VIDEO-रेलवे ज़ोन ऐतिहासिक जनआंदोलन के पचीस साल…यादों के झरोख़े से एक “एलर्ट मैसेज”

Shri Mi
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(रुद्र अवस्थी)बिलासपुर को हवाई सेवा से जोड़ने की मांग को लेकर अखंड धरना पिछले 235 दिन से लगातार जारी है। हवाई सुविधा जन संघर्ष समिति के बैनर तले शहर के सभी राजनीतिक दल, सभी व्यापारिक – सामाजिक संगठन ,छात्र – नौजवान और आम लोग इस धरना में शामिल हो रहे हैं। धरना के दौरान 15 जनवरी 1996 को हुए रेलवे जोन के ऐतिहासिक जन आंदोलन की 25 वीं वर्षगांठ मनाई गई। लोगों ने याद किया कि रेलवे जोन की मांग को लेकर इसी तरह लगातार धरना दिया गया था। लेकिन जब सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आत्मदाह की तर्ज पर बड़ा आंदोलन हुआ। केंद्र सरकार को ऐसे हालात नहीं बनने देना चाहिए और समय रहते महानगरों तक हवाई सुविधा मंजूर करना चाहिए। ऐतिहासिक आंदोलन की वर्षगांठ पर हवाई सेवा आंदोलन स्थल से सरकार को एक तरह से मैसेज भेज दिया गया है कि बिलासपुर को एक बार फिर बड़े आंदोलन की ओर धकेला जा रहा है। बिलासपुर की जायज मांग को लेकर एक बार फिर उठ खड़े हुए लोगों ने ऐतिहासिक आंदोलन को याद कर  अपना संकल्प फ़िर से दोहराया है। अब यह ज़िम्मेदारी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों  के हिस्से में आ गई है कि वे कब तक न्यायधानी की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा कर पाते हैं।

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किसानों के नाम पर राजनीति हो रही या नहीं..?

दिल्ली के आसपास के इलाके में चल रहे किसान आंदोलन के नाम पर राजनीति की चर्चा अक्सर सुनने को मिलती है। जिसमें तमाम पार्टी के लोग एक दूसरे पर राजनीति करने का आरोप लगाते हैं। किसानों के नाम पर राजनीति हो रही है या नहीं इस बारे में लोग बेहतर ढंग से जान रहे हैं। आसपास चल रही हलचल से इस बात का एहसास होता है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक क्या चल रहा है। पिछले हफ्ते किसानों के मुद्दे को लेकर बीजेपी की ओर से पूरे प्रदेश के साथ ही बिलासपुर में भी धरना प्रदर्शन किया गया। जिसमें प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार पर किसानों के साथ वादाखिलाफी का आरोप लगाया गया। बीजेपी के नेताओं का कहना था कि सरकार बारदाना की कमी के नाम पर धान नहीं खरीदने का बहाना बना रही है। साथ ही पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार की मदद से बारदाना की कालाबाजारी हो रही है। 15 साल तक सरकार में रहे अमर अग्रवाल का यह कहना भी मायने रखता है कि बारदाना की कालाबाजारी बिना सरकार के मिलीभगत के संभव नहीं है। उनकी ओर से यह बात भी उठाई गई थी की छत्तीसगढ़ सरकार ने बारदाना खरीदी का आर्डर कब दिया है इसे उजागर करना चाहिए। किसानों के मुद्दे पर जवाब देने में कांग्रेस के लोग भी पीछे नहीं रहे। यूथ कांग्रेसियों ने इस मामले को लेकर बिलासपुर सांसद के बंगले का घेराव कर दिया। प्रदर्शन के दौरान नारेबाजी की गई। यूथ कांग्रेसियों ने केंद्र सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को परेशान करने के लिए बारदाना पर रोक लगा दिया है। प्रदर्शन दोनों तरफ से लगातार जारी है। अब आम लोगों को ही यह तय करना है कि किसानों के नाम पर राजनीति हो रही है या नहीं और यदि हो रही है तो राजनीति कौन कर रहा है।

मैदान वही मारता है, जो खेलना जानता है…

मैदान खेल का हो या सियासत का…… खिलाड़ी की काबिलियत और लियाकत से ही उसे नंबर हासिल होते हैं। दोनों ही मैदान में सिरमौर होने के लिए अपना हुनर खिलाड़ी को ही दिखाना पड़ता है। खेल में जीत के लिए बेहतर टीम भी जरूरी है और हौसला आफजाई करने के लिए समर्थकों का साथ भी……..। जाहिर सी बात है कि सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी काबिलियत की वजह से ही आज सियासत के मैदान में सबसे ऊपर के पायदान पर नजर आ रहे हैं। लेकिन वक्त मिलने पर वे खेल के मैदान में भी हाथ आजमाने से नहीं चूकते। लोगों ने देखा है कि  हथेली पर भंवरा चलाने  की बात हो या हरेली त्यौहार में गेंड़ी  पर चढ़कर कदम बढ़ाने का मौका हो ……भूपेश बघेल हर जगह परंपरागत खेलों में अपनी महारत साबित करते रहे हैं। लेकिन हाल ही में बस्तर दौरे में तीरंदाजी करते हुए उनकी फोटो वायरल हुई तो लोगों को लगा कि निशाना लगाने का कोई भी मौका वे  चूकना नहीं चाहते। इसी तरह वॉलीबॉल मैदान में उतर कर भी उन्होंने हाथ आजमाया। इस खेल में भी सेंटर पर खेलते हुए उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई और सर्विस का भी बेहतरीन प्रदर्शन किया ।  शायद समर्थकों के लिए भी यही संदेश है कि मैदान वही मारता है जो खेलना जानता है।

