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15 अगस्त 1947 का सूरज नया था..खुशियां सुखद और अजीब थी…मुश्किल है शब्दों में बयान-बाजपेयी

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IMG20170814124421बिलासपुर(भास्कर मिश्र)।15 अगस्त 1947 की सुबह अकल्पनीय, अद्भुभुत और अविश्नीय थी। जिसका बखान शब्दों का जादूगर भी पूरी तरह से नहीं कर सकता। सुबह ही कुछ ऐसी थी..जिसका इंतजार लोगों को करीब दो सौ साल से था। शब्दों में इतना ताकत नहीं है..उस खुशी का मैं बयान कर सकूं। यह उदगार आजादी पहले जन्मे और 15 अगस्त 1947 में पांचवी के छात्र रहे गंगाप्रसाद बाजपेयी ने कही। गंगा शरण ने सीजी वाल को बताया कि बहुत कठिन सवाल है। इसका उत्तर मेरे पास बस इतना है कि स्कूल सड़क हर जगह समुचा भारत जश्न मना रहा था। जिसको जैसा लगा उसने अपनी खुशियों को जाहिर किया।
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                                                 गंगा प्रसाद बाजपेयी ने बताया कि हमारे पिता रेलवे कर्मचारी थे। तोरवा में रहते थे। रेलवे स्कूल का मै छात्र था। 15 अगस्त 1947 की सुबह सामान्य होने के साथ असमान्य था। सूरज भी नियमित समय पर जागा। रिमझिम बारिश भी हुई। स्कूल नियमित समय पर खुला। घड़ी की सुइयां  भी उसी चाल से चल रही थी। यदि कुछ परिवर्तन था लोगों के चेहरे पर….। सभी लोग बेड़ियां कटने की बात कर रहे थे। गले मिल रहे थे। महात्मा गांधी से लेकर अमर सेनानियों की चर्चा कर रहे थे। वातावरण में अजीब से मोहक खुश्बु थी। उस खुश्बू की तलाश मैं आज तक कर रहा हूं। यद्यपि आजादी की वह खुश्बु धीरे धीरे गायब हो गयी। अब तो केवल रश्म अदायगी होकर रह गयी है। लोग आजादी का पर्व मनाते तो हैं..लेकिन कुछ रोबोटिक स्टाइल में।

                                                   गंगा प्रसाद बाजपेयी ने बताया कि हम लोग दिन भर बांस की खपची में तिरंगा लगाकर घूम रहे थे। दौड़ रहे थे…जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे..भारत मां की जय बोल रहे थे। उस मंजर को याद कर आज भी रोमांचित हो जाता हूं। सोचता हूं कि काश उस अनुभव को आज के लोग महसूस कर सकते। अपने आप उन्हें मालूम हो जाता कि आजादी क्या है। 15 अगस्त 1947 की खुशियां कैसी थीं।

                                                उस दिन पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग विकास के नए नए सपने देख रहे थे। विकास हुआ..जमकर हुआ..। लेकिन जैसा होना चाहिए था…वह नहीं दिखाई दिया। अब महसूस होता है कि 70 साल का जवान इतने जल्दी बूढ़ा कैसे हो सकता है। लोग स्वार्थी हो गए हैं। क्योंकि आजादी के दिन सत्तर साल से ऊपर वालों में भी जवानी दिखाई दे रही थी। लोग उछल कूद कर रहे थे।

                                           बाजपेयी ने बताया कि बिलासपुर का विकास हुआ…लेकिन जैसा होना चाहिए था..ऐसे लक्षण आज भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। जननेता अब सेवक ना होकर राजनेता हो गए हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है…। मुझे तो देश बहुत कमजोर और लाचार सा दिखाई देने लगा है। पहले कुछ भी नहीं था..लेकिन अशांति के लिए बिलासपुर में जगह नहीं थी। रेलवे की सुनिश्चित बसाहट ने बिलासपुर को जिन्दा रखा था..आज भी है। अब तो लोग त्याग से पहले हक मांंगते हैं। बिलासपुर कस्बाई शहर था। प्रकृति ने इस धरती को कुछ ऐसा बनाया था कि पानी का कहीं ठहराना मुश्किल था अब हमने कुछ ऐसा बना दिया है कि जमीन में कई मीटर गहराई में भी पानी नहीं है।

                                            1947 के बाद कई सालों तक आजादी की सोंधी खुश्बू को महसूस किया जा सकता था। धीरे धीरे आजादी की खुश्बू गायब हो गयी। जो रश्म अदायगी पर अटक गयी है। जब तक लोगों को अहसास नहीं होगा कि भारत मां की बेड़ियों को काटने मेें कितने लोग होम हुए…तब तक आजादी का अर्थ लोगों को समझ में नहीं आएगा। आज लोगों को इसे समझाने और महसूस कराने की जरूरत है।

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