बिलासपुर।नगर निगम(Bilaspur Nagar Nigam) में महापौर और सभापति का चुनाव हो गया ।इसमें कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की और चुनाव निर्विरोध हुआ ।पिछले करीब डेढ़ दो दशक से शहर की राजनीति चला रही BJP ने इस चुनाव में कांग्रेस को वाकओवर दे दिया और मैदान में उतरने से पहले ही अपनी हार मान ली । संख्या बल के लिहाज से भाजपा के सामने इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था ।लेकिन नए साल की पहली सियासी जंग में मैदान छोड़ने के इस फैसले को लेकर सवाल तैरने लगे हैं। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को भी इस सवाल के जवाब की तलाश है कि आखिर आखिरी समय में बीजेपी ने मैदान छोड़ने का फैसला क्यों किया …….? सीजीवालडॉटकॉम न्यूज़ के व्हाट्सएप् से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये
बिलासपुर शहर की राजनीति पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती रही है । इस दौरान पार्टी ने तमाम चुनावों में जीत हासिल की और कांग्रेस को लगातार पटखनी देती रही ।बीजेपी ने इस दौरान उन तमाम पदों पर कब्जा किया और जीत हासिल की , जिसमें कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। अपनी रणनीति के चलते भाजपा ने बिलासपुर शहर में कांग्रेस का एक तरह से सफाया कर दिया था । नगर निगम के ताजा चुनाव में भी बीजेपी पूरी तैयारी के साथ उतरी थी ।पार्टी ने हर स्तर पर ठोंक – बजाकर अपने पार्षद उम्मीदवार मैदान में उतारे ।यह भी रणनीति दिखाई दी कि बिलासपुर नगर निगम में जिन विधायकों का इलाका शामिल है, उनकी पसंद से भी उम्मीदवार उतारे गए।
नतीजे सामने आए तो पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ,नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक , पूर्व मंत्री डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी और तखतपुर विधानसभा क्षेत्र ( हर्षिता पांडे के इलाके में ) बीजेपी का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा । लेकिन बेलतरा विधायक रजनीश सिंह के इलाके में बीजेपी को झटका लगा । फिर भी भाजपा के लिए यह संतोषजनक ही कहा जा सकता है कि बिलासपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से 30 वार्डों में भाजपा के पार्षद चुनाव जीत कर आए । इसके बाद बीजेपी के नेता दो निर्दलीय पार्षदों को भी भाजपा में शामिल कराने में कामयाब रहे ।
इस तरह बीजेपी की पार्षद संख्या 32 तक पहुंच गई । जो कि कांग्रेस से बहुत पीछे नहीं कही जा सकती । ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि भाजपा महापौर और सभापति के चुनाव में भी तैयारी के साथ मैदान में उतरेगी । महापौर और सभापति चुनाव के पहले इसकी तैयारी भी दिखाई दे रही थी । तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में बीजेपी पार्षद दल की बैठक में इस पर चर्चा भी हुई । इन बैठकों का जो लब्बोलुआब सामने आया , उसके मद्देनजर लोग यह मानकर चल रहे थे कि चुनाव के दिन आखरी समय में भाजपा अपने पत्ते खोलेगी और उम्मीदवारों के नाम सामने आएंगे । इतना ही नहीं स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल ऑडिटोरियम मैं शपथ ग्रहण के बाद भी भाजपा के सभी पार्षद सीधे पार्टी कार्यालय के लिए रवाना हुए और वहां बैठक शुरू होने की खबर आई । तब यह माना जा रहा था कि महापौर और सभापति के लिए किसी नाम पर सहमति बनाकर पार्टी अपना उम्मीदवार उतारेगी ।
इस दौर में बीजेपी की ओर से मेयर पद के दावेदार के रूप में अशोक विधानी , राजेश सिंह और दुर्गा सोनी के नामों की भी चर्चा थी। लेकिन आखिरी समय में यह खबर निकल कर आई की भाजपा वाकओवर देगी और इस चुनाव में महापौर – सभापति पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगी । बीजेपी के इस फैसले के बाद महापौर पद पर कांग्रेस के रामशरण यादव और सभापति पद पर कांग्रेस के ही शेख नजरुद्दीन निर्विरोध चुन लिए गए।
सियासी हलकों में इस खबर को लेकर हलचल हुई है और पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच भी सवाल तैर रहे हैं ।अहम सवाल यह है कि आखिर भाजपा ने मैदान छोड़ने का फैसला क्यों किया ….? इस पर तरह-तरह की दलीलें भी चर्चाओं में है । मसलन कुछ लोगों का मानना है कि बीजेपी के सामने महापौर उम्मीदवार के रूप में कोई एक नाम तय करना मुश्किल भरा काम था । चूंकि पार्टी की तरफ से कई दावेदार सामने आ रहे थे । ऐसे में बड़े नेता असंतोष को और गहरा नहीं करना चाहते थे। दूसरी बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि क्रास वोटिंग के डर से भी बीजेपी ने यह फैसला लिया होगा ।
पार्टी में दावेदारों की संख्या को देखते हुए क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं से आशंका भी अपनी जगह कायम थी । इन सबसे ऊपर संख्या बल का मुद्दा है । पार्टी के जिम्मेदार नेताओं के सामने यह तस्वीर साफ थी कि संख्या बल के हिसाब से महापौर – सभापति चुनाव में बीजेपी की जीत लगभग नामुमकिन सी है । ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने से बेहतर है कि कांग्रेस को वॉकओवर दे दिया जाए।
माना जा रहा है कि इन तमाम बिंदुओं को सामने रखकर ही बीजेपी नेतृत्व ने मैदान छोड़ने का फैसला लिया है ।लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और पार्टी के लोग भी इसे हजम नहीं कर पा रहे हैं। तमाम दलीलें सामने आने के बाद भी ऐसी प्रतिक्रियाएं सुनने को मिल रही है कि भाजपा के इस फैसले से पार्टी के पक्ष में अच्छा संदेश नहीं गया है ।भाजपा हर समय – हर चुनाव के लिए तैयार रहने वाली पार्टी होने का दावा करती है । जिसे मुकाबले से भागना नहीं चाहिए ।……और तो और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता यह सवाल भी कर रहे हैं कि क्या हार के डर से अब भाजपा इस शहर में और आगे कोई चुनाव नहीं लड़ेगी ….? पार्टी के इस फैसले से उपजे सवालों के जवाब मिले या ना मिले …..। लेकिन बदले हुए राजनीतिक समीकरण में इस बात पर भी बहस चलने लगी है कि क्या पार्टी ने एक फजीहत से बचने के लिए दूसरी फजीहत मोल लेना बेहतर समझा है….?