“बचपन” में “बचपन” के साथ…

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                       (रुद्र अवस्थी )

बीता हुआ कल चाहे खुशी के दौर में गुजरा हो….या फिर उन पर तकलीफों की छाप लगी हो…।कुलमिलाकर बीते हुए कल की याद दिल को शुकून ही देती है…..।शायद यह सोचकर कि भविष्य तो एक कल्पना–एक तसव्वुर की बात है..और आज के दौर में अपने हिस्से का   संघर्ष  हर किसी को अपने खाते में दर्ज नजर आता है…। ऐसे में लाजिमी है कि बीते हुए कल की याद कर अपने हिस्से के शुकून पर हाथ मारने के लिए लोग बीते दिनों की ओर पलटते हैं…। लेकिन बीते हुए कल की एक बड़ी खासियत है कि यह कभी वापस लौटकर नहीं आता….।इसे न खरीदा जा सकता है…..न लूटा जा सकता है और न इसे पैदा किया जा सकता है…। कहीं पर अफसोस तो कहीं खुशफहमी….. कहीं खट्टा तो कहीं मीठा…। सब तरह का जायका…लेकिन वापस कभी नहीं लौटने की गारंटी…।शयद इन सबके मिक्चर से बनता है बीता हुआ कल…..तभी तो जब भी मौका मिले तो हम गुजरे हुए वक्त से रू-ब-रू होने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहते और मुलाकात के बाद वापस लौटते हैं तो काफी दूर तक टकटकी लगाए उसे जाते हुए निहारते रहते हैं…..।

                14.02.16यह किसी कथा-कहानी-उपन्यास के किसी पन्ने का हिस्सा नहीं है…..। बल्कि इस सुखद अनुभूति  के साथ मुझे  बीते हुए कल से साक्षात्कार का मौका  खुद भी मिला जब अपने बिलासपुर शहर के व्यापार विहार रोड पर चल रहे बचपन स्कूल के सालाना जलसे में मेहमान बनकर गया….। इस स्कूल में नर्सरी-किंडरगार्डन जैसे दर्जे के नन्हे बच्चे पढ़ते आते  हैं…..। वैसे तो हर एक उम्र सीखते रहने की होती है। लेकिन जिस उम्र के बच्चे इस तरह के प्ले-स्कूलों में दाखिल किए जाते हैं , उस उम्र में बच्चा कुछ और सीखे या न सीखे, मगर उसे यह जरूर सिखाने की दरकार होती है कि आगे पढ़ाई-लिखाई के लम्बे सफर में सब कुछ सीखना कैसे है ? जो यह सीख गया, शायद उसे अपनी जिंदगी में कुछ भी सीख लेना मुमकिन  और आसान लगने  लगेगा……..। वह यकीनन मेरे लिए अपने बचपन में लौटने का वक्फा था ….। जब मैने “नेरुआ-नेरुआ ” बच्चों को सालाना जलसे के स्टेज पर बेइंतहा खुशियों और इस खुशी को शिद्दत से  मनाने की पूरी हिम्मत के साथ खड़े देखा। कुछ अपनी चंचलता से तो कुछ अपने साथियों की देखा-देखी स्टेज पर आते चले गए….। एक-दो बच्चों ने स्टेज पर आने के डर से रोना भी शुरू कर दिया। लेकिन अपने साथियों को देखकर उनका भी हौसला बढ़ा और वे अपना परफार्मेंस देने स्टेज पर मौजूद थे……।

                   “बचपन ” स्कूल की दहलीज पर” बचपन ” को थिरकते देखकर वहां मौजूद हर-एक शख्स को अपना बचपन याद आ गया। मासूम और निःश्चल बचपन………। जहां डर गए वहां अपने डर को भी नहीं छिपाया और जहां हिम्मत आ गई वहां पर पूरे हौसले के साथ अपने हुनर की नुमाइश…….। इसका अहसास उस समय हुआ जब डांस आइटम खत्म होने के बाद भी कुछ बच्चे स्टेज से उतरने को राजी नहीं हुए……। उन्हे  पुचकारकर उतारना पड़ा…. ऐसा इनोसेंट बचपन……….। स्टेज के पीछे से म्युजिक सिस्टम ऑन होते ही बच्चे अपनी लय पर थिरक उठते …..। यह नजारा फूल के बगीचे जैसा नजर आता है ,जब रंग-बिरंगे चमकीले कपड़े पहनकर एक साथ बच्चे अपना करतब   दिखाते हैं……। कोई कला-समीक्षक भी यह सुनकर कह सकता है कि ‘’-आप सही पकड़े हैं….”, जब उसे बताया जाए कि नन्हे बच्चों ने आत्मविश्वास को अपने दिलो-दिमाग पर भरने की कला का उम्दा प्रदर्शन किया….।एक और उदाहरण से बचपन के बच्चों के आत्मविश्वासस को समझने का मौका मिला, जब बताया गया कि कुछ बच्चे ( खासकर बच्चियां ) ऐसे भी हैं जिन्होने दूसरे स्कूलों में जाने से साफ मना कर दिया था और स्कूल के नाम पर डरने लगे थे।

                   इन बच्चों मे आए बदलाव के पीछे की तैयारी समझ में आई, जब स्कूल के इंतजाम को देखने का मौका मिला।बचपन स्कूल में पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से  नए संसाधनों का इस्तेमाल कर ऐसा माहौल तैयार किया गया है। जिससे बच्चों में स्कूल आने की ललक पैदा हो। स्कूल के प्रति आकर्षण पैदा करने की इस युक्ति का इस्तेमाल उन सरकारी अभियानों में भी किया जा सकता है, जो शाला-त्यागी बच्चों को स्कूल वापस लाने की कोशिश में चलाए जा रहे हैं…।स्कूल की डारेक्टर श्रीमती  वंदना मिश्रा पूरे आत्मविश्वास के साथ बताती हैं कि कई बच्चे तो स्कूल की छुट्टी के बाद भी वहां से जाने को तैयार नहीं होते।पढ़ाई के प्रति लगाव , खेल-खेल में पढ़ाई और बस्तों का बोझ कम करने की दिशा में यह पहल सार्थक हो सकती है. बशर्ते इस मामले में पूरी ईमानदारी से कदम आगे बढ़ते जाएं…..। जब बचपन में बचपन भी जिंदा रहेगा और आज के दौर से जूझने के लिए आत्मविश्वास –आत्मबल भी मजबूत होगा। नाचते-झूमते मासूम बचपन के बीच बैठकर यह सोचते-सोचते कब फिर बड़े होकर अपने मौजूदा किरदार में लौट आया मुझे इसका भी अहसास नहीं हुआ। लेकिन बचपन स्कूल के इस जलसे ने बहुत पीछे लौटकर कुछ पल फिर से बचपन को जी लेने का जो अनमोल मौका दिया, उसका अहसास मेरी यादों में बना रहेगा……..।

 

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