अखंड सौभाग्यवति की कामना से महिलाओं ने की हरितालिका तीज व्रत

Chief Editor
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रामानुजगंज(पृथ्वीलाल केशरी)।हरतालिका तीज व्रत हर साल यह त्योहार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागन महिलाओं के लिए हैं। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। इसलिए विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं जिसके के कारण यह व्रत बहुत कठिन होता हैं।

             
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विधि पूर्वक महिलाओं ने की हरतालिका तीज की पूजा–इस वर्ष दिनभर मुहूर्त होने से महिलाओं ने नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बादअपने अपने घरों पर लकडी के पिड़ा पर भगवान गणेश सहित बालू रेत से भगवान शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर चावल से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर एक कलश में जल भरने के बाद उसमें सुपारी,अक्षत,सिक्के,आम के पत्ते नारियल डालकर कलश स्थापना की गई,स्थापित भगवान को तिलक उपरांत धूप दीप लगाया गया। भगवान शिव को उनके प्रिय बेलपत्र धतूरा भांग शमी के पत्ते आदि अर्पित किये गए।

गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते हुए भगवान शिव जी को सफेद चावल एवं माता पार्वती को पीला चावल अर्पण करते हुए उनका सिंगार किया गया। विधिवत् पूजा पश्चात आज का प्रिय भोग गुजिया मिष्ठान के साथ फल एवं मेवा का भोग लगाया गया।

हरतालिका तीज की पौराणिक कथा का महत्व–हरतालिका का शाब्दिक अर्थ की बात करें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका,हरत का अर्थ होता है अपहरण और आलिका अर्थात् सहेली, इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थी। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें। अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने बालू से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

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