राउत नाच में श्रृंगार और वीरता का समन्वय-डॉ कालीचरण

BHASKAR MISHRA
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actualबिलासपुर— राउत नाच में वीरता और श्रृंगार का अद्भुत समन्वय है। यह हमारी समृद्धि सांस्कृतिक परंपरा का द्योतक है। अनुशासन, पारंपरिक वेशभूषा, टीम भावना, युद्ध कौशल और पारंपरिक लोकवाद्य की ऐसी जुगलबंदी बहुत कम देखने को मिलती है। बिलासपुर में राउत नाच सदियों से चल रहा है। इसे महोत्सव का स्वरूप आज से सैंतीस साल पहले दिया गया। आज कुछ हद तक सफल होता दिखाई दे रहा है। राउत नाच महोत्सव साल 1984 को छोड़कर लगातार 37 वर्षों से आयोजित किया जा रहा है। महोत्सव ने विखरे समाज को ना केवल एक किया। बल्कि सभ्य समाज के मान को स्थापित भी स्थापित भी किया है। यह बातें राउत नाच महोत्सव के प्रणेता डॉ.कालीचरण यादव ने सीजी वाल से एक मुलाकात के दौरान कही।

             
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                                        राउत नाच महोत्सव के स्वप्न दृष्टा डॉ.कालीचरण यादव ने सीजी वाल को बताया कि आज से सैंतीस साल पहले और उससे भी सदियों पहले राउत नाच का आयोजन होता था। जब-जब ऐसा होता था। तब तब सभ्य समाज में उमंग के साथ भय का वातावरण तैयार हो जाता था। असंगठित राउत जाने अंजाने समाज और कानून की मान्यताओं को तोड़ते थे। देखने में यह भी आया कि राउत नाच के बाद दो चार पार्टी के लोग थाने में तो पांच छः पार्टी के लोग अस्पताल में इलाज करवाते नजर आते। जो सभ्य समाज के लिए बहुत पीड़ायक बात है। इस पीड़ा ने ही हमें राउत नाच महोत्सव की ओर प्रेरित किया।

images (1)डॉ.कालीचरण यादव ने बताया कि आज से सैंतीस साल पहले अंसगठित राउत नाच को संगठित करने का प्रयास किया गया। कई साल तक सिटी कोतवाली में कुछ पार्टियों के सहयोग से राउत नाच महोत्सव की बुनियाद रखी गयी। धीरे धीरे इसने व्यापक स्वरूप ले लिया। बिगड़ी आदतों को सुधारने के लिए राउत नाच महोत्सव के कुछ नियम बनाए गए। नियमों के पालने की जिम्मेदारी पांच जजों को दी गयी।कालीचरण ने बताया कि राउत नाच महोत्सव के दौरान पारंपिक वेशभूषा, क्षेत्रीयता का प्रतिनिधित्व, अनुशासन, पारंपरिक अस्त्र शस्त्र संचालन और लोकवाद्य के बेहतर प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। देखते ही देखते ना केवल राउत समाज संगठित हुआ अपितु अन्य समाज को भी अपनी बहुरंगी विशेषताओं से सराबोर कर दिया।

                                           डॉ.कालीचरण यादव ने बताया कि छत्तीसगढ़ में राउत नाच का समय अलग-अलग है। ऐसा क्यों..बताना मुश्किल है। जहां तक मेरी समझ में आया कि ऐसा इसलिए है क्योंकि राउत नाच में गड़वा बाजा का बहुत महत्व होता है। इसे बजाना आसान नहीं है। वादकों की कमी ना हो इसलिए रायपुर संभाग में राउत नाच गोवर्धन पूजा से शुरू होता है। बिलासपुर में देवउठनी एकादशी के साथ मनाया जाता है। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी है।

rn2कालीचरण यादव ने बताया कि सभ्य समाज की स्थापना और भाईचारा को बनाकर रखना राउत नाच और महोत्सव का मुख्य उद्देश्य है। हमारा समाज बहुरंगी संस्कृति का अनमोल उदाहरण है। विविधता ही हमारी विशेषता है। सभी धर्मों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि कमोबेश एक ही है। किसी एक में विकृति आती है तो पूरा समाज प्रभावित होता है। महोत्सव के जरिए भय को खत्म कर आनंद को स्थापित करने का प्रयास किया गया। इसे स्थापित करने में ना केवल राउत समाज बल्कि उससे कहीं ज्यादा अन्य समाज के लोगों का योददान है।

