बिलासपुर(मनीष जायसवाल) :- प्रदेश का बजट तीन मार्च को पेश होने वाला है । मुख्यमंत्री ने अपना पहला बजट पेश करने से पहले शिक्षको को आश्वासन दिया था , कि यह बजट किसानो के है दूसरा बजट आपका होगा। सिक्के का एक हिस्सा यह है कि वर्तमान में संविलियन औऱ संविलियन से वंचित प्राथमिक शाला के शिक्षक की आर्थिक दशा सबसे खराब है। उन्हें उमीद है कि उनकी दशा बदलेगी। संविलियन से वंचितों सभी वर्गों के शिक्षको का संविलियन होगा। अटके हुए एरियर्स के लिए बजट में प्रवधान होगा। क्रमोन्नत वेतन मान मिलेगा। पदोन्नति होगी। अनुकम्पा नियुक्ति सरल होगी। बहुत सी आशाये पाले शिक्षक बजट का बेसब्री से इंतजार कर रहे है।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए
सिक्के का दूसरा भाग शिक्षको की समस्याओ की राजनीति से जुड़ा हुआ है। 1965 में यश चोपड़ा की फिल्म ‘वक्त’ में राजकुमार का डायलॉग था “चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते… ! इस डायलॉग के सार को अनुभवी शिक्षाकर्मी नेता भली भांति समझते है। … लेकिन नए शिक्षाकर्मी नेता खुद अपनी स्थिति से अंजान है। शिक्षक हित साधना छोड़ तेरी कमीज से मेरी कमीज ज्यादा साफ है। यह बताने में लगे हुए है।
शिक्षको की प्रमुख मांगो के अलावा विभाग से जुड़ी कई छोटी मोटी समस्याएं है। जिसके लिए आम शिक्षको को खुद ही जूझना पड़ता है। एक ही स्कूल के आधे शिक्षको को वेतन की अंतर राशि का एरियर्स मिल जाता है।बाकि शिक्षक उसी एरियर्स के लिए बीइओ कार्यलयों के चक्कर लगाते रहते है।
मेडिकल बिल का भी वही हाल है।छात्रवित्ति हो या जबरस्ती आन लाइन एंट्री का फरमान या फिर गर्मी की छुट्टियों में समर क्लास आम शिक्षक खुद ही जूझता है।आम शिक्षको की छोटी मोटी समस्याओं पर शिक्षक नेताओ के एक सुर में शासन पर दबाव यदा कदा ही देखने को मिलते है।
2013 के बाद 2018 का आंदोलन गवाह है। कि शिक्षा कर्मीयो ने अब तक जो भी पाया है उसके लिए उन्हें स्कूल छोड़ सड़क की बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी है। संविलियन आंदोलन शिक्षको की एकता का गवाह रहा है। …सम्भव नही होने वाला संविलियन चरण बद्ध तरीक़े से हो हुआ और होते जा रहा है।संविलियन कमेटी के समक्ष सभी शिक्षक संघों को अपनी बात रखने का मौका भी मिला। शिक्षक संघों के संविलियन से जुड़े कानूनी दस्तावेज उहम हथियार बने।
चर्चा में शिक्षक नेता बताते है कि संविलियन में आठ साल का वर्ष की सेवा का बंधन किसी भी शिक्षक नेता को मूँजर नही था। लेकिन हालात ऐसे थे कि अधूरा संविलियन स्वीकार नही करते तो भविष्य में कब अवसर मिलता कहा नहीं जा सकता था। आठ वर्ष की सेवा अवधि की शर्त भविष्य में नियमित होने का रास्ता था।
संविलियन से वंचित शिक्षक बताते है कि प्रदेश में अब तक लगभग एक लाख तीस हजार शिक्षको का संविलियन हो चुका है। लगभग सोलहा हजार के आसपास शिक्षक संविलियन से अभी वंचित है। हमारी पीड़ा कौन समझें कल को आंदोलन करने की बारी आई तो क्या पूरे प्रदेश के शिक्षक संविलियन से वंचित शिक्षको के संविलियन की लड़ाई में सड़कों पर उतर सकते है। क्या यह संभव है …?
चर्चा में टीचर एशोसिएशन के शिक्षक नेता आलोक पाण्डेय बताते है कि हम राज्य के कर्मचारी है। सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रहे है। जो सत्ता में रहेगा हम उसने ही माँग करेंगे। हमे पूरी उम्मीद है यह बजट शिक्षको का होगा।
आलोक बताते है कि संविलियन आंदोलन के दौरान का शाला उपस्थित का रजिस्टर गवाह है, कि आंदोलन के दौरान जब आम शिक्षाकर्मी संविलियन के लिए लड़ रहा था शासन की मानसिक प्रताड़ना सख रहा था तब कुछ लोग जय चन्द बन गए थे। शिक्षको की एकता को तोड़ने के लििये भरपूर प्रयास कर रहे थे। कुछ शिक्षक नेताओ ने महिला शिक्षको को इतना इस कदर बरगला दिया था। कि कुछ महिला शिक्षक न चाहते हुए भी आंदोलन से दूर रही है। आंदोलन के वक़्त अगर पूर्ण तालाबंदी होती तो स्थिति कुछ और होती।
आलोक बताते है वर्तमान में हंगामा ही खड़ा करना मकसद है तस्वीर बदले यह ना बदले नाम तो होता रहेगा… ऐसा ही कुछ शिक्षक संघ कर रहे है। संविलियन पर सवाल उठाने वाले ये बताए कि जब संविलियन मंजूर नही था। तो संविलियन लिया ही क्यो …..? संविलियन जिन्हें नही चाहिए था उनके लिए अवसर था..! प्रपत्र में भरते संविलियन मंजूर नही … वे रहते पंचायत कर्मी और करते राजनीति …..!
आलोक बताते है कि शिक्षको के हितों लड़ाई शासन से है शिक्षक संघो कि आलोचना करने से कुछ हासिल नही होगा। शिक्षक नेताओ को शिक्षको के हितों को ध्यान में रखकर बयान बाजी करना चाहिए …! शिक्षक नेेेताओ को उसी पुराने संगठन से सिख ले जिसने आज तक कभी किसी संगठन के विरोध में कोई विरोधाभास युक्त कोई बयान नही दिया और न ही किसी की आलोचना की है।