मंत्री का लेवल

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FB_IMG_1441516484068(संजय दीक्षित) एक मंत्री द्वारा उद्योगपति से पांच लाख रुपए मांगने के पीछे की कहानी कुछ और निकली है। दरअसल, रायपुर के एक बीजेपी नेता और बड़े कारपोरेशन के चेयरमैन का सिलतरा की स्टील प्लांट में 51 लाख रुपए लगाए थे। फैक्ट्री मालिक हो गए दिवालिया। लिहाजा, स्टेट बैंक ने उसे नीलाम किया। भिलाई के एक उद्यमी ने उसे खरीदा। पैसा चूकि दो नम्बर का था इसलिए, नेताजी को कुछ मिला नहीं। नेताजी लगे उद्यमी पर प्रेशर बनाने। सीएसआईडीसी से प्लांट की बची जमीन सीज करवा ली। उद्यमी 25 लाख तक देने के लिए तैयार भी था। मगर नेताजी को चाहिए था पूरा। सो, नेताजी ने मंत्री के कंधे पर बंदूक रख दिया। मंत्री ठहरे बुरबक। खुद ही पहंुच गए। लेकिन, गलती उद्योगपति ने कर दी। ज्यादा एमाउंट का आरोप लगा दिया। मंत्रीजी का लेवल अभी उस लायक हुआ नहीं है। सो, पकड़ में आ गया। 50 हजार से एक लाख का आरोप होता तो बात हजम हो जाती।

मंत्री के द्वार पहुंचे नौकरशाह

पिछले कैबिनेट में पंचायत मिनिस्टर अजय चंद्राकर वर्सेज सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के इश्यू पर बवाल मचने के बाद जाहिर है, कुछ तो होना ही था। दूसरे रोज नौकरशाह ने चंद्राकर से मिलने का टाईम मांगा। शाम का समय मिला। अफसर बिना किसी हो-हल्ला के मंत्री के सिविल लाइन वाले बंगले पहुंचे। दोनों बंद कमरे में 40 मिनट रहे। अफसर ने सफाई दी। मंत्री ने भी अपने मन की बात अपने अंदाज में की। इसके बाद दोनों के गिले-शिकवे कितने दूर हूए, ये नहीें कहा जा सकता। मगर इसे शरणम् गच्छामि भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि,, अफसर खुद से थोड़े ही पहुंचे मंत्री के घर। कैबिनेट के बाद सीएम ने बंद कमरे में 20 मिनट तक चंद्राकर से बात की थी, उसका ये असर हुआ। याद होगा, कैबिनेट के बाद चंद्राकर मायूसी लेकर सीएम से मिलने उनके कमरे में घुसे और मुस्कराते हुए निकले थे। तब से सत्ता के गलियारों में चंद्राकर के मुस्कराहट का राज जानने के लिए लोग उत्सुक थे। सो, ट्रेलर तो देखने को मिल गया है। बाकी पिक्चर विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद सामने आ सकता है।

पब्लिसिटी स्टंट

सरगुजा संभाग के एक कलेक्टर ने जनप्रतिनिधि से मोबाइल पर हुई बातचीत को फेसबुक पर अपलोड कर सरकार को सकते में डाल दिया। जनप्रतिनिधि ने किसी के ट्रांसफर के सिलसिले में बात की थी। कलेक्टर ने नेताजी को न केवल गंदा सा जवाब दिया। बल्कि हाट टाक को रिकार्ड कर लिया। यह बात पुरानी हो गई। पिछले हफ्ते हरियाणा की आईपीएस संगीता कालिया नेशनल मीडिया की सुर्खियो में रही। अपने कलेक्टर को लगा यही राइट टाईम है। उन्हें उसे फेसबुक पर डाल दिया। हालांकि, उन्हें न तो सोशल मीडिया में ज्यादा तरजीह मिली और ना ही नेशनल मीडिया में। मगर अब मंत्री तक उनसे मोबाइल पर बातचीत करने में कतराने लगे हैं। हालांकि, कलेक्टर का ग्राउंड लेवल पर काम अच्छा है। मगर उनकी कई बचकानी हरकतों से सरकार पर बन आती है। बस्तर में जब वे कलेक्टर थे, तब सरकार पर कैसी आफत आई थी, सबको पता है। मगर वे नेशनल लेवल पर चर्चित हो गए थे। वही चाह उनकी बार-बार मचल जाती है।

