कोरोना संकट के बीच नारायणपुर से हौसले की तस्वीर,मुफ्त राशन बुजुर्ग महिला मुसरे बाई और मनाय के लिए बड़ी राहत ले क़र आया,मुख्यमंत्री का किया शुक्रिया और दिया आशीर्वाद

Shri Mi
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नारायणपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दो माह का मुफ्त राशन देने नारायणपुर की बुर्जुग महिला मुसरे बाई और मनाय के लिए भी बड़ी राहत लेकर आयी।गरीब मुसरे बाई और मनाय के लिए कोरोना संकट के समय निःशुल्क राशन मिलने से उनके चेहरे पर मुस्कान लेकर आयी। जिससे उन्होंने खुद और परिवार को संभाला। राज्य के लाखों गरीब परिवार हैं। जिनको कोराना के चलते और लॉकडाउन के कारण कोई काम नहीं था। रोज़ी-रोटी की विकट समस्या हो गई थी, या दूसरे शब्दों में कहें तो क़ोरोना के कारण उनकी कमर झुक गई थी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने वक्त रहते बात को समझा और तुरंत मुफ़्त राशन की राहत देकर गरीब परिवारों की रोज़ी-रोटी की समस्या हल की।या यह कहिए उनकी झुकी कमर को फिर से सीधी करने में महत्वूपर्ण भूमिका निभायी है. सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप NEWS ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए

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नारायणपुर की दोनों आदिवासी बुजुर्ग महिला मुसरे बाई और मनाय अच्छा उदाहरण है। अब इन दोनों को राशन के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पडे़गा। सरकार ने इनकी भोजन की व्यवस्था जो कर दी है। दोनों बुजुर्ग महिलाओं ने दोनों हाथ ऊपर उठाकर मुख्यमंत्री का शुक्रिया अदा किया और उन्हें आशीर्वाद दिया ।यह जमीनी हकीकत है कि कोरोना वायरस का संक्रमण रोकन तथा बचाव के लिए सरकार की ओर से लॉकडाउन लागू करने के बाद से इस मुश्किल वक्त में जरूरतमंद, गरीब, असहाय लोगों के लिए शासन के हितकारी फैसले और कार्यक्रम लोगों के लिए सहारा बने है।

कोरोना महामारी के संकट की घड़ी में छत्तीसगढ़ की मुसरे बाई और मनाय जैसी हजारों गरीब महिलाओं को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन उपलब्ध कराया है। इसके साथ ही वे खुद ही मानीटरिंग कर रहे है। ताकि किसी गरीबी को जरा सी भी तकलीफ नहीं हो और कोई भूखा न रहे। आगे बताता हूं कि इससे पहले क्या हुआ।जरूरी समान लेने घर से थोड़ी दूर निकला ही था कि देखा बुर्जुग महिला एक हाथ में डंडा दूसरे हाथ में कुछ किताब (राशन कार्ड) और सर पर गठरी लिए थी। जिसे लेकर धीरे-धीरे चल़ रही थी। उनकी चाल से लग रहा कि घर नजदीक है। अन्यास तस्वीर कैद करने की इच्छा जागी और दो तस्वीरें कैद हो गयी । अब मन उनके नजदीक जाने और बात करने अतुर हुआ। अपने सारथी को आगे गाड़ी बढाने बोला। तब तक वह घर के अन्दर पहुंच चुकी थी। हल्की थपकी दी दरवाजा खुला। उनसे बातचीत की पर वह पर्याप्त नहीं थी। हमेशा की तरह बोली भाषा की समस्या फिर एक बार मेरे आड़े आयी।

उनके आवभाव और कुछ इशारों अपने वाहन चालक की मदद और उनके राशन कार्ड से कुछ समझा। मनाय पति रैजूराम और नक्सल प्रभावित विकासखंड ओरछा के नक्सल हिंसा ग्रस्त गांव गोमे की है। राशन कार्ड भी यही कह रहा था ।

वही मुसरे पति माहरू का राशनकार्ड में पता नारायणपुर का लिखा था पर यही वहीं ओरछा विकासखंड से ही ताल्लुकात रखती थी। माड़िया, गोड़ी बोली न आने और इनके हिन्दी न जानने के कारण इनकी बातों को पूरी तरह नहीं समझ सका। घर पर उस समय छोटे बच्चे के अलावा कोई नहींे था। मैंने पूछा कि आपको राशन कौन दे रहा है, काफी देर बाद बमुश्किल समझ कर राशन कार्ड पर छपे मंत्री फोटो पर उंगली रख कर इशारा किया । मैं समझ गया कि बोली भाषा आना ही जरूरी नहीं हाथों उंगलियों आदि के इशारों से भी बात की और समझी जा सकती है। कोरोना और लॉकडाउन के कारण आसपास भी कोई नहीं दिख रहा था । एक दो लोग दिखे भी पर ज्यादा कुछ नहीं बता पाये। यही कहा कि मुंह बोले भतीजों के पास रहती है। पति का निधन हो चुका है। परिवार के लोग रोजीरोटी कमाने कही गये है पर आये नहीं है। चूंकि यह रहने वाले अधिकतर लोग नक्सल हिंसा पीड़ित है। जो नक्सलियों के भय से यहां आकर बसे हुए है। अधिकांश लोग माड़िया गोड़ी या हल्बी बोलते है।  

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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