रेल्वे से हाईकोर्ट ने किया जवाब – तलब

कोरोना  काल में कई जनसुविधाओं को लेकर लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रेल की सुविधा भी उसमें से एक है। लोगों को याद है कि पिछले साल कोरोना का कहर शुरू होने के बाद लॉक डाउन लगाया गया ,तब सारी ट्रेनें बंद कर दी गई थी। जिसमें से ज्यादातर रेलगाड़ियों के पहिए अब भी थमे हुए हैं। वक्त गुजरने के साथ कुछ एक्सप्रेस गाड़ियां चलाई गई। लेकिन ज्यादातर पैसेंजर ट्रेनें अब भी नहीं चल रही है। जिन रूट पर एक्सप्रेस गाड़ियां चलाई भी गई , उन्हें स्पेशल ट्रेन का नाम दिया गया। इन गाड़ियों में सफर करने के लिए मुसाफिरों को डेढ़ से दोगुना तक किराया देना पड़ रहा है। जाहिर सी बात है कि इससे लोगों को परेशानी हो रही है। यह मामला हाई कोर्ट में भी पेश किया गया है । याचिकाकर्ता ने पश्चिम बंगाल और बिहार  जैसे राज्यों का उदाहरण दिया ,जहां पैसेंजर और लोकल ट्रेनों को चलाने की मंजूरी रेलवे बोर्ड ने पहले ही दे दी है। मुंबई में भी लोकल ट्रेनें काफी समय से चल रही है। आरोप लगाया गया है कि कोरोना के बहाने रेलवे अपना किराया बढ़ाने के फिराक में है और कई रेल यात्री ट्रेनों को बंद करके माल परिवहन को प्राथमिकता दी जा रही है। जिस पर हाईकोर्ट ने रेलवे बोर्ड  से जवाब तलब किया है। इसके बाद अब शायद  रेल यातायात सामान्य करने की दिशा में कोई ठोस पहल हो सकेगी।

सरकारी दावे की हक़ीक़त

सरकारी कामकाज की समीक्षा इस तरह होनी चाहिए कि सही तस्वीर सामने आ जाए। कुछ इसी तरह की तस्वीर को जानने  – समझने की कोशिश में न्यायधानी पहुंचे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थानेश्वर साहू को बताया गया कि पिछड़ा वर्ग के सर्टिफिकेट को लेकर मेयर को भी भटकना पड़ता है। आयोग के अध्यक्ष को यह भी बताया गया कि कई योजनाओं का सफल क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है । जिससे जरूरतमंद लोगों तक उसका फायदा नहीं पहुंच रहा है। उन्होंने लोगों को बेवजह की परेशानियों से बचाने के लिए अधिकारियों को समय सीमा के भीतर काम पूरा करने की हिदायत दी। सरकारी  दावे की हकीकत को समझने की इस तरह की कोशिश सही मानी जा सकती है। लेकिन सरकारी कामकाज के तौर तरीके की हकीकत को समझने के साथ व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को यह समझने की भी जरूरत है कि बेहतर करने के लिए केवल हिदायत ही काफी नहीं है।

अरपा में रहे साफ़ पानी

न्यायधानी के लोग वर्षों से यह सपना देख रहे हैं कि अरपा नदी में 12 महीने पानी रहे। इसे लेकर अब तक कई योजनाएं बन चुकी हैं। लेकिन हकीकत की जमीन पर आज भी सिफर है।  सूबे की मौजूदा सरकार ने इसे लेकर ठोस पहल की है। इस सिलसिले में  अरपा नदी पर दो बैराज बनाने का काम शुरू किया गया है। जिसे देखने के लिए प्रदेश के कृषि और जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे भी पहुंचे। उन्होंने भरोसा दिलाया है कि बैराज का काम जल्दी ही पूरा होगा। जिससे अरपा नदी   में 12 मीटर पानी का भराव 12 महीने रहेगा। कोशिश यह भी हो रही है कि नदी के दोनों और ऐसे नाले बनाए जाएं जिससे शहर का गंदा पानी नदी में शामिल न हो । अब चुनौती यह है कि अरपा  में सिर्फ पानी ही ना रहे बल्कि साफ पानी रहे। इसका भी ठोस इंतजाम सरकार के जल संसाधन विभाग की ओर से करना पड़ेगा।।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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