कोरोना काल में बंद पड़े स्कूलों को फिर शुरू करने के संकेत…खतरनाक साबित हो सकता है फैसला

Chief Editor
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(मनीष जायसवाल)देश में कोरोना संक्रमित लोगो की कुल संख्या लगभग 50 लाख पहुंचने को है,जिसमे 10 लाख ऐक्टिव केस है। छत्तीसगढ़ में भी कोरोना वायरस पीड़ितों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अनलॉक की प्रक्रिया के क्रम में पिछले माह के प्रारंभ में  केंद्र सरकार ने आंशिक रूप से मार्च माह से बंद पड़े स्कूलों को खोलने के लिए संकेत तो दिए लेकिन देश और प्रदेश में बढ़ते संक्रमण और महामारी के खतरे के बीच यह निर्णय खतरे का घर साबित न हो जाये।  स्कूली बच्चे  फिलहाल इस महामारी से दूर है….स्कूल व स्कूली बच्चों के बीच कोरोना महामारी के प्रकोप की क्या स्थिति होगी यह तो आने वाले वक्त में सरकारो द्वारा लिए गए निर्णय तय करेंगे डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों और 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को आने वाले 2 वर्षों तक कोरोना की बीमारी से विशेष रूप से बचाव की जरूरत बताई  है।केंद्र की गाडइडलाइंस के बाद अब राज्य सरकारें भी इन संस्थानों खोलने के लिए नियम-कायदे बनाने में जुट गई हैं.CGWALL न्यूज़ के व्हाट्सएप ग्रुप् से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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 केंद्रीय दिशानिर्देश के तहत 9 वीं से 12 वीं क्लास तक के बच्चे अपने माता-पिता से लिखित परमिशन लेकर स्कूल जा सकते हैं. यहां 50 फीसदी टीचिंग और 50 फीसदी नॉन टीचिंग स्टाफ को स्कूल में बुलाया जा सकता है।बताया जा रहा है किसी भी छात्र पर स्कूल आने के लिए दबाव नहीं होगा, इसके अलावा बच्चे अपने माता-पिता की लिखित अनुमति लेकर ही स्कूल आएंगे। फिलहाल छात्रों के पास ऑनलाइन पढ़ाई का विकल्प  मौजूद रहेगा. स्कूल केवल उन छात्रों के लिए समर्थन के रूप में खुलेंगे, जिनके पास ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच नहीं है या कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

स्कूल खुलने को लेकर हरियाणा ,दिल्ली ,तमिलनाडु,,  यूपी में कोई चर्चा नहीं सुनाई दी है पर छत्तीसगढ़ में अंदर अंदर ही विचार मंथन चल रहा है। केंद्र की गाइडलाइन की माने तो  स्कूलो की स्वच्छता और सेनेटाइजेशन पर विशेष तवज्जों दी जानी है। संस्थानों को अपने परिसरों को एक प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट समाधान वाले पदार्थों से साफ करना होगा. फिर से खुलने वाले संस्थानों को व्यक्तिगत सुरक्षा का बैकअप स्टॉक रखने को कहा गया है जिसमें फेस कवर, मास्क, हैंड सैनिटाइजर आदि शामिल हैं।

पालकों का कहना है कि यदि स्कूल खुले तोक्या है  सरकारी व निजी स्कूली अमला  आक्सी मीटर,  थर्मल गन लेकर क्या स्कूल के दरवाजे में खड़ा रहेगा , सोशल डिस्टेंसिंग का शत प्रतिशत क्या 50 % पालन लागू करा पायेगा। नियमो में अधिकांश  सरकारी व निजी स्कूल में बच्चो को रोज स्वास्थ परीक्षण का कोई प्रावधान नही है। सरकारी व निजी स्कूल में मास्क बच्चो को रोज मास्क नही दिया जा सकता न ही हर वक़्त बच्चे इसका पालन करा सकते है। सरकारी व निजी स्कूल में बच्चो को रोज सेनेडाइजर की व्यवस्था हो सके यह सरकारी तंत्र या निजी प्रबंधन के लिए केवल दिखावे की बात होगी।

