बज़रंग केडिया ने कहा – अब नहीं लगाया जाना चाहिए लॉकडाउन…. बाहर से लौटे मजदूरों के लिए काम का इंतज़ाम जरूरी

Chief Editor
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“ इस कोरोना काल में सरकार का यह फैसला काफी अच्छा है कि अब लॉकडाउन नहीं लगाया जाएगा । लॉक डाउन की वजह से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा ।  खासकर रोज कमाने- खाने वाले लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है । अनलॉक  के दौर में धीरे – धीरे सभी के लिए काम की संभावनाएं बढ़ेंगी और स्थिति सामान्य करने में मदद मिलेगी  । लेकिन प्रदेश से बाहर जाकर काम करने वाले लोगों के सामने वापस आने के बाद रोजगार का बड़ा संकट है । यह सरकार की व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती है कि इन लोगों को काम मुहैया कराया जाए । औद्योगिक क्षेत्र की तरह कृषि क्षेत्र विकसित कर छोटे किसानों और मजदूरों को काम उपलब्ध कराया जा सकता है ।  सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि सीमांत कृषक को सीमांत न रहने दिया जाए तो वह कमाल का काम कर सकता है ”……  ।

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ये बातें वरिष्ठ पत्रकार बजरंग केडिया ने एक बातचीत के दौरान कहीं  । उनसे पूछा गया था कि कोरोना काल शुरू होने के बाद पिछले करीब चार-पांच महीनों में वे किस तरह का बदलाव देख रहे हैं .?  बजरंग केडिया ने जवाब में कहा कि जब पहले पहल कोरोना की चर्चा शुरू हुई और  पहले 1 दिन जनता कर्फ्यू और उसके बाद लॉकडाउन लगाया गया तो बड़ी तकलीफ हुई । वे कहते हैं कि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर इससे कोई तकलीफ नहीं थी ।  लेकिन वे उन लोगों के बारे में सोचते हैं जो रोज कमाते – खाते हैं ।  रेलगाड़ी देश की जीवन रेखा है । अचानक रेल  बंद होने से लोगों को बड़ी दिक्कतें हुई ।  हमारे यहां संगठित और कारपोरेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है ।  असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं । ऐसे लोगों का जनजीवन शून्य  हो गया।  136 करोड़ की आबादी वाले देश में यह फैसला सही नहीं था । जो विकसित देश हैं और जहां की आबादी कम है ,ऐसे देशों में इस तरह की व्यवस्था भले ही लागू हो सकती है और नियमों का पालन हो सकता है  । लेकिन भारत जैसे देश में जहां आबादी अधिक है और लोगों की आमदनी में एकरूपता नहीं है । कोई 50 रुपए  रोज कमाता है तो किसी की आमदनी पाँच लाख रुपए  रोजाना है । ऐसे में एकाएक लॉक डाउन करने से लोगों के सामने बड़ा गहरा संकट खड़ा हो गया।

 बजरंग केड़िया बताते हैं कि वह 1975 से मजदूरों के पलायन पर लिखे रहे हैं और उनकी तक़लीफ़ को काफ़ी नज़दीक से देखा भी है।  । इस बार भी लॉक डाउन के बाद जिस तरह लोग दिल्ली, हरियाणा ,बंगाल ,महाराष्ट्र से पैदल चलकर अपने घर लौटे उसे देखकर यह दर्द फिर उभर आया ।  वह कहते हैं कि हम कितने भी बड़े इकोनॉमिस्ट हो जाएं । लेकिन मजदूर और छोटा किसान जो अपने बारे में निर्णय लेता है , वह उसके माफ़िक होता है । भले ही उसके पास डिग्री ना हो।  लेकिन वह अपने अनुरूप फैसला करता है ।  हमारे यहां बांट कर खाने का सिस्टम है । इसलिए रोजमर्रा की बहुत सारी समस्याओं से मुकाबला कर लेते हैं । लेकिन मजदूरों छोटे किसानों की व्यथा को भी देखना चाहिए ।    उस समय खबर आई की बहुत से लोग पटरी पर सोते हुए मर गए । लेकिन उनके लिए कुछ नहीं किया जा सका ।  वैसे भी लोग कोरोना  से संक्रमित हो रहे हैं  । उन्हे भी संक्रमण से नहीं रोका जा सका ।  वैसे अब लोग खुद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं । हर व्यक्ति अपने स्तर पर सावधानी बरत रहा है ।

