कब खुलेंगे स्कूल..?CGWALL का सर्वे:पालकों में भी संशय..ऑनलाइन क्लासेस ही बेहतर उपाय,मोहल्ला-पारा में स्कूल लगाना खतरनाक

Chief Editor
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(मनीष जायसवाल)वेब पत्रकारिता के आधुनिक दौर में  cgwall.com के द्वारा 2015 से  तथ्यपरक खबरें आप सभी को दी जा रही है। पाठकों की रूचि एवं सुझाव के आधार पर तथ्यों पर आधारित विश्लेषणात्मक जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास टीम के द्वारा किया जाता है।बंद पड़े स्कूलों के संबंध में हालिया सर्वे किया गया जिसमे छत्तीसगढ़ के  28 जिलों के शहरी और ग्रामीण अंचल से विभिन्न आयु वर्ग के लोगो ने प्रदेश के चारो कोनो से सीजीवाल के पाठकों ने सर्वे में हिस्सा लिया है।जो वर्षो से सीजीवाल परिवार का अभिन्न अंग बने हुए है। हमने छत्तीसगढ़ के अपने पाठकों से एक सर्वे के माध्यम से  कोरोना काल में ठप्प पड़ी शिक्षा व्यवस्था को लेकर के लोगों से सवाल किए। गूगल फॉर्म और फोन आधारित बातचीत पर जो नतीजे सामने आए उन्हें हम आपके सामने लेकर आये है ..! CGWALL NEWS के व्हाट्सएप ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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बंद पड़े स्कूलों  को कब तक खोले जाने के प्रश्न पर निजी औऱ सरकारी स्कूल दोनो के अधिकांश पालकों का मानना है कि कहा नही जा सकता कब स्कूल खुलना चाहिए।कोरोना काल  के कारण मार्च माह से बंद पड़े स्कूलों फिर से खोलने के संबंध में लोगों से राय यह तथ्य सामने आया कि  55 % पालक यह बता पाने में असमर्थ है कि स्कूलों को कब खोला जाय।  मतलब एक बड़ा वर्ग कोरोना काल के इस दौर को देखते हुए अब तक के हालातों पर यह निर्णय नही ले पा रहा है कि स्कूल कब खुलना चाहिए।पालको में 16% प्रतिशत लोग यह मान रहे है कि सितंबर में स्कूल खोल जाना चाहिए। वही 14% प्रतिशत लोगो का मानना है कि स्कूल अक्टूबर में खोले जाने चाहिए। वही 15 प्रतिशत अगस्त में स्कूल खोलने के पक्षधर है। अपने विचारों में अधिकांश पालकों का मानना है कि दवा या वैक्सीन आने के बाद ही स्कूल खोले जाए….! स्कूलों के खुलने पर प्रबंधन से पालकों की अपेक्षा के बारे में हमने राय जाननी चाही तो 90 % पालक बच्चो की सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण मानते है।

अगर स्कूलों को खोल भी दिया जाय तो  पूरी तरह सुरक्षित होने पर ही पालक बच्चो  को स्कूल भेजने की मंशा रखते है।सर्वे के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न स्कूल खुलने पर शाला प्रबंधन से  पालकों की अपेक्षाएं बच्चों की सुरक्षा को लेकर है। रोजाना प्रोफेशनल तरीके से स्कूलो को सेनेटाइज करना होगा। सेनेटाइज व कोरोना काल के लिए शासन को  अतिरिक्त अलग बजट उपलब्ध कराना होगा। दो गज की दूरी का पालन करते हुए शाला में बैठने की व्यवस्था बनानी होगी।अल्टरनेट कक्षा शुरू करनी होगी।ODD-EVEN method बच्चो  को बुलाये जाने की व्यवस्था होनी चहिए। सिलेबस में कटौती हो। बस्ते का बोझ कम हो।ग्रुप एक्टिविटी से बचे।सभा सम्मेललन कम से कम हो। गृह कार्य देना होगा, असाइनमेंट दिया जाय।डिजिटल माध्यमो को सावधानी से उपयोग में लाया जाए।स्कूलों हेल्थ टेस्ट सुविधा और काल सेंटर बनाने होंगे, पढ़ाई को ऑन लाईन के अलावा संचार से सभी माध्यमो को अपना होगा जैसे रेडियो, टीवी, केबल, DTH इन सब पर यदि निवेश भी करना पड़े तो करना होगा। सिर्फ नावचार के भरोसे से  शिक्षा विभाग कोरोना काल मे नही लड़ सकता …आदि ढेरो सुझाव आये।

सीजीवाल के इस सर्वे में शामिल पालको के बच्चे 8.4 % नर्सरी में पढ़ रहे  है। वही प्राथमिक शालाओं में पढ़ा रहे बच्चों की संख्या का प्रतिशत 43.2℅ है, जबकि 22.8℅ उच्च प्राथमिक की सँख्या है।हाई व हायर सेकंडरी छात्रो की सँख्या का प्रतिशत 25.6℅ है।सीजीवाल न्यूज के इस सर्वे के अनुसार 53.6 प्रतिशत बच्चे निजी शालाओ में पढ़ रहे है जबकि 46.4 % प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे है। 

