प्राइवेट स्कूलों पर कोरोना की मार… बच्चों की पढ़ाई बंद… शिक्षकों को वेतन नहीं … सरकार की तरफ ताक रहा मैनेजमेंट

Chief Editor
5 Min Read

बिलासपुर(मनीष जायसवाल)निजी स्कूल और इनसे जुड़े पालकों का विवाद खत्म नही हुआ था कि अब  तीसरा  महत्वपूर्ण पक्ष निजी स्कूलों के शिक्षक व अन्य कर्मचारी  लॉक डाऊन के समय से स्कूल प्रबंधन की ओर से तनख्वाह नही मिलने या आधी तंखा मिलने की वजह से शासन से हस्तक्षेप करने के लिए फरियाद कर रहे है। वही निजी स्कूल प्रबंधन भी शासन की ओर  अपना पक्ष रख रहा है। निजी स्कूल प्रबंधन चाहते है कि सरकार अब फीस को लेकर स्पस्ट दिशा निर्देश जारी करे अब तक मीडिया में जारी आधी अधूरी बयान बाजी भृम पैदा कर रही है। वे चाहते है कि स्कुलो को फीस लेने की अनुमति दी जाए ताकि वे अपने स्कूल के आर्थिक पक्ष को मजूबत कर अपने शिक्षको व अन्य कर्मचारियों को नियमित वेतन भुगतान कर सके जिससे  उनके सालो पुराने कर्मचारीयो की जो टीम बनी है वह बिखरे नही जिससे वर्तमान में जारी उनकी आन लाइन शिक्षण व्यवस्था बाधित न हो।CGWALL NEWS के व्हाट्सएप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

Join Our WhatsApp Group Join Now

पालक औऱ सत्ता से जुड़े कुछ लोग निजी स्कूलो की छह महीने की फीस माफ करने के पक्ष धर है। वही निजी स्कूल इस व्यवस्था के विचार से सहमत नही है।उनका कहना है कि यदि ऐसा किया गया तो भविष्य में इसके शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कुलो की भागीदारी कम होगी। बजट स्कूल बन्द होंगे। बचे हुए निजी स्कुलो में एडमिशन के लिए महानगरों के जैसे दिक्कत शुरू हो जायेगी। क्योंकि मौजूदा दौर में प्रदेश में निजी और अनुदान प्राप्त स्कुलो की सँख्या 14557 के आसपास है। सरकारी आंकड़े 2018-2019 की माने तो प्रदेश में लगभग 56,211 स्कूल है।वर्तमान में प्रदेश में करीब 5.6 प्रतिशत निजी स्कुलो की भागीदारी है। जिसमे अनुदान प्राप्त स्कुलो की संख्या करीब 20.3 प्रतिशत है वही सरकारी विद्यालय की संख्या करीब 73.9 प्रतिशत है। जिसमे 

राज्य शासन ने वर्ष 2018- 2019 में निःशुल्क व अनिवार्य  बाल शिक्षा के अधिकार के तहत 2,08,504  बच्चों को निजी विद्यालयो में प्रवेश करवाया है।जानकारों का कहना है कि  केंद्र सरकार व राज्य सरकारों ने  इस क्षेत्र के आर्थिक पक्ष को नज़र अंदाज किये जाने की वजह से यह स्थिति निर्मित हुई है।  निजी स्कूलों पर राज्य के सरकारी नीति नियम का प्रभाव रहता इन पर राज्यो का अप्रत्यक्ष नियंत्रण होता है। इसलिए निजी स्कूल मालिक – निजी स्कूल के पालकों- निजी स्कूल के शिक्षक व कर्मचारियों के बीच आर्थिक विवाद को दूर करने के लिए राज्यो को  पहल करना चाहिए। और बीच का रास्ता निकालना चहिए। 

विवाद से जुड़े तीनो पक्षों के जानकारों का कहना है कि बीच का रास्ता सभी निकलना चाहते है पर अगवाई करने के लिए शासन को ही पहल करनी होगी क्योकि कोरोना काल मे निजी और सरकारी स्कूलो की शिक्षा व्यवस्था चरमरा हुई है। इस काल खंड में छात्रो की पढ़ाई लिखाई सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई है वही सबसे अधिक निजी स्कूलों के शिक्षक, कर्मचारी, स्कूल मालिक और बजट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अधिकांश पालक आर्थिक समस्या का सामना कर रहे है। जिसका दोष कोरोना काल और मौजूदा सरकारी सिस्टम को दे रहे है।  

छत्तीसगढ़ बोर्ड से सम्बंधित हिंदी व अंग्रेजी माध्यम के बजट स्कूल मतलब हर महीने 100 से 500 रुपये महीने तक छात्र प्रति माह कम शुल्क में शिक्षा प्रदान करने वाले निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल जो शहर के सबसे हर कोने से लेकर गावँ तक है। इनकी हालत कोरोना के इस काल खंड में सबसे खराब है। इनकी सबसे बड़ी वर्तमान में समस्या शिक्षक व अन्य कर्मचारियों को सैलरी देने की है। उसके अलावा भवन किराया , भवन की EMI वाहनों की EMI आदि अन्य खर्च देने भी है। छात्रो की फीस नहीं मिलने की स्थिति में  स्कूल प्रबधन सब से हाथ खड़े कर चुका है। या कारागार व्यवस्था आने तक जैसे तैसे काम चला रहा है। और सरकारी निर्णय की परीक्षा कर रहा है।

close