बजरंग केड़िया मानते हैं कि अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए । मजदूरों को अब भी काम की जरूरत है । आज भी कोई यदि बृहस्पति बाजार में सब्जी लेने जाता है तो कार रुकते  ही कुछ मजदूर इस उम्मीद में दौड़ पड़ते हैं कि शायद कार वाले को मजदूर की जरूरत है ।  उन लोगों की तकलीफ को देखते हुए ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए । जिससे उन्हे काम मिल सके । सरकारी सिस्टम पर कितना भरोसा किया जा सकता है ।  जहां आंगनबाड़ी ,मनरेगा जैसे कामों में चोरी की शिकायतें मिलती रहती हैं । भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहती है । सरकार को अपने मशीनरी को टाइट करना चाहिए । लॉकडाउन इसका उपाय नहीं हो सकता ।  इसका मुख्य कारण आर्थिक ही है  । उन्होंने सवाल किया कि क्या हर काम के लिए आम आदमी ही जिम्मेदार है।  सरकार नाम की संस्था का फिर क्या मतलब ….. ?  उन्होंने कहा कि उन्हें अब तक दलगत राजनीति से कोई लेना-देना नहीं रहा है।  लेकिन ब्यूरोक्रेसी को जिम्मेदार जरूर बनाया जाना चाहिए । वे आज  भी इस बात पर कायम है कि छत्तीसगढ़ के स्थानीय मजदूरों के हुनर का सम्मान होना चाहिए।  उन्हें इस काम में महारत हासिल है ,उसके लिए उन्हें उपयुक्त स्थान पर काम मिलना चाहिए ।

छत्तीसगढ़ में ज्यादातर जगह एक फसल ही होती है ।  83 परसेंट सीमांत किसान है । जिनके पास 3 एकड़ से कम जमीन होती है । वही लोग बाहर काम की तलाश में जाते हैं । जिनके पास अधिक खेती है । उनके बच्चे कुछ पढ़ लिख गए हैं और दूसरे काम में लग गए हैं । ऐसे लोग ज्यादातर शहर आकर रह रहे हैं । उनकी अपनी दिक्कतें हो सकती हैं । लेकिन मजदूर और छोटे किसानों की अपनी दिक्कतें अधिक हैं । इन लोगों को काम मिले इस बारे में सोचना चाहिए । यह सोच कर बड़ी तकलीफ होती है कि जो व्यक्ति गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, मुंबई के किसी कारखाने में नियमित रूप से पैसा कमा रहा था ।  वह अपने गांव वापस लौट कर कैसी जिंदगी जी रहा होगा । जिसके बच्चे पढ़ रहे हैं या उसकी अपनी दूसरी जरूरतें हैं।  वह कैसी पूरी हो रही होंगी  । यह कल्पना करके ही मन सिहर उठता है ।

बजरंग केडिया मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में नदी ,नह,र सड़क, रेल लाइन के किनारे आज भी काफी भाटा जमीन है ।  जिस तरह से सरकार औद्योगिक क्षेत्र विकसित करती है । उसी तरह से इन खाली जमीनों को कृषि क्षेत्र के रूप में विकसित कर छोटे -सीमांत किसानों को दिया जाना चाहिए  । यह वही किसान है जो बड़े किसानों की जमीन किराए पर लेकर किसी तरह काम कर रहे हैं । यदि उन्हें निश्चित किराए पर पंचायत या सरकार के माध्यम से जमीन खेती के लिए मिल जाए तो वे कमाल की खेती कर सकते हैं ।  आखिर इन जमीनों पर बेजा कब्जा हो रहा है ।लेकिन मनरेगा या दूसरे मद से जमीन की तार फेंसिंग की जाए  । वहां बिजली ट्रांसफार्मर लगा दिया जाए तो बहुत बेहतर ढंग से मेहनतकश किसान वहां की खेती कर सकता है ।  सीमांत कृषक को सीमांत मत रहने दो तो वह कमाल करके दिखा सकता है । बजरंग केडिया यह भी मानते हैं कि मौजूदा आर्थिक हालात में कृषि ही ऐसा क्षेत्र है जो आर्थिकी को संभाल सकता है  । उसे बेहतर बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग किया जाना चाहिए।।

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