जरा देखिए हम कितने स्मार्ट हैं?..(1)

Chief Editor
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safarnama_backgroundगुगुदाते हुए भी कटाक्ष की बारीक नोंक का अहसास कराने वाले शब्दों में डूबे व्यंग लेखन की एक अलग ही परंपरा रही है। सीधे कुछ कहे बिना भी झकझोर देना इस लेखन शैली की खासियत रही है। जो क्रिकेट के खेल में “रिवर्स स्विंग” वाली गोलंदाजी की याद दिला जाती है। इस विधा में पहले भी खूब लिखा गया है और अब भी बढ़िया लिखने वाले हैं। हमारे साथी पत्रकार व्योमकेश त्रिवेदी ( आशु) ने भी शहर के हालात पर कुछ इसी अंदाज में अपनी कलम चलाई है। “शहरनामा” में हम इसे अलग-अलग कई कड़ियों में प्रस्तुत कर रहे हैं। पेश है पहली किश्त–                                                   

             
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व्योमकेश त्रिवेदी का लिखा…

               vyomkeshस्मार्ट होने का अर्थ यदि, बुद्धिमान या होशियार होना, चुस्त दुरुस्त रहना है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी मोर्चे पर डटे रहना, टूटने या ध्वस्त होने के बाद भी खुश रहना इसमें शामिल होना चाहिए, इस हिसाब से देखा जाए तो हमारी सिटी बिलासपुर और हम इसके बिलासपुरिए सिटीजन इसमें पूरी तरह फिट हैं, हमें स्मार्ट बनाने की चर्चा भले हाल ही में शुरू हुई हो, पर हम बहुत पहले से स्मार्ट सिटी के स्मार्ट सिटीजन हैं।

                     जरा देखिए हम कितने स्मार्ट हैं, दशकों पहले हमारा शहर दो सड़कों के किनारे बसा था, कुछ गिनती के बड़े मोहल्ले थे, हम पैदल चलते हुए एक घंटे में पूरे शहर का चक्कर लगा आते थे, हम खुश थे, कहते थे देखो कितना बड़ा है हमारा शहर, चक्कर लगाने में एक घंटे लगते हैं। उस समय हमारे इस शहर में कई खेल मैदान थे, गली मोहल्लों में ओपन बैडमिंटन कोर्ट हुआ करते थे, खाली सड़कें बच्चों का क्रिकेट, गुल्ली डंडा, बांटी, भौंरा, कबड्डी खेलने की मैदान हुआ करती थीं।

                      सुबह से शाम तक बच्चे अपने अपने घर के सामने सड़कों पर खेलकर खुश रहते थे, घर के अंदर वे हंगामा नहीं मचाते थे, इसलिए सामने सड़क पर उन्हें खेलते देखकर घर के बड़े भी खुश रहते थे। उस दौर में हमारे शहर में बड़े बड़े नेता हुआ करते थे, हर मोहल्ले में मंत्री, विधायक का घर था, बड़ी बड़ी दरबारें थीं। गली गली में मंत्रियों के चेले गरजते थे, ये सभी अपने आप में मंत्री थे।

                         वह शांति और सुकून का युग था, शहर विकास नाम की कोई चीज नहीं थी, शहर जैसा था वह वैसा ही रहा, पर हम खुश थे। खुश थे इस बात पर कि हमारे शहर के हर मोहल्ले में एक मंत्री और गली गली में छाया मंत्री रहते हैं। हमने अपने नेताओं से कभी कुछ मांगा नहीं…और हमारी भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन्होंने कभी कुछ दिया भी नहीं।

                 जरा गौर फरमाइए, जब रेडियो युग था, लोगों के कान दिन रात रेडियो पर ही लगे रहते थे, उस समय हम स्मार्ट सिटी के स्मार्ट लोग रेडियो स्टेशन के लिए तरसते थे, उस जमाने में जनता की सबसे बड़ी मांग रेडियो स्टेशन हुआ करती थी। हम चाहते थे कि हमारे शहर में एक रेडियो स्टेशन खुल जाए, ताकि हमें अपनी पसंद के गाने, प्रोग्राम सुनने का अवसर मिले, देश दुनिया में हमारे शहर का नाम हो, लेकिन रेडियो स्टेशन पड़ोस में खुल गया, हमारे अलंबरदार नेताओं ने समझाया कि हमें रेडियो स्टेशन नहीं मिला तो क्या हुआ, दूसरे रेडियो स्टेशन से गाना सुन लो, हम स्मार्ट थे, इसलिए खुशी खुशी मान भी गए।

                  उसके बाद टीवी युग आया, हमने चाहा कि हमारे शहर में टीवी स्टेशन खुल जाए, हम भी जरा आधुनिक हो जाएं, पर टीवी स्टेशन भी पड़ोस में खुल गया, बहुत कोफ्त हुई, पर हम छबिगृहों में चलचित्रों का आनंद लेकर खुश होते रहे। जब 1983 में भारत विश्वकप क्रिकेट में  लगातार जीतने लगा, तो शहर के कई उत्साहित लोग टीवी खरीद लाए, साथ में ऊंचा एंटीना भी लेते आए।

                 हम सभी लोग टीवी खरीदकर लाने वालों के घरों में डट गए, लोहे की पाइप, बांस बल्ली के सहारे ऊंचा एंटीना लगाया, टीवी चालू हुई। उस समय उस टीवी में यह तो दिखता था कि कुछ हो रहा है, पर क्या हो रहा है, यह साफ समझ में नहीं आता था। हम उन झिलमिलाती तस्वीरों को देखते हुए कामेंट्री सुनते जाते थे, फिर अनुमान लगाते थे कि वास्तव में मैदान में हुआ क्या है, तस्वीर साफ नहीं दिखने पर झुंझलाहट होती थी, पर फिर भी हम टीवी देख रहे हैं, ये सोचकर ही खुश हो जाते थे।

                भला हो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का, जिन्होंने अपने कार्यकाल में पूरे देश में टीवी रिले स्टेशन खुलवा दिया, पूरे देश में थोक में स्टेशन खुले तो झटके में हमारे शहर को भी एक मिल गया, वर्ना हम आज तक चालीस फीट ऊंचा एंटीना लगाकर ब्लैक एंड वाइट टीवी में आंखें गड़ाए यह अनुमान लगा रहे होते कि आखिर इसमें हो क्या रहा है…

                                                                                                                                                 (जारी है)

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