(संजय दीक्षित) मरवाही विधायक अमित जोगी को प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने जिस तरह पार्टी से निकालने में जल्दीबाजी दिखाई, उससे सोनिया गांधी खुश नहीं हैं। ये हम नहीं कह रहे हैं। कांग्रेस के संगठन खेमे के लोग ही दबी जुबां से स्वीकार कर रहे हैं कि अमित एपीसोड में पीसीसी और राहुल, सोनियाजी के बीच कम्यूनिकेशन गैप हुआ है। इसीलिए, अजीत जोगी पर कार्रवाई लटक गई है। दरअसल, दिल्ली में जोगी से सहानुभूति रखने वाले कांग्रेस नेता सोनिया को यह फीड करने में कामयाब रहे कि अमूमन सभी राज्यों में पार्टी में कलह और गुटबाजी है। पीसीसी इसी तरह अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए अगर विधायकों को निकालना चालू कर दिया तो पार्टी का क्या होगा? पार्टी सूत्रों का कहना है, सोनिया को यह बात जमी और उन्होंने अजीत जोगी के मसले में वीटो फिलहाल लगा दिया है। हालांकि, अमित का जब निष्कासन हुआ था तो माना गया था कि इतना बड़ा फैसला राहुल गांधी से हरी झंडी लिए बगैर नहीं हुआ होगा। मगर भूपेश ने राहुल से बात की या नहीं, यह सिर्फ भूपेश ही बता सकते हैं। क्योंकि, और किसी नेता को इसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम। पते की बात यह भी कि राहुल से अगर इजाजत ली गई होती तो वे सोनिया से ये बात जरूर शेयर किए होते। फिर, सोनिया खफा क्यों होती। सो, कुछ तो गड़बड़झाला हुआ है।
80 खोखा का काम, 25 खोखा का खेल
सिंचाई विभाग बिलासपुर के ईई आलोक अग्रवाल के पूरे लाव-लश्कर के साथ जेल जाने के बाद भी लगता है, अफसरों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। तभी तो 80 करोड़ के टेंडर में 25 करोड़ का खेल कर दिया। मामला अंबिकापुर का है। मगर दिमाग रायपुर का भी लगा। सिंचाई अफसरों ने रिंग बनाकर टेंडर का ऐसा बंदरबांट किया कि एसीबी के अफसर भी स्तब्ध रह गए। एक तो 12 फीसदी कमीशन। उपर से सात से आठ फीसदी रेट एबाव्ह। कुल 25 करोड़ में से 5 करोड़ पेशगी भी मिल गई थी। तब तक एसीबी को भनक लग गई। जांच की तो पता चला, 27 प्रतिशत मोटे कमीशन के लिए अफसरों ने ईमान-धरम बेच डाला। एक ठेकेदार को एक काम के लिए एलीजेबल माना तो दूसरे के लिए रिेजेक्ट कर दिया। ताकि, पेशगी देने वाले सभी सातों को काम मिल जाए। याने आरगेनाइज करप्शन। एसीबी ने दो दिन पहले अंबिकापुर के चीफ इंजीनियर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, दो एक्जीक्यूटिव इंजीनियर समेत अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। अन्य में राजधानी के चोटीधारी नेता का नाम भी जुड़ सकता है। चोटीधारी ने ही अंबिकापुर जाकर अफसरों के साथ गेम प्लान किया था।
डायन भी अच्छी
