वकीलों की आर्थिक हालात को लेकर कोर्ट सख्त…हाईकोर्ट ने पूछा कैसे करेंगे सहायता….अगली पेशी में करें स्पष्ट

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—- लाक डाउन में कोर्ट कचहरी बन्द होने से अधिवक्ताओं की खस्ता आर्थिक हालत को लेकर राजेश केशरवानी की याचिका पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता राजेश केशरवानी की तरफ से हाईकोर्ट अधिवक्ता संदीप दुबे ने पैरवी की। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ने बातों को रखा। 
 
                याचिका पर सुनवाई के दौरान संदीप दुबे ने बताया कि 25 मार्च से लॉक डाउन है। कोर्ट  कचहरी पूरी तरह से बन्द है। जिसके चलते पिछले एक महीने से अधिवक्ताओं का विधि व्यवसाय ठप है खासकर जूनियर वकीलों के सामने परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इस स्थिति में सरकार तो सोचने से रही लेकिन, संगठन से भी उम्मीद जाती रही।
 
                        सुनवाई वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग से जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस गौतम भादुड़ी की डीविजन बैंच में हुई। संदीप दुबे ने बताया कि छत्तीसगढ़ बार कौंसिल और अधिवक्ता कल्याण के लिए ट्रस्ट का गठन किया गया है। ट्रस्ट के सचिव विधि विभाग के विधि सचिव होते है। लेकिन आज तक ट्रस्ट की तरफ से वकीलों को किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली  है। समय लाकडाउन का है। वकीलों की आर्थिक हालत बद से बदतर हो चुकी है। कोर्ट बन्द होने से विधि व्यवसाय पूरी तरह से ठप है। कोर्ट से उम्मीद है कि ट्रस्ट को निर्देशित जूनियर वकीलों की आर्थिक मदद करे।
 
        सुनवाई के बाद हाकोर्ट डिवीजन बैंच ने बार काउसिल से कहा कि बताएं वकीलों के मदद के लिए अभी तक क्या योजनाएं बनी है। मदद के लिए अब तक क्या क्या प्रयास किए गए। बार कौसिल से संतोषप्रद जवाब नहीं मिलने पर हाईकोर्ट ने संख्त निर्देश दिया कि मामले में अब अगले हफ्ते सुनवाई होगी। बार काउंसिल को बताना होगा कि वकीलों की आर्थिक सहायता के लिए क्या स्कीम है। और अब तक कितनों की मदद की गयी है। कोर्ट ने सरकार की तरफ मुखातिब होकर कहा कि महाधिवक्ता अगली सुनवाई में बताएंगे  कि संकट काल में वकीलों के सहयोग को लेकर सरकार क्या कर रही है।
 
        बहरहाल मामला कोर्ट में है। लेकिन वकीलों से आर्थिक सहयोग और बार काउंसिल की भूमिका को लेकर सोशल मीडिया पर आयी प्रतिक्रियाओं को पढ़ते हैं।
                  
क्या कहते हैं राज्य विधिज्ञ परिषद के सह सचिव
 
          सुनवाई के बाद राज्य विधिक परिषद के सचिव टीका राम साहू ने बताया कि पंजाब-हरियाणा सहित अन्य राज्यों मैं जिस प्रकार के नियम है उसी के अनुरूप छत्तीसगढ़ में भी सहायता राशि देने का प्रावधान किया गया है। अधिवक्ताओं का विरोध भी इस विषय पर हो रहा है जिस पर ध्यान रखते हुए आवेदन मंगवाए जा रहे हैं।
 
अव्यावहारिक नियम
 
रायगढ़ अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष राजेंद्र पांडे ने कहा कि अधिवक्ताओं की ओर से विरोध किया जाना स्वाभाविक है।  स्टेट बार की ओर से स्पष्ट नियम नहीं हैं। लगता है कि जल्द ही समाधान निकल आएगा। स्टेट बार की ओर से किया जा रहा पहल सराहनीय है। 
 
निकाला जाएगा रास्ता
 
जिला अधिवक्ता संघ के सचिव महेंद्र सिंह यादव ने कहा कि स्टेट बार कौंसिल की ओर से पत्र आया है। फार्म भी उपलब्ध हैं जिसे कई अधिवक्ताओं ने भरा है। स्टेट बार काउंसिल की ओर से जो निर्देश हमें प्राप्त हुए हैं उसका परिपालन किया जा रहा है।चाहता हूं कि सहायता राशि बिना भेदभाव के सभी को मिले।
 
अधिवक्ता संघ खरसिया का बयान
 
अधिवक्ता संघ खरसिया अध्यक्ष रूपेंद्र जायसवाल ने कहा कि स्टेट बार काउंसिल की ओर से अधिवक्ताओं को सहायता राशि देने के जो प्रयास किए जा रहे हैं। प्रोसीजर और नियमों से भ्रांति की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। ऐसे समय में जबकि लॉक डाउन का पार्ट-2 खत्म हो चुका है और पार्ट-3 शुरू होने वाला है तब आप विचार विमर्श कर रहे हैं। यह सहायता राशि तो बिना पूछे पहले ही दे दी जानी चाहिए थी।
 
कंडीशन सम्मानजनक नहीं
 
सारंगढ़ अधिवक्ता संघ के सचिव प्रफुल्ल तिवारी ने कहा की स्टेट बार की ओर से जो कंडीशन रखी गई है। इसे सम्मानजनक नहीं कहा जा सकता है।जूनियर समेत सभी अधिवक्ताओं  को  आर्थिक सहायता की जरूरत है। स्टेट बार को  अधिवक्ताओं की ओर से किए जा रहे सवालों के पत्र में लिखेंगे। 
 
प्रोफार्मा काफी जटिल
 अधिवक्ता संघ घरघोड़ा के सचिव एडवोकेट सुनील ठाकुर ने का स्टेट बार काउंसिल का प्रोफार्मा काफी जटिल है । लॉक डाउन और आर्थिक तंगी के दौरान सहायता राशि तत्काल मिलनी चाहिए। बात अधिवक्ताओं की है तो सम्मान से कोई समझौता नहीं होना चाहिए ।
 
अव्यवहारिक नियम
 
        रायगढ़ बार के सदस्य एडवोकेट कौशल राजपूत ने बताया कि स्टेट बार के नियम उपबंध देखने के बाद लगता है कि अधिवक्ताओं को वह राहत राशि देना ही नहीं चाहते। इस प्रकार के अव्यावहारिक नियम नहीं बनाए जाने चाहिए।
 
काफी दुर्भाग्यजनक
 
एडवोकेट आशीष शर्मा का कहना है कि मैं पूरी तरह से इस पत्र और इस पत्र की भावना का विरोध करता हूं। अधिवक्ताओं की ओर से दिए गए राशि का उपयोग यदि उनके वेलफेयर के लिए नहीं हो पा रहा है तो इससे दुर्भाग्यजनक स्थिति और कोई हो नहीं सकती।
 
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