमीनों से उजाड़ने का काम कर रहे हैं। पूरी दुनिया में मंडरा रहा जलवायु परिवर्तन का संकट धरती पर हर प्राणी के अस्तित्व का संकट बन गया है। तब भी सरकारें खनन कंपनियों के साथ मिलकर हसदेव अरण्य के समृद्ध और विशाल वन क्षेत्र का विनाश करने के लिए आतुर हैं। हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सरगुजा जिले में एक विशाल और समृद्ध वन क्षेत्र है। जो जैव विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का कैचमेंट है। यह बांध जांजगीर-चांपा ,कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतों की प्यास बुझाता है। यह हाथी जैसे महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों कारावास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है।

संघर्ष समिति का कहना है कि वर्ष 2015 में हसदेव क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा था कि हमारे इलाके में किसी भी कोल ब्लॉक का आवंटन / नीलामी न की जाए। यदि ऐसा किया गया तो हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे और किसी भी कीमत पर अपने जंगल जमीन का विनाश नहीं होने देंगे। अपने जल -जंगल- जमीन- आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का हमारा संवैधानिक अधिकार है। पेशा कानून और वन अधिकार मान्यता कानून हमें यह अधिकार देता है। इसके बावजूद कारपोरेट परस्त मोदी सरकार ने हमारे क्षेत्र में गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की कंपनियों को कर दिया। इन राज्य सरकारों में नागरिकों के हितों को ताक में रखकर बाजार मूल्य से भी अधिक दरों पर अडानी समूह से कोयला लेने के अनुबंध किए जो एक नया कोयला घोटाला है।

समिति ने यह भी याद दिलाया है कि 2015 में उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मदनपुर मैं चौपाल लगाकर आदिवासियों को भरोसा दिलाया था कि उनकी पार्टी इस संघर्ष में साथ खड़ी है। लेकिन कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्ता में होने के बाद भी अपने उस वादे से मुकरते हुए मोदी सरकार की सहयोगी बनकर अडानी और बिरला कंपनियों कंपनी के लिए हमसे हमारे जंगल जमीन को छीन रही है। ग्रामीणों ने 2019 में फतेहपुर में 75 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया। लेकिन राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । इस बारे में अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है और इसके उलट अदानी कंपनी के मुनाफे के लिए माइनिंग का काम शुरू करवाने के लिए शासन-प्रशासन मदद कर रहा है। ऐसी हालत में हम अपने जल, जंगल, जमीन पर निर्भर हमारी आजीविका ,हमारी संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए अहिंसक सत्याग्रह और आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं।

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