डायन भी एक घर छोड़कर चलती है। मगर अपने सूबे के पीडब्लूडी को तो जरा देखिए। रायपुर के विधानसभा रोड को भी नहीं बख्शा। उस विधानसभा रोड को, जिससे होकर सीएम, मंत्री और विधायक सदन पहुंचते हैं। एंटी करप्शन ब्यूरो की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ है कि पीडब्लूडी ने 16 करोड़ रुपए की सड़क को बनाने में 32 करोड़ लगा डाला। याने वन टू का फोर करके 16 करोड़ सीधे अंदर। बहरहाल, एसीबी ने पीडब्लूडी के आला अधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया है। कभी भी इनकी गिरफ्तारी हो सकती है। बहरहाल, एसीबी के इन दोनों मामलों से लगता है कि उसने अपना वर्किंग पैटर्न बदल लिया है। वजीर को पकड़ने पर हो-हंगामा होता है। मंत्री, ब्यूरोक्रेट्स से लेकर सदन में विपक्ष तक को झेलो। इससे बढि़यां है, विभागों के आरगेनाइज्ड करप्शन को टारगेट किया जाए। बिना किसी हल्ला के। तभी तो सीई से लेकर ईई तक के खिलाफ मुकदमा कायम हो गया, मगर किसी को पता ही नहीं चला। मीडिया को भी नहीं।
बाबा और दादा
विधानसभा में बाबा तो पहले से थे। नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव। बाबा उपनाम है। मगर अब दादा की भी कमी पूरी हो गई है। सीएम डा0 रमन सिंह वैसे अभी दादा नहीं बनें हैं लेकिन, टीएस ने बड़े भाई के नाते उन्हें दादा मान लिया है। आखिर, सीएम 16 दिन बड़े जो हैं टीएस से। बुधवार को सदन में जब सत्ता पक्ष टीएस को यह कहते हुए छेड़ा कि बाहर में सीएम की तारीफ करते हैं और सदन में क्रिटिसाइज। टीएस ने कहा, सीएम मेरे दादा हैं। दादा अच्छे हैं, मगर उनकी सरकार नहीं। मैं तारीफ दादा की करता हूं। उनकी सरकार की नहीं। चलिये, विस में अब बाबा और दादा दोनों हो गए हैं।
कन्हैया फेम आईएएस
छत्तीसगढ़ में भी कन्हैया प्रेमी आईएएस अफसरों की कमी नहीं है। दो कलेक्टरों ने तो बकायदा फेसबुक और ट्विटर पर कन्हैया के सम्मान में कसीदें गढ़ दी। हालांकि, बाद में आईएएस अफसरों ने समझाया तो उसे वाल से डिलिट मार दिया। हाइट यह है कि खुद माल-मलाई खाकर अघा गए कई आईएएस भी कन्हैया के फैन हो गए हैं।
जिला, दो कलेक्टर
कलेक्टर बोले तो जिले का मुखिया। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट। जिले का मालिक अगर अपनी बीवी को नौकरी नहीं दे पाए तो लोग क्या कहेंगे। यही ना कि अपनी घरवाली को नौकरी नहीं दे पा रहा तो दूसरे के लिए क्या करेगा। कांग्रेसी विधायक नाहक ही राशन-पानी लेकर बलरामपुर कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन पर चढ़ाई कर दिए हैं। वैसे भी, सूबे में महिला कलेक्टरों की संख्या सरकार ने बढ़ा दी है। आधा दर्जन महिला कलेक्टर हैं। इसको देखकर कलेक्टरों की हाउसवाइफ पत्नियों का दिल भला कैसे नहीं मचलेगा। सो, कइयों की बैक डोर इंट्री हो गई है। अब, छोटा मुलाजिम ही सही, है तो कलेक्टर की पत्नी। फील्ड में उन्हें कलेक्टर से ज्यादा रुतबा मिल रहा है। अंदाज भी कलेक्टरी वाला ही समझिए। चलिये, बढि़यां है। एक जिला, दो कलेक्टर।
गुड न्यूज
बेटी बचाने के लिए रायगढ़ की महिला कलेक्टर ने सुध ली। इसे एक अभियान का रूप देते हुए शनिवार को खरसिया से रायगढ़ तक 42 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाई गई। अब तक की यह लंबी मानव श्रृंखला होगी। काश! कम-से-कम जिन छह जिलों में महिला कलेक्टर है, वहां इसी तरह की मुहिम चलाई जाए, तो बेटियों को कोख में कत्ल करने से अवेयर किया जा सकेगा।