150 साल से परंपराओं को जीवित रखा…असम प्रतिनिधि मंडल

BHASKAR MISHRA
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6067_0(1)रायपुर—पूर्वोत्तर राज्य असम में डेढ़ सौ साल से छत्तीसगढ़ के लोगों की पांचवीं पीढ़ी निवास कर रही है। छत्तीसगढ़ के लोग आज भी अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं और भाषा को संजोकर रखा है। यह बातें असम के प्रतिनिधियों ने छत्तीसगढ़ दो दिवसीय पहुंना संवाद कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम का समापन राजधानी स्थित महंत घासीदास संग्रहालय में किया गया । छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग के दो दिवसीय कार्यक्रम में असम के 28 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने शिरकत किया। समापन सत्र में छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया गया। असम प्रतिनिधि मंडल सोमवार को रायपुर और आस-पास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करेगा।

             
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                                दो दिवसीय पहुना संवाद समापन कार्यक्रम में परिचर्चा के दौरान असम के प्रतिनिधियों ने बताया कि करीब 150 साल पहले  छत्तीसगढ़ के लोगों को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने मजदूर बनाकर असम के चाय बगान में भेजा।  प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि पुरखों की भूमि में आकर खुशी महसूस कर रहे हैं।  हम लोगों ने आज भी छत्तीसगढ़ के त्यौहार,  लोकगीत, लोकसंगीत और खानपान की सभी परम्पराओं को पालन करते हैं। छत्तीसगढ़ के लोग वहां सांसद और विधायक निर्वाचित हुए हैं। सरकारी नौकरियां भी कर रहे हैं।

                                   दीपलाल सतनामी ने बताया-छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनी माता का जन्म असम राज्य में ही हुआ था। छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के अध्यक्ष चंद्रशेखर साहू ने छत्तीसगढ़ और असम राज्य के सालों पुराने सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। संस्कृति विभाग के संचालक आशुतोष मिश्रा ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति विभाग ने आयोजन के जरिए छत्तीसगढ़ की संस्कृति और अन्य प्रदेशों में पीढ़ियों से रहने वाले छत्तीसगढ़ियों पर स्थानीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा है, जानने का प्रयास किया है।

                संस्कृति विभाग के पूर्व संयुक्त संचालक अशोक तिवारी ने बताया कि असम में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों के साथ शासकीय स्तर पर संवाद और सम्पर्क का यह पहला प्रयास है। इस प्रकार के आयोजन से संबधों को मजबूती मिलेगी।

                         असम से आये प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख शंकर चंद साहू ने सुझाव दिया कि असम में रहने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ी संस्कृति केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए। परिचर्चा में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र, साहित्यकार डॉ. जे.आर. सोनी, गीतकार लक्ष्मण मस्तूरिया, लेखक आशीष ठाकुर, जागेश्वर साहू, ललित शर्मा और संजीव तिवारी समेत गणमान्य लोगों ने अपने विचार कार्यक्रम में सबके सामने रखा। राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी भी मौके पर विशेष रूप से उपस्थित थे।

                          कार्यक्रम में असम प्रतिनिधियों में शंकर चंद्र साहू, गणपत साहू, जागेश्वर साहू, दीपलाल सतनामी, त्रिलोक कपूर सिंह, दाताराम साहू, तुलसी साहू, रमेश लोधी, नितिश कुमार गोंड और श्रीमती पूर्णिमा साहू समेत अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किये। सदस्यों ने बताया कि छत्तीसगढ़ के लोग असम के कछार, कोकराझार, उदालगिरी, सोनितपुर, नौगांव, उत्तरी लखीमपुर, गोलाघाट, जोरहट, शिवसागर, डिबरूगढ़, तिनसुकिया और होजाई जिलों में निवास करते हैं। आज भी चाय बागानों में काम कर रहे हैं। खेती-किसानी समेत अन्य व्यवसाय से भी जुड़े हैं। वहां छत्तीसगढ़ के विहाव, गीत, कर्मा, ददरिया, सुआ-गीत, गौरा-गौरी गीत तथा देवारी गीत गाने की परम्परा है। हम लोग आज भी हरेली और छेरछेरा पर्व मनाते हैं।

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