पेरिस में चिंतन

हिम्मती मंत्री हो तो महेश गागड़ा जैसे। कैबिनेट ने पीसीसीएफ का दो पोस्ट सृजित किया था। उसकी डीपीसी भी हो गई। अब, पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पद के लिए डीपीसी बिना सीएम के हरी झंडी के होती नहीं। मगर वन मंत्री को नागवार गुजरा, उनकी राय नहीं ली गई। सो, आर्डर के लिए जब फाइल पहुंची तो उन्होंने उसे ओपिनियन के लिए विधि विभाग भेज दिया। महीना भर हो गया डीपीसी की फाइल धूम रही है। गागड़ा शुक्रवार को चले गए हैं, पेरिस। क्लाइमेट पर चिंतन के लिए। बीके सिनहा को पीसीसीएफ बनने से रोकने के लिए शायद वहीं पर अब चिंतन हो। आखिर, सिनहा की राह में रोड़े बोने वाले अफसर भी साथ में ही हैं।

तुम जिओ हजारों साल, मगर—-

नक्सल प्रभावित जिले के एक कलेक्टर ने धूमधाम से अपने बच्चे का बर्थडे मनाया। मगर यह खबर इसलिए बन गई कि भिलाई और नागपुर से टेंट और केटरिंग बुलाया गया। इसका भुगतान मनरेगा से हुआ। रांची, भागलपुर से रिश्तेदारों को लाने के लिए किराये की लग्जरी गाडि़यां गई, उसका सवा दो लाख रुपए का पेमेंट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने किया। अमूमन सारे मलाईदारा विभागों को कोई-न-कोई जिम्मा दिया गया था। पूरा खर्चा लगभग 15 लाख बैठा। कलेक्टर के पीए ने पहले ही सबको बुलाकर इशारा कर दिया था। साब के बच्चे का मामला है, मातहतों को कम-से-कम 10 हजार का लिफाफा और ठेकेदारों एवं सप्लायरों का 50 हजार देना ही चाहिए। सो, चढ़ावे में खासी रकम आ गईं। साल भर के भीतर साब के घर दूसरा बर्थडे था। लोगों की बेबसी समझी जा सकती है। इसलिए, पार्टी से निकलने के बाद लोगों ने अपना मन हल्का किया…..तुम जिओ हजारों साल, मगर अब इस जिले में नहीं…।

बाबा ने किए कई शिकार

मुख्यमंत्री के दावेदारों को लेकर बयान देने के बाद कांग्रेस में टीएस भले ही घिर गए हों मगर उन्होंने एक तीर से कई शिकार कर डाले। पहला, अमित जोगी के घर चाय पीने के बाद उन पर जोगी से निकटता के आरोप लगे थे। वह एक झटके में खतम हो गया। दूसरा, जो राजनीतिक तौर पर अहम है, वे यह मैसेज देने में कामयाब रहे हैं कि सिर्फ भूपेश बघेल ही नहीं, वे भी, और भी…. सीएम के दावेदार हैं। याने सूबे में नेता और भी हैं। सिर्फ भूपेश नहीं। वरना, भूपेश का वर्चस्व पार्टी पर जिस तरह से बढ़ा था, उससे एक से 10 तक वही वे नजर आ रहे थे। तीसरा, पिछले चार-पांच दिन से टीएस मीडिया में छाये रहे। इतनी सुर्खिया तो उन्हें राजनीतिक जीवन में कभी नहीं मिली।

मंतूरामों से डरी कांग्रेस

बिरगांव में हार के बाद कांग्रेस मंतूरामों से बुरी कदर सहम गई है। बिरगांव में आखिर 29 पार्षद जीतने के बाद भी मेयर बीजेपी का बन गया। नगरीय निकाय के आगामी चुनावों के लिए पीसीसी की मीटिंग में यह बात गंभीरता से उठी। सभी ने एक स्वर से माना कि कांग्रेस के मंतूरामों को अगर ठीक नहीं किया गया तो बीजेपी एक चुनाव जीतने नहीं देगी। इसी पर मंथन करने के लिए अबकी नौ दिसंबर को पीसीसी की दिल्ली में बैठक होने जा रही है। आला नेताओं की मौजूदगी में हार की समीक्षा होगी।

सुनिल एसईसीएल के न्यू डायरेक्टर

छत्तीसगढ़ के एक्स चीफ सिकरेट्री और स्टेट प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन सुनिल कुमार को भारत सरकार ने एसईसीएल का इंडिविजिअल डायरेक्टर अपाइंट किया है। भारत सरकार एसईसीएल का प्रोडक्शन बढ़ाकर 2019 में डबल करना चाहती है। याने 250 मीलियन टन। अभी 138 मीलियन टन है। सो, डिफरेंट फील्ड से डायरेक्टर अपाइंट किए जा रहे हैं।

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