सर्वे में यह विचार सामने आया कि निजी शालाओ द्वारा फीस के लिए लगातार बनाये जा रहे दबाव से पालको में खासा असंतोष है,उनका मानना है कि शालाओ का संचालन नही हुआ तो फीस माफ की जानी चाहिये, एक तरफ तो सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में बच्चो को मुफ्त किताबे,राशन ,  गणवेश साइकिल,छात्रवृत्ति और अनेकों सुविधाएं निःशुल्क है दूसरी ओर निजी स्कूलों की मनमानी चल रही हैं।शिक्षा गुणवत्ता  के मायनो में अधिकांश निजी शालाये लाभ को प्राथमिकता ज्यादा देते है।सरकार को इस दिशा में गंभीरता से फैसला करना चाहिए।निजी स्कूल के पालकों का मानना है कि इस आर्थिक तंगी के  दौर स्कूल प्रबंधन को दिल बड़ा करना होगा। स्कूल फीस और ट्यूशन फीस के नाम पर सरल होना होगा। इस दौर में निजी स्कूलों को समाज सेवा का उत्कृष्ठ उदाहरण पेश करना होगा।  

ऑनलाइन क्लासेज के संबंध में 55% लोग मानते हैं कि ऐसी क्लासेस 30% तक ही कारगर है जबकि 16% लोग यह मानते हैं कि ऑनलाइन क्लासेस 31 से 60% तक कारगर मानते है। 7 से 9% लोग इसे 61 से 90% तक कारगर बताते जबकि 20% से ज्यादा लोगों ने इस बारे में अपनी कोई राय व्यक्त नही की। माना जा सकता कोरोना काल में आनलाईन क्लासेस प्रभावी उपाय हो सकता है किन्तु बहुसंख्यक ग्रामीण अंचलों में मोबाईल नेटवर्क के अभाव में पूर्ण कारगर नही माना जा सकता है।

हमने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पढ़ई तुंहर द्वार अभियान के बारे में राय जानने की कोशिश की तो वर्तमान परिस्थितियों में  42% पालकों को यह आईडिया अच्छा लगा। 18% लोग इसे ठीक ठाक बताते हैं। 24% लोगों ने इसे ग्रामीण क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त माना।9 % लोग इसे कामचलाऊ मानते है ,5-7 % लोगो ने अनभिज्ञता जाहिर की।उच्च शिक्षा से भी इसे जोड़ा गया,विभागीय स्तर पर ही इसे सही तरीके से लागू करने कोशिश नही की गई है।कालेजो में योजना के बारे लोगो को मालूम ही नही, वे केवल स्कूलों से सम्बंधित मानते है।

स्कूलों की जगह मोहल्ला और पारा, बाग बगीचों में मोबाइल स्कूल लगाए जाने के संबंध में  23.3 % पालक ऐसे सर्वथा अनुचित बताते हैं और 41.4% लोग उसे महामारी को न्योता देने वाला खतरा मानते है।10.3℅ लोग इसे सर्वोत्तम उपाय बताते है। 25% लोग इसे नेटवर्क विहीन इलाको में बेहतर उपाय बता रहे है।

 पालकों का कहना है आईसीएमईआर की गाइडलाइन के अनुसार वृद्ध जन और बच्चो विशेष रुप से कोरोना से बचाकर के रखना है। 24-25% लोग इसे नेटवर्क विभिन्न क्षेत्रों के लिए बेहतर उपाय बताते हैं और 10% लोग इसे सर्वोत्तम उपाय भी बताते हैं लेकिन बहुसंख्यक 65% वोट से सर्वथा उचित और महामारी के लिए खतरा बताते हैं। 

अनेक गांवों में पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा ऐसे विकल्पों के माध्यम से पढ़ाई कराए जाने हेतु अनुमति नहीं दी जा रही है। मोहल्ला क्लास में लाउडस्पीकर के माध्यम से पढ़ाई को महज खानापूर्ति कहा जा रहा है। सामुदायिक संक्रमण के संभावना की दृष्टि से सबसे खतरनाक उपाय माना जा रहा है।सीजीवाल न्यूज को मिले सर्वे से मिले लोगो का रुझान कहता है कि बिल्कुल भी हड़बड़ी में शैक्षणिक संस्थाओं को न खोला जाए।हमने कुछ शिक्षाविद समाजसेवियों से बात की तो उन्होंने ने बताया कि 

एक समुदाय के कारण लापरवाही होने से देश में कोरोनावायरस फैला और श्रमिकों की घर वापसी जैसे भावुक फैसले से भी कोरोना महामारी का सामना अनेक सुरक्षित राज्यो को करना पड़ा। जिसके चलते राज्य सरकारों अनलॉक डाऊन के दौरान भी प्रभावित क्षेत्रो में लॉक डाऊन करना पड़ा। 

समाजसेवियों व शिक्षा विदों का मानना है कि स्कूल खुलने के दौरान बच्चों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना टेढ़ी खीर है। सरकारी तंत्र से संबंधित संस्थान महामारी से सतर्कता और उपायों को रखपाने की क्षमता बिल्कुल नहीं है। भगवान भरोसे सरकारी शिक्षा तंत्र चल रहा है, निजी संस्थान लाभ की दृष्टि से संचालन करते हैं। बच्चों की सुरक्षा उनके लिए गौण मुद्दा होगी और कहीं ऐसा ना हो कि थोड़ी सी चूक के कारण देश में नया बखेड़ा हो जाये।बच्चो को महामारी से पूर्ण सुरक्षित रखना कोरोनाकाल की सबसे बड़ी शिक्षा है।तब्लीगी जमात मामला हो या कोटा और बाहर रह रहे विद्यार्थियों को आनन फानन में बुलाना या फिर मजदूरो की आवाजाही से हुई अफरातफरी और संक्रमण के फैलाव एव  चूक के घातक परिणाम देश के सामने है।इसलिए स्कूल और कालेजो को पुनः खोलने के पहले लोकलुभावन  निर्णय की जगह लोकस्वास्थ को देखते हुए लोक सुरक्षा की दृष्टि से निर्णय लिया जाना ज्यादा जरूरी है।

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