स्कूलों में छत्तीसगढ़ी भाषा- बोलियों में होगी पढ़ाई …सीएम भूपेश बघेल के ऐलान के बाद शुरू हुई हलचल,शिक्षक नेताओ ने रखा अपना पक्ष, कही ये बात

Shri Mi
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बिलासपुर।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस पर लाल परेड मैदान में झंडा फहराया ।साथ ही परेड की सलामी ली ।इस मौके पर प्रदेशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने पिछले 1 साल में प्रदेश सरकार की ओर से शुरू की गई योजनाओं और जनकल्याणकारी कार्यक्रमों का ब्यौरा भी दिया।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर नई पीढ़ी को जागरूक और सशक्त बनाने के संबंध में तीन नई घोषणाएं की।भूपेश बघेल ने कहा कि जब केन्द्र में यूपीए सरकार थी तब ’शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ में प्रावधान किया गया था कि बच्चों को यथासंभव उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाये। विडंबना है कि राज्य में अभी तक इस दिशा मंे ठोस पहल नहीं की गई। आगामी शिक्षा सत्र से प्रदेश की प्राथमिक शालाओं में स्थानीय बोली-भाषाओं छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, भतरी, सरगुजिया, कोरवा, पांडो, कुडुख, कमारी आदि में पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

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सभी स्कूली बच्चों को संविधान के प्रावधानों से परिचित कराने के लिए प्रार्थना के समय संविधान की प्रस्तावना का वाचन, उस पर चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे। छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों की जीवनी पर परिचर्चा जैसे आयोजन किए जाएंगे।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इन घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ के शिक्षकों ने आगामी शिक्षा सत्र से प्रदेश की प्राथमिक शालाओं में स्थानीय बोली-भाषाओं में पढ़ाई को लेकर गुण-दोष बताया है।

शिक्षक नेता केदार जैन ने इस विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि मुख्यमंत्री की घोषणा का हम स्वागत करते है। प्राथमिक स्कूल के छात्र स्थानीय भाषा को अच्छी तरह समझ लेते है। कई बार स्थानीय शिक्षक भी पढ़ाई के दौरान बच्चों को स्थानीय भाषा मे समझाते भी है। लेकिन प्रत्येक स्कूल में स्थानीय भाषा के जानकार बहुत कम है। क्योकि शिक्षको की भर्ती स्थानीय आधार पर कम और सीधी भर्ती व प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर हुई है। जिसमे स्थान्तरण में भी कई शिक्षक निवास क्षेत्र से दूर गए है। इससे भविष्य में स्थानीय भाषा मे पढ़ाई से कई व्यवहारिक दिक्कतें आ सकती है। इस लिए इन से जुड़े सभी पक्षों पर ठोस रणनीतिक के तहत ही स्थानीय भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये ..! 

छत्तीसगढ़ टीचर  एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने बताया कि पाठ्यक्रम में स्थानीय भाषा को शामिल किए जाने का हम स्वगात करते है।छत्तीसगढ़ी प्राय सभी शिक्षक समझते और बोल भी लेते है। लेकिन इसके प्रमाणित विषय विशेषज्ञों की कमी है।  स्थानीय बोली को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने से भी विषय विशेषज्ञों से जुड़ी व्यवहारिक दिक्कतों आ सकती है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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