गुगुदाते हुए भी कटाक्ष की बारीक नोंक का अहसास कराने वाले शब्दों में डूबे व्यंग लेखन की एक अलग ही परंपरा रही है। सीधे कुछ कहे बिना भी झकझोर देना इस लेखन शैली की खासियत रही है। जो क्रिकेट के खेल में “रिवर्स स्विंग” वाली गोलंदाजी की याद दिला जाती है। इस विधा में पहले भी खूब लिखा गया है और अब भी बढ़िया लिखने वाले हैं। हमारे साथी पत्रकार व्योमकेश त्रिवेदी (आशु) ने भी शहर के हालात पर कुछ इसी अंदाज में अपनी कलम चलाई है। “शहरनामा” में हम इसे अलग-अलग कई कड़ियों में प्रस्तुत कर रहे हैं।पेश है अंतिम किश्त–
व्योमकेश त्रिवेदी का लिखा…
हमारी स्मार्ट सिटी में दस साल पहले बड़ी बड़ी बातें कहकर शुरू किया गया सीवरेज का काम अभी खत्म नहीं हुआ है. यह राक्षस हमारी सड़कों को खाए जा रहा है, पर हम कुछ नहीं कहते, शांत रहते हैं। एक सड़क खोदी जाती है, तो हम दूसरी सड़क पर चलने लगते हैं, जब दूसरी सड़क खोदी जाती है तो हम फिर पहली सड़क पर चलते हैं। हमें बताया जाता है कि फलानी जगह बहुत बड़ा आडिटोरियम बनेगा, देश विदेश से कलाकार आएंगे। पिछले कई साल से हम उस आडिटोरियम को बनते देख खुश हैं, हमें इस बात की चिंता नहीं है कि वह कब बनेगा, हम तो बस इसी में खुश हैं कि वह बन रहा है, जाहिर है, जब बन रहा है तो कभी न कभी तो पूरा बनेगा ही। इसी तरह हमें पिछले कई साल से बताया जा रहा है कि शहर के एक कोने से दूध की नदिया बहेगी, वहां गोकुल नरेश विराजमान रहेंगे, हम उस दूध की नदी बहने की राह देखकर ही खुश हैं।
शहर के दूसरे कोने में अनोखा उद्यान बनाया गया, काम पूरा नहीं होने के बाद भी इसका उद्घाटन हुआ, कहा गया यहां तारामंडल होगा, फलाना ढिकाना होगा, देश में इसका नाम होगा, उद्घाटन के बाद यह उद्यान बनते बनते उजड़ गया, पर उद्यान जैसा कुछ बन गया, हम इसीमें खुश हो गए।इसी तरह तीसरे कोने में करोड़ों रुपए खर्च कर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स बनाया गया, निर्माण पूरा होने के पहले ही यह ध्वस्त हो गया, शहर के चौथे कोने में ट्रांसपोर्ट नगर बसाने की योजना बनाई गई, यह नगर आज तक नहीं बसा। शहर के बीच स्थित बस स्टैण्ड को बंद करा दिया गया, बड़े सपने दिखाकर शहर से दूर बस स्टैण्ड बनाया गया, आने जाने की प्रमुख सवारी बसें हमसे दूर हो गईं, हमने शिकायत की, सुनने वालों ने किया कुछ नहीं, हमारी शिकायत सुन ली, हम इसी में खुश हो गए
जनता की मांग और परेशानियों को देखते हुए कई ओवरिब्रज बनाए गए, महान ठेकेदारों ने वास्तु के अनोखे उदाहरण के रूप में इन ओवरब्रिजों का निर्माण किया, इससे समस्या घटने की बजाए बढ़ गई, पर हमने शिकायत नहीं की। निमार्ण के दौरान न जाने कितना रुपया उदरस्थ कर लिया गया, पर फिर भी हम चुप रहे, क्योंकि कहा जाता है नहीं मामा से काना मामा अच्छा होता है, तो हम ओवरिब्रज रूपी काना मामा पाकर ही खुश हो गए, हम अधिक सुख सुविधाओं के पीछे भागने वालों में से हैं नहीं हैं, हमारा काम चलना चाहिए, हम उतने में ही खुश हो जाते हैं।
अच्छी खासी सड़कों को खोदकर नई सड़क बनाना, साफ सुथरे नाले नालियों को ध्वस्त कर उसे फिर से बनाने का उपक्रम करना हमारे शहर की प्रमुख विशेषता है। इस मामले में हमारे शहर के गौरव पथ ने सारे रकार्ड तोड़ दिए हैं। पिछले दस साल से खजाना बना यह पथ बनता कम, बिगड़ता अधिक है। हम स्मार्ट सिटीजन इस सड़क पर धूल फांकते हैं, धक्के खाते हैं, पर फिर भी हम ये सोचकर मुस्कुराते रहते हैं कि चलो हमारे कष्ट भोगने से यदि कुछ लोगों की जेबें गरम हो रही हैं, तो भोग लेते हैं कष्ट, दूसरों के हित के लिए तकलीफ झेलना ही तो असली मानवता है।कष्ट झेलकर भी खुश रहने वाले हम स्मार्ट सिटीजन अब पिछले कुछ सालों से अरपा के टेम्स नदी बनने का सपना देखकर खुश हैं, बीच बीच में हमें बताया जाता है कि अरपा ऐसी हो जाएगी, वैसी हो जाएगी, इसमें बारहों माह पानी रहेगा, नाव चलेगी आदि आदि….सुनकर हम खुश हो जाते हैं और कल्पना में डूब जाते हैं, कभी कभी अरपा कैसी होगी यह देखने के लिए रिवरव्यू घूम आते हैं, वहां जाते ही समझ में आ जाता है कि अरपा कैसी होगी….
स्मार्ट सिटी और स्मार्ट सिटीजन्स के किस्से बहुत हैं, कितना कहें, एक एक परत उधाड़ेंगे तो किस्से कभी खत्म ही नहीं होंगे, अधिक किस्से सुनने सुनाने से हम अधिक खुश हो जाएंगे, अधिक खुश होंगे तो खतरा पैदा हो जाएगा, इसलिए हम उन खुश करने वालों से एक ही विनती करते हैं…
हम कहते हैं कि हमें हमेशा खुश रखने वालों सुनो…यह अच्छी बात है कि आप लोग हमें हमेशा खुश रखते हैं, पर एक बात याद रखना, हमे बहुत अधिक खुश मत कर देना, क्योंकि हम खुश रहने वालों की एक बड़ी कमजोरी भी है,जब हमें अत्यधिक खुश कर दिया जाता है, तो हम गुब्बारे की तरह फूलकर फट पड़ते हैं….उसके बाद सिर्फ हम हंसते हैं और हमें हंसाने वाले…
( समाप्त)
….व्योमकेश त्रिवेदी...