अक्सर सवाल उठते रहे है कि दम तोड़ती सरकारी शिक्षा में हाजरी केवल मध्यान्ह भोजन के लिए होती है जिसकी गुणवत्ता पहले से ही मानकों पर खरी नही उतर सकी तो कोरोना काल में हाइजीनिक खाना देना टेढ़ी खीर है।सूखा राशन वितरण का कार्य में धांधलेबाजी  कुछ जगहों पर प्रकाश में आई यह गोलमाल किसी से छुपा नही है। लक्षितो तक सामग्री पहुचे बिना ही राशि निकालकर महामारी के नाम पर बंदरबाट की जा रही है।मध्यान्ह भोजन  में सालाना प्रशिक्षण बंद पड़े स्कूलों में हो चुके है। इस कार्य मे व्यय हुए  लाखो रुपये  कागज टेबल के खेल का संकेत देते है..! जैसे किचन सामग्री बंद पड़े स्कूलों में कागजो में दिखाई देती है। ऐसे तंत्र में भला आप क्या उम्मीद करेंगे कि बच्चे स्कुलो में सुरक्षित है और शिक्षा ग्रहण कर रहे है,जहा स्थानीय विभाग से जुड़ा अधिकारी व उसका खास कर्मचारी  मिलकर थोड़े से रुपयों में साल भरकर गायब रहने वालों की तन्खाह निकाल देते हो।

ऐसे  में भला कौन मास्टर अपनी जान जोखिम में डालकर सरकारी शाला में पढ़ाने जाएगा…?  गुरुजी नही आये तो पढ़ाई कैसी…? निजी  शालाओ में ऑन लाइन वसूली जारी है।पालक और प्रबंधन सड़को से लेकर न्यायालयों में मुकदमेबाजी कर रहे है फिर शिक्षा कौन देगा?

ई क्लासेस महज नुमाइश तो नही …..? वर्चुअल स्कूल, ई क्लासेस इनदिनों नया फैशन बन गया है।छत्तीसगढ़ में देखने मे आया  है सरकारी पाठशालाओ में महीनों माथा फोड़ी के बाद भी न तो गुरुजी नियमित क्लास ले रहे है और न ही बच्चे जुड़ रहे है। आंकड़ेबाजी का दावा तो ऐसा है जैसे पूरी दुनिया मे कोरोना काल मे केवल छत्तीसगढ़ में पढ़ाई हो रही हो। सभी छात्रो के पास मोबाइल है और नेटवर्क हर जगह मौजूद है ..? 

 एक दो जिलों को छोड़कर पढ़ई तुंहर द्वारा अभियान में से शिक्षक ही त्रस्त हो गए है। हवा हवाई  प्रशिक्षण औऱ तकनीकी दक्षता के बिना पहले उन्हें ऑनलाइन क्लासेस के लिए कोल्हू के बैल की तरह पेरा गया तो कभी गली गली,पारा मोहल्ले में जाकर स्वेच्छा से स्कूल चलाने के लिए मजबूर किया जाता रहा,नतीजन अनेक गावो वालो ने विरोध किया और सख्त मनाही कर दी।कई जगहों में बच्चे और शिक्षक भी संक्रमित हो रहे है।केंद्र सरकार की गाइडलाइन का यह कैसा पालन है ? इसका जवाब न तो स्कूल शिक्षा सचिव के पास है न तो विभाग के पास है।

शिक्षा संघो का मानना है कि अब तक के प्रयोग जमीनी स्तर से कोसो दूर है।अब तक केवल निज प्रयोगों की नई नई पाठशालाओ में शिक्षको और  विद्यार्थियों को जानबूझ अपने प्रयोगों के लिए  कोरोना की ओर धकेलने की कोशिश नाकाम तंत्र के नामवीरो के द्वारा गाथा गायन के जरिये की जा रही है।आम शिक्षको की मजबूरी इसका हिस्सा बनना जरुरी है। आम शिक्षको का मानना है कि  कोरोना काल का दौर गुज़र जायेगा पर इन्ही नाम वीरों को मिल रहा प्रोत्साहन करीब दो लाख से अधिक शिक्षको के बीच सवाल बन कर हमेशा बना रहेगा।

पालकों का कहना है कि सरकारों को इस दिशा में प्रयास कर सर्वसुलभ तरीको से बच्चो को घर पर ही पढ़ने के लिए व्यापक  व्यवस्था शीघ्र करनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों को भी लाभ हो, पालक भी निश्चिंत रहें और शिक्षक भी सुरक्षित हो सके। आन लाइन , टीवी, केबल, रेडियो DTH , दूरदर्शन जैसे सुलभ साधनो का एक साथ एक नीति के तहत उपयोग किया जाना चाहिए।निजी और सरकारी स्कूल के पालको का मानना है बिना दवाई और वैक्सीन आने तक बिना किसी व्यापक सुरक्षा इंतजाम के जिगर के टुकड़ों  को स्कूल भेजना खतरनाक होगा।

सवाल फिर वही आ जाता है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एस ओ पी  का पालन कैसे होगा ..? शिक्षको को कर्म योगी बना कर आदेशों का तीर दिखा कर  स्कूलों में ढकेल भी दिया तो  संक्रमण की स्थिति नैतिक जवाबदेही कौन उठायेगा ..? 

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