चला रे परदेशिया………. नैना लगाइके….

Chief Editor
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बिलासपुर । चला रे…..परदेशिया…..नैना लगाइके……… बनारस के इस दादरा को सुनकर लगा जैसे किसी सिद्ध शास्त्री की तजुर्बेदार आवाज से जुड़कर बनारस के किसी घाट पर खड़े हैं…..। बसंत,शंकरा और भैरवी जैसे रागों पर खयालगायकी सुनकर लगा जैसे रागों में रचे-बसे निष्णात रागी के बोल कान में घुल रहे हों……..। तबले, तानपुरे और हारमोनियम की संगत ऐसी कि मन भी झूम उठे……। कुछ ऐसा ही शमां बंधा जब रविवार की शाम राष्ट्रीय पाठशाला के सभागार में शास्त्रीय संगीत का आयोजन हुआ….। यह आयोजन विचारमंच के सरगम कार्यक्रम के तहत  किया गया था। जिसमें शहर के नवोदित कलाकार ऋत्विक पाल ने गायन प्रस्तुत किया।

यह कार्यक्रम इस मायनें में बहुत बड़ा था कि बिलासपुर शहर को ऋत्विक के रूप में एक बड़ा कलाकार मिल गया। शहर के लोयला स्कूल में नवमीं कक्षा के छात्र ऋत्विक की उमर का अदाजा लगाया जा सकता है। छोटी सी उमर के इस बड़े कलाकार ने रविवार की बासंती शाम  राष्ट्रीय पाठसाला के सभागार में मौजूद लोगों को ही नहीं , अलबत्ता इस शहर को भी एक उम्दा कलाकार के रूप में एक अनमोल तोहफा दिया।  यह तोहफा आने वाले समय में शहर की पहचान बन सकता है। बसंत, शंकरा और भैरवी रागों में ऋत्विक की गायकी ने सभी का मन मोह लिया। जब उन्होने भजन के बाद चला ….रे परदेशिया…..नैना लगाइके …. दादरा पेश किया तो श्रोता झूमने पर मजबूर हो गए। कोई आंखें बंद करके उनकी खयालगायकी सुनता तो , दिलो-दिमाग पर किसी मशहूर शास्त्रीय गायक की छवि उभरती। लेकिन यह जानकर हैरत हुई कि महज तेरह साल के ऋत्विक का यह शहर में पहला स्टेज शो है। है ना कमाल की बात……। जिस दौर में पश्चिम का संगीत गाँव- देहात के लोगों के सर चढ़कर बोल रहा हो और लोग यह मानने लगे हों कि अब हमारे शास्त्रीय संगीत के कद्रदान नहीं रहे । ऐसे वक्त में ऋत्विक जैसे सितारे का उभरना एक शुभ संकेत कहा जा सकता है।उस हाल में मौजूद संगीत के कद्रदानों ने भी इस बात को महसूस किया । उनके साथ तबले पर संगत कर रहे थे राजेश मौदेकर और हारमोनियम पर थे-सामाजिक लाल…..।कार्यक्रम का संचालन विवेक जोगलेकर ने किया और ऋत्विक के बारे में जानकारी दी।  इस आयोजन के लिए विचार मंच के द्वारिका प्रसाद अग्रवाल को साधुवाद…।

  माँ से मिली पहली तालीम……

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अपनी खयालगायकी से श्रोताओँ को मंत्रमुग्ध करने वाले ऋत्विक ने सीजीवाल से एक बातचीत के दौरान बताया कि गायन की पहली तालीम उन्हे अपनी मां श्रीमती रीता पाल से मिली। पिता एनटीपीसी में कार्यरत हैं और उनका भी सहयोग मिलता रहा है। मां संगीत की जानकार हैं और उन्होने अपने पुत्र को भी छोटी सी उमर से ही इसकी शिक्षा दी। अपने शहर के ही कन्हैया वैष्णव और सुप्रिया भारतीयन से सीखते हुए उन्होने गायन के क्षेत्र में आत्मविश्वास भी हासिल किया। उन्हे याद है कि एक बार मल्हार में कार्यक्रम देने का मौका मिला तो इस ओर रुझान और बढ़ा। ऋत्विक फिलहाल देश के जाने-माने उस्ताद राशिद खाँ साहब से तालीम हासिल कर रहे हैं।

यह पूछने पर कि आज के दौर में भी शास्त्रीय संगीत के प्रति रुझान कैसे बढ़ा ?  उनका जवाब था कि शास्त्रीय संगीत हमारी परंपरा और पहचान है , इसे आगे बढ़ाने के लिए नए लोगों को आगे आना चाहिए ,बस यही सोचकर संगीत साधना में जुट गए।यही वजह है कि पढ़ाई की व्यस्तता के बाद भी संगीत के लिए वक्त निकाल लेते हैं। बातचीत के दौरान ऋत्विक पाल का आत्मविश्वास देखकर लगा कि उनके अंदर ऊंचाइयों को छूने का भरपूर हौसला है और वे आगे चलकर बिलासपुर शहर का नाम रौशन करेंगे। ऋत्विक को सीजीवाल परिवार की ओर से भी शुभकामनाएं।

 

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