                                       सीजी वाल को कालीचरण यादव ने बताया कि राउत नाच महोत्सव के बाद राउत समाज में जागरूकता आई है। इसका सबसे बड़ा लाभ बिलासपुर नगर को मिला। कानून व्यवस्था खुद बखुद निंयत्रित हो गयी। लोगों में दहशत खत्म हुआ। गांव और आमजन को अज्ञात तनाव से छुटकारा मिला।

                                       सीजी वाल से डॉ.ने बताया कि राउत नाच में पारंपंरिक वेशभूषा का अपना अलग ही महत्व है। वर्तमान में इसे प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। राउत नाच सदियों से स्थापित मार्शल डांस का प्राकृतिक उदाहरण है। इसमें श्रंगार और वीरता का अद्भुत समन्वय है। शादह ही किसी अन्य परंपरा में इसका उदाहरण देखने को मिले। पहले युद्ध में लोग सिर की सुरक्षा के लिए पागा पहनते थे। आज भी राउत नाच के समय पागा पहना जाता है। विरोधियों के वार से बचने के लिए मजबूत बंहकर धारण किया जाता है। मोहरी,पेटी भी युद्ध के मैदान का श्रृंगार है। कमोवेश आज भी राउत नाचने वाले उन्ही पोशाकों को प्रतीक के रूप में धारण करते हैं।

                                    यादव ने बताया कि युद्द और लोक कला दो अलग-अलग विषय वस्तु हो सकते हैं लेकिन दोनों में चोली दामन का संबध है। राउत नाच मार्शल डांस है इसलिए इसमें वाद्य यंत्र का बहुत ही महत्व है। खासकर ग़ड़वा बाजा का। गड़वा बाजा की ध्वनि से राउत नाच में शिरकत करने वालों में ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी जोश और उमंग से भर देता है। राउत नाच का जन्म ही युद्ध के मैदान से हुआ है। शस्त्र धारण और संचालन का इसमें बहुत महत्व है। कालीचरण यादव ने बताया कि फरी का संचालन कोई मजाक नहीं होता है। लाठी हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। लाठी संचालन की कला राउत नाच के समय देखने को मिलता है।

                                      यादव ने बताया कि राउत नाच का सीधा संबध बाजार विहाने से भी है। मतलब बाजार जीतने से । आज भी स्थानीय स्तर पर यह देखने को मिल जाता है कि राउत लोग समूह में साप्ताहिक हाट बाजार का परिक्रमा के बाद अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। महोत्सव के शुरू होने से पहले शनिचरी बाजार में भी ऐसा ही हुआ करता था। कुछ शोहदे और मनचले किस्म के लोग अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए राउत नाच दल के सदस्य बनकर रंग में भंग कर दिया करते थे। जिससे राउत नाच समृद्धि संस्कृति बदनाम होने लगी। महोत्सव में इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ नियम बनाए गए। जज इन बातों पर पैनी नजर रखते हैं। आश्चर्य की बात है कि अब भीड़ ज्यादा होती है लेकिन व्यवस्था उससे कहीं बेहतर हो गयी है। इसमें खुद राउत नाच दल ही सहयोग करता है।

                                     कालीचरण यादव ने बताया कि राउत नाच महाभारत कालीन नृत्य कला विधा है। इस विधा को बिलासापुर राउत नाच महोत्सव की टीम आगे बढ़ा रही है। सराकर से हमें कोई सहयोग नहीं है। राउत नाच महोत्सव पिछले 24 साल से मड़ई पत्रिका का प्रकाशन करता है। इसमें राउत लोक नृत्य परंपरा की जानकारी होती है। पत्रिका के जरिए जो भी विज्ञापन मिलता है उससे मिली राशि को राउत नाच महोतस्व पर खर्च कर दिया जाता है।

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