गुगुदाते हुए भी कटाक्ष की बारीक नोंक का अहसास कराने वाले शब्दों में डूबे व्यंग लेखन की एक अलग ही परंपरा रही है। सीधे कुछ कहे बिना भी झकझोर देना इस लेखन शैली की खासियत रही है। जो क्रिकेट के खेल में “रिवर्स स्विंग” वाली गोलंदाजी की याद दिला जाती है। इस विधा में पहले भी खूब लिखा गया है और अब भी बढ़िया लिखने वाले हैं। हमारे साथी पत्रकार व्योमकेश त्रिवेदी (आशु) ने भी शहर के हालात पर कुछ इसी अंदाज में अपनी कलम चलाई है। “शहरनामा” में हम इसे अलग-अलग कई कड़ियों में प्रस्तुत कर रहे हैं। पेश है तीसरी किश्त–
व्योमकेश त्रिवेदी का लिखा…..
आजादी के बाद से हम स्मार्ट सिटीजन्स की रुचि राजनीति में अधिक रही है, देश को आजादी मिलने के बाद से हमारा शहर राजनीति का केंद्र रहा, मध्यप्रदेश की राजनीति में छाए रहने वाले दिग्गज नेता हमारे शहर के ही थे, अक्सर शहर से बाहर रहने वाले इन नेताओं की जब स्वागत भूख जागती थी, इनके कान जयकारे की मांग करने लगते थे, तो वे सूचना देकर शहर आते थे, हम रेलवे स्टेशन से बंगले तक उनका स्वागत सत्कार करते थे, जय जयकार करते थे और उनके साथ हम भी खुश हो जाते थे।
मध्यप्रदेश के जमाने में बंदरबांट का बोलबाला था, सरकार की टैक्स आदि से जो कमाई होती थी, उसे छत्तीसगढ़ में अधिक खर्च नहीं किया जाता था। उधर के नेता रुपया अपने इलाके के लिए ले लेते थे और हमारे इलाके के नेताओं को मंत्री बना देते थे। हमारे इलाके के मंत्री उनके इलाके में रुपया खर्च करते थे। विकास कार्य होने से वे खुश रहते थे और मंत्री वंत्री का पद पाकर हमारे नेता और हम खुश हो जाते थे।
संसाधनों की बंदरबांट वर्षों चलती रही और मध्यप्रदेश वालों के साथ हम भी बहुत खुश रहे, पर इस बीच देश के बदलते सत्ता के समीकरणों ने मध्यप्रदेश को भी प्रभावित किया। सत्ता की दावेदार एक दूसरी पार्टी आई, पृथक छत्तीसगढ़ की मांग उठी, नए नए सपने दिखाए गए। हम भी पृथक छत्तीसगढ़ की मांग करने लगे, सोचा अलग से राज्य बनेगा, तो हमारे शहर के दिन बहुरेंगे, तेजी से विकास होगा, हमारा जीवन भी बदलेगा।
मध्यप्रदेश का विभाजन हुआ, छत्तीसगढ़ बना, हम लपके, हमने सोचा चलो कम से कम हमारा शहर इस नए राज्य की राजधानी ही बन जाए। हमने हल्ला मचाया, पेपरबाजी हुई, बड़े आंदोलन किए, पर हमेशा की तरह राजधानी भी पड़ोसी ले गए, फिर हमने सोचा चलो राज्य बना है तो कुछ बड़े दफ्तर तो यहां आ ही जाएंगे, पर अफसोस, यहां कोई बड़ा दफ्तर भी नहीं खुला। हां, बड़ी मुश्किल से हम अपने शहर में हाईकोर्ट की स्थापना कराने में सफल हो गए। अब हमें कोई अफसोस नहीं है, हम राज्य के नंबर दो शहर की पदवी पाकर ही खुश हैं।
राज्य बनने के बाद सभी जगह विकास कार्य आरंभ हुए, यत्र तत्र सर्वत्र विकास की गंगा बहने लगी। हमारा शहर भी पीछे नहीं रहा, पिछले सवा दशक से हमारे शहर में विकास की गंगा बह रही है, इस दौर में हमारी परीक्षा भी ली जा रही है, लगातार देखा जा रहा है कि हम कितने शांत, कितने धैर्यवान, अप्रतिरोधी, विरक्त, माया मोह के बंधन से छूटे हुए हैं, भगवान का लाख लाख शुक्र है कि हम अब तक सभी परीक्षाओं में पास होते आए हैं।
राज्य बनने के बाद हमारे शहर में एक नए नए अफसर आए। हमारे शहर के ही थे, इसलिए वे शहर को बदलने में जुट गए। उन्होंने दिन रात मेहनत की, सड़कें बनवाई, डिवाइडर बनवाया, उद्यानों को नया रूप दिलाया। यहां मेडिकल कालेज खोलने में भी सहयोग किया। अरपा नदी का पानी रोकने के लिए चेकडैम बनवाया। दो तीन साल में शहर का चेहरा बदल गया, हम बड़े खुश हुए, लेकिन साहब के जाते ही हमारा शहर फिर जस का तस हो गया। सौंदर्यीकरण उजड़ गया, चेकडैम में शहर का गंदा पानी भर गया, पर हम निराश नहीं हुए, यह सोचकर खुश रहे कि चलो कुछ तो बदला।
पिछले सवा दशक से हमारे शहर में धुंआधार विकास कार्य हो रहे हैं, बड़ी बड़ी योजनाओं पर काम चल रहा है, अरबों रुपए फूंके जा रहे हैं, ये रुपए धुंआ बनकर उड़ रहे हैं। नेता, अधिकारी, ठेकेदार उस धुंए को पकड़कर तिजोरियों में भर रहे हैं, कोई काम पूरा नहीं हो रहा, हम सब देख रहे हैं, फिर भी काम चल रहा है, यह देखकर ही हम खुश हैं।
सीवरेज नामक राक्षस ने शहर की सड़कों को निगल लिया, जिस तरह खजाना निकालने के लिए पहाड़ की खुदाई कर दी जाती है, उसी तरह अज्ञात खजाने के लिए हमारी सड़कें, गली मोहल्लों की खुदाई कर दी गई, हम धूल, कीचड़ से सनते रहे, गड्ढों में गिरकर हड्डी तुड़वाते रहे, पर हमने कभी एक शब्द किसी से नहीं कहा…हाय हाय करते अस्पताल गए, प्लास्टर बंधवाया, हड्डी जुड़ गई और हम फिर खुश हो गए….
( जारी है )